कुम्भकारों को आईआईटी विशेषज्ञ टीम ने सिखाए मिट्टी वर्तन निर्माण के गुर

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 कारीगरों को दिया पर्यावरण की शुद्वतार्,इंधन बचत एवं स्वाथ्य लाभ का ज्ञान

बसवा के विश्व विख्यात मिट्टी के वर्तन

हलैना|आईआईटी रूटेग नई दिल्ली एवं समृद्व भारत अभियान टीम नेकस्बा बसवा में मिट्टी वर्तन निर्माण कार्य का निरीक्षण किया और इस व्यवसाय से जुडे कारीगर व अन्य मजदूरों को मिट्टी के वर्तन पकाने की आधुनिक भट्टी व चाक,स्वास्थ्य बचाव,जीवन रक्षा कवच,धुआं रहित भट्टी,बाजार,पर्यावरण की शुद्वता,कर्म इंधन में अधिक लाभ आदि का ज्ञान सिखाया। ये टीम समृद्व भारत अभियान के निदेशक सीताराम गुप्ता के आग्रह पर मिट्टी वर्तन निर्माण को बढावा, आत्मनिर्भर बनाने तथा कम लागत में अधिक बचत आदि के उद्देश्य पूर्वी राजस्थान के समस्त जिलों लघु उद्योग,जो हाथ की कारीगरी पर निर्भर है,उसे देखने आई। टीम में आईआईटी रूटेग के विशेषज्ञ देवेन्द्रपाल सिंह,समृद्व भारत अभियान के प्रदेश प्रभारी पुनीत गुप्ता,जयपुर-भरतपुर संभाग के प्रभारी नरेन्द्र गुप्ता,ग्रामीण कार्यक्रम प्रभारी विष्णु मित्तल आदि शामिल थे।
निदेशक सीताराम गुप्ता ने बताया कि पूर्वी राजस्थान के दौसा,करौली,भरतपुर,डीग, धौलपुर,गंगापुर,अलवर,सवाईमाधोपुर आदि जिले में अनेक प्रकार के लद्यु उद्योग संचालित है,जो कम लागत वाली मशीन पर हाथ की कारीगरी पर निर्भर है। जिनमें मिट्टी के वर्तन,कांच की चुडी,अचार-मुरब्बा,फर्नीचर,चमडा के जुते-चप्पल, ढकोला -ढकोली, मुड्डा-मुड्डी,दरी,फर्स,रजाई,मधुमक्खी पालन व शहद उत्पादन,सरसों का तेल,दुग्ध व्यवसाय,पशुपालन आदि सर्वाधिक कार्य हो रहे है। जहां कुछ कार्य आग की भट्टी पर होते है। जिनमें मिट्टी के वर्तन,कांच की चुडी,दुग्ध डेयरी आदि व्यवसाय शामिल है। आग की भट्टियां साधारण होने के कारण कारीगर व मजदूरों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पडता है और अधिक मेहनत करने पर कम मजदूरी प्राप्त होती है। साथ ही पर्यावरण पर बुरा असर पडता है। उक्त कारोबारों को बढावा और आधुनिक सुविधायुक्त बनाने के नई दिल्ली से आईआईटी रूटेग से विशेषज्ञ बुलाए, जिस टीम ने भरतपुर,दौसा,अलवर,धौलपुर आदि जिले के दो दर्जन से अधिक गांवों में मिट्टी के वर्तन,कांच की चुडी,अचार-मुरब्बा,दुग्ध डेयरी आदि कारोबारों का निरीक्षण किया और निर्माण कार्य एवं उनकी अन्य प्रकार की व्यवस्थाए देखी। साथ ही कारीगर व मजदूरों से रू-ब-रू होकर उनकी समस्या, बाजार,निर्माण आदि की जानकारी ली और विस्तार से चर्चा की। टीम के विशेषज्ञ देवेन्द्रपाल सिंह एवं अन्य टीम सदस्यों ने उक्त कारोबार से जुडे कारीगर व मजदूरों को आधुनिक भट्टी,कम लागत में अधिक लाभ,कम समय में अधिक निर्माण,स्वास्थ्य लाभ,बाजार,ओपन भट्टी से होने वाला नुकसान व अधिक ईंधन की खपत आदि का ज्ञान दिया। उन्होने बताया कि दौसा जिले के कस्वा बसवा के मिट्टी के वर्तन की पहचान आज देश-विदेश में कायम है,जहां कुम्भकार समाज के सवा सौ से अधिक परिवार लम्बे समय से मिट्टी वर्तन कारोबार से जुडे हुए है,आज भी कई परिवार की चैथी-पांचवी पीढी इस कारोबार से जुडी हुई है। कस्वा बसवा में मिट्टी वर्तन निर्माण कारोबार से 125 से अधिक परिवार जुडे हुए है,जो मिट्टी से मटका-मटकी, कुल्हड, सकोरी,गमला,गुंलक,तवा,नांद, पानी की बोतल आदि बनाते है।
-कहा बनते मिट्टी के वर्तन
वैर, धरसोनी, बसवा, निठार, हलैना, गोविंदपुरा,पथैना, बेरी, भुसावर, मंसापुरा, समराया आदि स्थान पर सर्वाधिक मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं।


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