बकरी, मुर्गी, लिम्बू बने आजीविका का सहारा
सज्जनगढ़, बांसवाड़ा, अरूण जोशी ब्यूरो चीफ: छोटे किसान अपनी आमदनी बढ़ाने के मकसद से खेती के साथ ही अन्य गतिविधियां भी अपना रहे हैं। बांसवाडा ज़िले के हरेद्रगड गाँव तहसील–सज्जनगड के रहने वाले 50 साल के किसान कैलाश तरसिग बारिया ने भी आमदनी में बढ़ोतरी के उद्देश्य के साथ बकरी के साथ मुर्गी पालन करना शुरू कर दिया। फसल उगाने के साथ ही एकसाथ मुर्गी और बकरी पालन से उनकी आय में तीन गुना इज़ाफ़ा हुआ है। इसे देखकर आसपास के किसान भी अब उनके नक्शेकदम पर चलने लगे हैं। 2019 में कैलाश ने वाग्धारा आयोजित पोल्ट्री व बकरी पालन ट्रेनिंग कार्यक्रम में हिस्सा लिया। यहाँ से उन्हें इन दो व्यवसायों में रुचि हुई।इसके बाद वागधारा की मदद से वैज्ञानिक तरीके से कैलाश ने बकरी के साथ मुर्गी पालन की शुरुआत की। इससे उनकी आमदनी में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई।कैलाश तरसिग बारिया के पास चार बीघा सिंचाई युक्त कृषि भूमि है । कृषि में कपास , मक्का , चावल , गेहूं की फसलें उगाई जाती हैं। कैलाश कृषि के साथ अन्य व्यवसाय करने का निर्णय लिया। वहीं से उन्होंने बकरी पालन शुरू किया।शुरुआत वागधारा सस्था ने सिरोही नस्ल की 3 बकरियां आजीविका बड़ाने हेतु दी गईं। वह घर के बगल में एक छोटे से खेत में उनका पालन-पोषण करने लगे । इन बकरियों को रखकर बकरों को बेच दिया जाता था। धीरे-धीरे संख्या बढ़ाकर 25 बकरियों तक पहुंचा दी गई।कैलाश तरसिग बारिया पिछले 5 वर्षों से बकरी पालन को खेती पूरक व्यवसाय के रूप में कर रहे हैं। व्यवसाय के प्रत्येक चरण में अनुभव से सीखना और आवश्यकतानुसार परिवर्तन करके आजीविका बेहतर कर रहे है । घर के बगल में कम लागत पर बकरियों के लिए 25 x 28 फीट का शीट शेड बनाया गया है।
वागधारा गठित कृषि एवं आदिवासी स्वराज संगठन कसारवाडी में सदस्य के रूप में शामिल हुए और वहां गांव के विकास के मायने और उद्योग के तौर तरीके सरकारी योजनाओं में लाभान्वित करना, सरकारी जनकल्याणकारी योजनाओं में जुड़े आदि के बारे में चर्चा एवं प्रशिक्षण में सम्मिलित होने लगे और मासिक बैठक में सक्रिय भागीदारी निभाने लगे कैलाश बताते हैं कि वागधारा के आजीविका बढ़ाने हेतु समय समय पर मिलने वाले प्रशिक्षण के बाद उनके दिमाग में शुरू से ही लघु उद्योग का विचार आ रहा था। इसी से उन्होंने एक साल पहले घरेलू पोल्ट्री व्यवसाय शुरू किया और वागधारा संस्था द्वारा आजीविका बढ़ाने हेतु 28 प्रताप धन मुर्गी के चूजे दिये गये आज कैलाश मुर्गियां बेचकर एक अच्छा नाम बन गया है। इस सारे काम में उनके परिवार की पत्नी, बच्चे सभी उनकी मदद कर रहे हैं
कैलाश अपने विगत दिनों के बारे में बताते है की वाग़धारा संस्था ने मुजे वर्ष 2017 में 15 लिम्बू के पौधे दिए थे आजीविका बड़ाने हेतु अब मै विगत तिन साल से लिम्बू बेचकर आमदनी बड़ा रहा हु मैंने वर्ष 2021 में 20000/- रूपये वर्ष 2022 में 22000 /- रूपये और 2023 में 25000 /- रूपये की आमदनी हुई और वाग़धारा संस्था ने सब्जी बीज किट, 5 किलो हल्दी और 5 किलो अदरक दिया था। जिससे अच्छी आमदनी हुई। जिससे मुझे कुल 23500/ -रुपये मिले। 5 किलो हल्दी से 25 किलो हल्दी की उपज करके 20 किलो हल्दी 100 रुपये के भाव से बेचने पर मुझे 2000/- रुपये मिले | मेरे खेत में 1.5 क्विंटल प्याज की उपज हुई थी, जिसमे मैंने 1 क्विंटल प्याज 20/ रुपये किलो के भाव से 2000/ रुपये में बेच दिए। अगस्त – अक्टूबर 2022 माह में 50 किलो भिन्डी, 40 किलो ग्वारफली, और 1 क्विंटल ककड़ी क्रमश: 40/ रुपये किलो, 40/ रुपये किलो, और 20/ रुपये किलो के भाव से सब्जी व्यापारी हमारे घर पर आकर खरीदकर ले गये। मुझे कुल 5600 रुपये की आमदनी हुई।कैलाश फिलहाल 25 बकरियां पाल रहे हैं। ग्राहकों के मांग के आधार पर पूरे वर्ष 4 से 5 बकरे बेचे जाते हैं। और 400 से 500 रुपये प्रति किलो बिकते हैं. इस व्यवसाय से मेरे परिवार का आर्थिक गणित अच्छा रहता है। पिछले साल 80000/-रुपये के बकरे बेचे है इससे प्राप्त आय से 2016 में घर बनाया और मेरे बेटो को मैंने बीएड तक शिक्षा करवाई और मेरी बहु और बेटो को ई मित्र की दुकान लगाकर दी । ऐसे किया बकरी प्रबंधन बकरियां पालने के दौरान हर पहलू पर सख्ती से योजना बनाई जाती है। इससे बकरियों के बीमार होने की घटना कम हो जाती है। बकरियों के लिए साल भर हरे और सूखे चारे की योजना बनाई जाती है। सूखे चारे में कड़बा, सोयाबीन की भूसी तथा गीले चारे में मक्का, सुबबूल , हरी घास का उपयोग किया जाता है।ठंड के दिनों में खलिहान के चारों तरफ घेरा बनाकर रखने पर जोर दिया जाता है। ताकि ठंडी हवाएं में न आएं और बकरियों को ठंड न लगे। गर्मियों में बकरियों की जगह सूखा रखने पर जोर दिया जाता है. इससे बीमारी कम करने में मदद मिलती है.और रोजाना दोपहर 1 बजे से शाम 6 बजे तक बकरियों को चराने के लिए पहाड़ों पर ले जाया जाता है।
स्वास्थ्य प्रबंधन, बकरियों के अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए उन्हें निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार टीका लगाया जाता है और इसका प्रशिक्षण मुजे वाग्धारा ने दिया है ।हर तीन माह में कृमि नाशक गोली दी जाती है। टीकाकरण के बाद कम से कम चार घंटे तक कोई चारा या चारा नहीं दिया जाता है।बीमार बकरियों की देखभाल अलग से की जाती है। गर्भवती बकरियों और नवजात बच्चों को अलग रखा जाता है और उनकी विशेष देखभाल की जाती है।
बिक्री योजना बकरियो की बिक्री साल भर चलती रहती है। घर पर सीधी बिक्री के साथ-साथ मांग के अनुसार नकद बिक्री होती है । कुछ त्योहारों जैसे दीपावली और उत्सवों के मद्देनजर बिक्री के लिए अलग प्रबंधन के तहत पाला जाता है। इससे बेहतर दरें प्राप्त करने में मदद मिलती है .
सीमित संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल वाग्धारा के पशु चिकित्सा विशेषज्ञ की मदद से एकीकृत मुर्गी व बकरी पालन से कैलाश सीमित संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करने में सफल रहे। मुर्गी व बकरी के मल को वह खेत में खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इससे उनकी खेती की लागत में भी कमी आई।अन्य किसान भी प्रेरित हो रहे कैलाश बकरी के साथ मुर्गी पालन को लोकप्रिय बनाने वाले प्रगतिशील किसान हैं। अब आसपास के इलाके के अन्य किसान भी उनकी ही तकनीक अपना रहे हैं। ये जानकारी महेश सोनी ने दी।