कमीशन खोरी के बदौलत कैसे होगा गांवों में विकास का जन्म


कमीशन खोरी के बदौलत कैसे होगा गांवों में विकास का जन्म

प्रयागराज। उत्तर प्रदेश में गांवों का तेजी से विकास हो इसके लिए केंद्र सरकार ने चौदहवें वित्त आयोग के तहत न सिर्फ ग्राम पंचायतों का बजट बढ़ाया बल्कि उन्हें ही सीधे काम करने का अधिकार दिया। लेकिन जिम्मेदारों की हीला हवाली और कमीशन खोरी के चलते गांवों का पूर्ण रूपेण विकास नहीं हो पा रहा है। कार्य कराने के लिए बजट के अनुसार पंचायत सचिव से लेकर जिला अधिकारी तक की अनुमति चाहनी होती है। सूत्रों की माने तो वर्क आईडी जेनरेट कराने से लेकर बिल पास कराने तक सब को कमीशन देना होता है। लेकिन अधिकारी तब तक काम नहीं करते जब तक कमीशन सेट ना हो जाए। पंचायत में पहले कार्य योजना बनती है, फिर जेई स्टीमेट बनाते हैं, उसका अनुमोदन होता है, फिर वर्क आईडी जेनरेट होने के बाद काम शुरू होता है, फिर उसकी जांच होती है, तब जाकर पैसा मिलता है, अगर अधिकारी ईमानदार है तो सब ठीक वरना कट कमीशन देना ही होगा। जानकारों का मानना है कि पंचायत प्रतिनिधियों के कामों में किसी न किसी तरह से अड़ंगा लगाकर यह लोग पंचायती राज व्यवस्था को कमजोर करने में लगे हैं। अगर पंचायती राज को लेकर सरकार की नियत साफ है तो वित्तीय अधिकार ग्राम पंचायत को दिया जाना चाहिए और फिर जो प्रधान गलत करें उस पर सख्त कार्यवाही भी होनी चाहिए। सूत्र बताते हैं कि ऊपर से लेकर ग्राम विकास अधिकारी तक ग्राम प्रधान से कमीशन लेते हैं सबका कमीशन निश्चित है। मनरेगा की फाइल स्वीकृत करने के लिए मनरेगा सेल में कमीशन लिया जाता है। राज्य वित्त की फाइल स्वीकृत कराने के लिए एडीओ पंचायत कमीशन लेते हैं। इस तरह कुल 40 पर्सेंट कमीशन खोरी में जाता है ऐसे में सौ रुपए में केवल 60 रुपए का काम ग्राम प्रधान करवा पाता है। बावजूद उसके ग्राम प्रधान लोगों की नजरों में चोर रहता है। सूत्र बताते हैं कि जो कमीशन अधिकारी लेते हैं उसका लिखित में नहीं रहता है लेकिन इन कमीशनखोर अधिकारियों से हलफनामा सहित पूछा जाए तो उनके पास कोई जवाब नहीं है। भ्रष्टाचार की जड़ें अभी बहुत नीचे तक है और बहुत शाखाएं निकल आई हैं। सूत्र बताते हैं कि अब तो कमीशन सप्लायर देते हैं जिनके खाते में सीधे पैसा जाता है। शंकरगढ़ ब्लाक में बहुत ऐसे सप्लायर बस्ता लेकर सुबह से दलाल की तरह घूमते रहते हैं। रही बात ग्राम प्रधान की तो अधिकारी मिलकर उन्हें फंसा देते हैं। जिसके कारण वह विरोध नहीं कर पाते हैं क्योंकि कमीशन लेने वालों का कहीं कोई हस्ताक्षर नहीं होता है। केवल प्रधान व सचिव का डोंगल लगता है तथा जेई एम बी करते हैं। ऐसे में लगता है कि महात्मा गांधी का सपना कैसे साकार होगा और पूर्ण रूपेण सौ रुपए में 100 फीसदी विकास का कार्य होगा। लोगों का मानना है कि क्या ऐसे में सूबे के ईमानदार मुख्यमंत्री का भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस सफल हो पाएगी जो भविष्य के गर्त में छिपा हुआ एक यक्ष प्रश्न है।


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