प्रयागराज संसदीय क्षेत्र 52 के चुनावी रण की दंगल में नीलम करवरिया बनेंगी खेवनहार तो इस सीट से भाजपा की होगी नैया पार नहीं तो डूबेगी मझधार-क्षेत्रवासी

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प्रयागराज।ब्यूरो राजदेव द्विवेदी। राजनीति में कब क्या होगा किसी को पता नहीं यहां हर बड़े-बड़े मोहरे कब किससे पिट जाएं कुछ पता नहीं है। सपा के साथ कांग्रेस का गठबंधन होने के बाद इलाहाबाद संसदीय सीट कांग्रेस के खाते में आ गई है। इसके बाद यहां का समीकरण बदल गया है। चुनाव कि रणभेरी बिगुल बच चुका है तारीख को का ऐलान भी हो चुका है ऐसे में चुनावी हलचल तेज होने के साथ-साथ पार्टियां तैयारी में जुट गई हैं। स्थिति काफी हद तक स्पष्ट होने के बाद टिकट के दावेदारों की ओर से घेराबंदी भी शुरू हो गई है। इसके तहत जातिगत समीकरण को अपने पक्ष में बताने के साथ कई अन्य तरह के दावे भी किये जा रहे हैं। बताते चलें कि पूर्व मंत्री एवं सपा के वरिष्ठ नेता कुवंर उज्जवल रमण सिंह साइकिल से उतरकर हाथ का दामन थाम लिया और कांग्रेस के सिंबल पर चुनावी मैदान में हैं। जिससे यह सीट दिलचस्प हो गई है अगर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने नीलम करवरिया को इस सीट से टिकट दिया तो कमल का खिलना तय माना जा रहा है।इलाहाबाद संसदीय सीट पर अभी तक अगली जाति के नेताओं ने ही जीत हासिल की है। ऐसे में कई नामों की चर्चा है। बीजेपी से टिकट के लिए तमाम नेता अपनी दावेदारी आजमा रहे हैं। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक गणेश परिक्रमा में जुटे हुए हैं जो कभी क्षेत्र में दिखते नहीं थे अब वह भाजपा का अपना बड़ा चेहरा दिखाने में कोई कोर कसर छोड़ते नहीं दिख रहे हैं।अब देखना यह है कि बीजेपी किसको अपने पार्टी का प्रत्याशी बनाती है क्योंकि चुनावी ऐलान की तारीखों के मुताबिक छठे चरण में आगामी 25 मई को प्रयागराज संसदीय सीट का चुनाव होना है। ऐसे में अभी तक प्रत्याशियों का चयन न हो पाना क्षेत्रीय लोगों में कसम कस जारी है। लेकिन क्षेत्र के लोगों के नजर में करवरिया परिवार का चेहरा जहन में बसा हुआ है।जिनका जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ाव है। क्षेत्र वासियों का कहना है कि पूर्व में मेजा से विधायक रही नीलम करवरिया सुशासन एवं सेवा के संकल्प को आगे बढ़ाने के लिए जनता के बीच में बराबर अग्रसर हैं। बता दें कि जब बसपा लगातार तीन पंचवर्षीय से बारा विधानसभा पर कब्जा जमाए हुई थी उस समय उदयभान करवरिया ने कमल खिलाने का काम किया था।जबकि उदयभान करवरिया बारा विधानसभा क्षेत्र से दो बार लगातार विधायक निर्वाचित रहे हैं।संसदीय परंपराओं में रहकर जन सेवा का संकल्प रखने वाली नीलम करवरिया अपने पति उदयभान करवरिया से सभी राजनीतिक गुण सीखें हैं।उच्च शिक्षित मिलनसार कर्मठ नीलम करवरिया ने मेजा विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहते हुए जनहित के सैकड़ो योजनाओं के माध्यम से कार्य किया है।अगर ऐसे में बीजेपी इन्हें प्रत्याशी नहीं बनाती है तो इस संसदीय सीट से पार्टी को हार का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।अब देखना यह है कि क्या इस ब्राह्मण चेहरे को बीजेपी आजमाती है या फिर यह बड़े चेहरे खाली काम करते रहेंगे।लेकिन लोगों का मानना है कि अगर बीजेपी इस संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से नीलम करवरिया को चुनाव नहीं लड़ाएगी तो पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना लगभग तय है। ऐसे में शीर्ष नेतृत्व को जमीनी हकीकत जुटा कर प्रत्याशी का चयन करना पार्टी हित में होगा। 2022 के विधानसभा चुनाव में मामूली मतों से नीलम करवरिया भले ही मेजा प्रयागराज से चुनाव हार गई हो परंतु जन सेवा का कार्य उनके द्वारा अनवरत चल रहा है। परिवार के सभी पुरुष जेल में निरुद्ध है पर नीलम करवरिया हजारों समर्थकों के साथ अपने पारिवारिक कारोबार के साथ-साथ राजनीति को आगे बढ़ा रही है। वहीं लंबे समय से राजनीतिक घराने से तालुक रखने वाली वर्तमान सांसद डॉक्टर रीता बहुगुणा जोशी के प्रति क्षेत्रवासियों में चर्चाओं का बाजार गर्म है कि इतनी लंबी पारी खेलने के बावजूद भी जमीनी स्तर पर इनकी पैठ लोगों में आज तक नहीं बन पाई है ऐसे में इनकी राजनीतिक जमीन खिसकती दिखाई पड़ रही है।


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