नवरात्रि व्रत की महिमा
प्रयागराज। ब्यूरो राजदेव द्विवेदी। कौशल देश में सुशील नामक एक निर्धन ब्राह्मण रहता था प्रतिदिन मिलने वाली भिक्षा से वह अपने परिवार का भरण पोषण करता था उसके कई बच्चे थे प्रातः काल व भिक्षा हेतु घर से निकलता और सायं काल लौट आता था। देवताओं, पितरों और अतिथियों की पूजा करने के बाद आश्रित जन को खिलाकर ही वह स्वयं भोजन ग्रहण करता था इस प्रकार भिक्षा को वह भगवान का प्रसाद समझकर स्वीकार करता था। इतना दुखी होने पर भी वह दूसरों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहता था यद्यपि उसके मन में अपार चिंता रहती थी वह सदैव धर्म-कर्म में लगा रहता था अपनी इंद्रियों पर उसका पूर्ण नियंत्रण था। वह सदाचारी ,धर्मात्मा और सत्यवादी था उसके हृदय में कभी क्रोध, अहंकार और ईर्ष्या जैसे तुच्छ विकार उत्पन्न नहीं होते थे।
सृष्टि का निर्माण
एक बार उसके घर के निकट सत्यव्रत नामक एक तेजस्वी ऋषि आकर ठहरे वे एक प्रसिद्ध तपस्वी थे। मंत्रों और विद्याओं का ज्ञाता उनके समान आस-पास दूसरा कोई नहीं था शीघ्र ही अनेक व्यक्ति उनके दर्शनों को आने लगे। सुशील के हृदय में भी उनसे मिलने की इच्छा जागृत हुई और वह उनकी सेवा में उपस्थित हुआ। सत्यव्रत को प्रणाम कर वह बोले ऋषिवर आपकी बुद्धि अत्यंत विलक्षण है आप अनेक शास्त्रों विद्याओं और मंत्रों के ज्ञाता हैं। मैं एक निर्धन, दरिद्र और असहाय ब्राह्मण हूं कृपया मुझे बताएं कि मेरी किस प्रकार दरिद्रता समाप्त हो सकती है। मुनिवर आपसे पूछने का केवल इतना ही अभिप्राय है कि मुझ में कुटुंब का भरण पोषण करने की शक्ति आ जाए धनाभाव के कारण मैं उन्हें समुचित सुविधाएं और अन्य सुख नहीं दे पा रहा हूं। हे दया निधान दान, व्रत, मंत्र अथवा जप ,तप कोई ऐसा उपाय बताने का कष्ट करें जिससे कि मैं अपने परिवार का यथोचित भरण पोषण कर सकूं। मुझे केवल इतने ही धन की अभिलाषा है जिससे कि मेरा परिवार सुखी हो जाए। सुशील की बात को सुनकर सत्यव्रत ने सुशील को भगवती दुर्गा की महिमा बताते हुए नवरात्रि व्रत करने का परामर्श दिया।सुशील ने सत्यव्रत को अपना गुरु बनाकर उनसे मायावीज नामक भुवनेश्वरी मंत्र की दीक्षा ली। तत्पश्चात नवरात्रि व्रत रखकर उस मंत्र का नियमित जप आरंभ कर दिया। उसने भगवती दुर्गा की श्रद्धा और भक्ति पूर्वक आराधना की।
लक्ष्मी का वास
नौ वर्षों तक प्रत्येक नवरात्रि में वह भगवती दुर्गा के माया बीज मंत्र का निरंतर जप करता रहा सुशील की भक्ति से प्रसन्न होकर 9 वें वर्ष की नवरात्रि में अष्टमी की आधी रात को देवी भगवती साक्षात प्रकट हुईं और सुशील को उसका अभीष्ट वर प्रदान करते हुए उसे संसार का समस्त वैभव, ऐश्वर्य ,मोक्ष प्रदान किया।