सवाई माधोपुर 18 मार्च। वर्तमान समय का ये दौर टेक्नालॉजी का है युवा पीढ़ी के लिए मोबाईल ऑक्सीजन जितना जरूरी हो गया हैं। इस दौर में बच्चे हो या बुर्जग सब मोबाईल का आवश्यकता से अधिक उपयोग कर रहे हैं। वहीं देश की युवा पीढ़ी, खासकर किशोर और युवा वयस्क। टेक्नालॉजी के इस दौर में मोबाइल और इंटरनेट की आसान उपलब्धता के कारण ऑनलाइन गेम्स की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। ये गेम्स शुरू में मनोरंजन के लिए खेले जाते हैं, लेकिन धीरे-धीरे इनकी लत लगने से कई गंभीर समस्याएं सामने आ रही हैं। युवा अपना समय, पैसा और मानसिक शांति इन गेम्स में खो रहे हैं। धीरे-धीरे इन गेम्स की लत इतनी गहरी हो जाती है कि पढ़ाई, करियर और पारिवारिक रिश्तों पर बुरा असर पड़ता है।
ऑनलाइन गेमिंग की लत क्यों लगती है:- ऑनलाइन गेमिंग में पैसा कमाने का लालच युवाओं को जोखिम भरे रास्तों पर ले जा रहा है, युवा सट्टेबाजी या अनैतिक गतिविधियों में लिप्त हो रहे हैं। गेम्स को इस तरह डिज़ाइन किया जाता है कि वे खेलने वाले के दिमाग में डोपामाइन (खुशी का केमिकल) रिलीज़ करते हैं। हार जीत, नया लेवल या रिवॉर्ड खिलाड़ी को बार-बार खेलने के लिए प्रेरित करता है साथ ही युवाओं को जल्दी अमीर बनने की चाहत एवं पैसे का लालच की लत भी इसको बढ़ावा देता है एवं युवाओं को अपनी ओर खींच लेता है। लोगों को पढ़ाई, नौकरी या घर के तनाव से बचने के लिए गेमिंग एक आसान रास्ता लगता है।
युवा पीढ़ी पर प्रभाव:- युवा हो या बजुर्ग अधिक समय तक मोबाईल की स्क्रीन के सामने बैठने से आँखों की रोशनी कम होना, सिरदर्द, नींद की कमी और मोटापा जैसी समस्याएं तो बढ़ ही रही है। वहीं गेम में हारने पर मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है गुस्सा, चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन और आत्मविश्वास की कमी होने लगती है कई बार लोग इतने डिप्रेशन में आ जाते है की आत्महत्या तक कर लेते है। इनकी लत से दोस्तों और परिवार से दूरी हो जाती है रियल लाइफ रिश्तों की जगह वर्चुअल दुनिया में खो जाते है। युवाओं का पढ़ाई में ध्यान नहीं लगता है जिससे भविष्य के अवसरों का नुकसान युवा पीढ़ी का उठाना पड़ रहा है। ऑनलाइन गेमिंग अपने आप में गलत नहीं है एक सीमा में रहकर खेला जाए तो तनाव दूर करने और कौशल बढ़ाने का साधन भी हो सकता है। लेकिन जब इसकी आदत या लत लग जाती है तो यह युवा पीढ़ी के भविष्य को खतरे में डाल सकता है।
इससे कैसे निपटा जाए:- अभिभावक, माता-पिता और शिक्षकों को टेक्नॉलोजी के इस युग में अपने बच्चों एवं युवा पीढ़ी को गेमिंग के फायदे-नुकसान के बारे में समझाना चाहिए एवं बच्चों के मोबाईल उपयोग की समय की सीमा तय करनी चाहिए। गेमिंग को हॉबी की तरह सीमित समय के ंिलए रखा जा सकता है। साथ युवाओं को खेल, पढ़ाई और परिवार के लिए समय निकालने के लिए प्रेरित करना चाहिए। माता-पिता का दायित्व है कि वे अपने बच्चों के गेमिंग पैटर्न एवं मोबाईल पर नज़र रखें एवं पैरेंटल कंट्रोल टूल्स का इस्तेमाल करें ताकि अनचाहे खर्चे और कंटेंट से बचा जा सके। युवाओं एवं बच्चों को वैकल्पिक गतिविधियों खेलकूद, संगीत, कला या किताबें जैसी चीज़ों में रुचि बढ़ाएं जाने के लिए प्रेरित करें ताकि गेमिंग ही एकमात्र मनोरंजन न रहे। अगर लत गंभीर हो जाए, तो प्रोफेशनल से काउंसलिंग कर मदद लें। मनोवैज्ञानिक गेमिंग एडिक्शन से बाहर निकालने में मदद कर सकते हैं।
एक सर्वे के मुताबिक देश के 10 में से 6 युवा दिन में 3 घंटे से ज्यादा गेमिंग के लिए मोबाईल या कम्प्यूटर में अपना समय खर्च करते हैं, जो उनकी सेहत और पढ़ाई पर असर डालता है। ऑनलाइन गेमिंग की अति और गलत इस्तेमाल नई पीढ़ी को बर्बाद कर सकता है। यह एक सिक्के के दो पहलुओं जैसा है सही तरीके से इस्तेमाल हो तो मज़ा और सीख देता है, लेकिन बेकाबू हो जाए तो नुकसान। कई देशों में गेमिंग डिस ऑर्डर को मानसिक बीमारी के रूप में मान्यता दी जा चुकी है सरकार द्वारा भी ऑनलाइन गेमिंग को रेगुलेट करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार को स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने की आवश्यकता हैं ताकि बच्चे शुरू से ही इसके सही इस्तेमाल को समझ सकें। वर्तमान समय में जरूरत है जागरूकता की, संतुलन की, और माता-पिता व समाज की ओर से सही मार्गदर्शन की, ताकि युवा इस चक्कर में फंसकर बर्बाद होने से बच सकें।

2014 से लगातार पत्रकारिता कर रहे हैं। 2015 से 2021 तक गंगापुर सिटी पोर्टल (G News Portal) का बतौर एडिटर सञ्चालन किया। 2017 से 2020 तक उन्होंने दैनिक समाचार पत्र राजस्थान खोज खबर में काम किया। 2021 से 2022 तक दैनिक भास्कर डिजिटल न्यूज और साधना न्यूज़ में। 2021 से अब तक वे आवाज आपकी न्यूज पोर्टल और गंगापुर हलचल (साप्ताहिक समाचार पत्र) में संपादक और पत्रकार हैं। साथ ही स्वतंत्र पत्रकार हैं।