गुरू पूर्णिमा महोत्सव एंव श्री राम कथा का शुभारंभ

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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जीवन जन जन के लिए अनुकरणीय:- श्री हरि चैतन्य महाप्रभु

कामां 13 जुलाई |तीर्थराज विमल कुण्ड स्थित श्री हरि कृपा आश्रम के संस्थापक एंव श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर व विश्व विख्यात संत स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने आज श्री हरि कृपा आश्रम में उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम मात्र हिंदुओं के ही नहीं, मात्र भारतवर्ष के ही नहीं, संपूर्ण ब्रह्मांड के नायक हैं। जन जन के लिए उनका जीवन चरित्र अनुकरणीय एवं अनुसरणीय है। माता-पिता की आज्ञा पालन, भाई भाई का प्यार, गुरु की सेवा, आज्ञा पालन व अनुसरण, समाज के पिछड़े व उपेक्षित वर्ग को गले से लगाना, मित्रता निभाना, धर्म की स्थापना के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर देना, अधर्म के विनाश के लिए सदैव तत्पर रहना, अधिकार की लड़ाई नहीं बल्कि कर्तव्य पालन के लिए तत्परता का संदेश। भगवान श्री राम के दिव्य प्रेरणा संदेश , उपदेश जिन्हें जीवन में अपनाकर व्यक्ति सच्चे अर्थों में एक इंसान बन सकता है। उसके अंदर मानवता,सुह्रदयता, उदारता, परोपकार दयालुता,करुणा, शील, इत्यादिक दिव्य गुणों का प्रादुर्भाव होता है।

उन्होंने सभी का आवाहन किया कि विश्व के अग्रदूत हमारे प्यारे भारत वर्ष में आज अशांति दुर्भाग्यपूर्ण व चिन्ताजनक है । हम अशांति के घटक न बनें । शान्ति का साम्राज्य स्थापित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दें। यहाँ शान्ति हो व विश्व शांति का संदेश भारत की पवित्र धरा से ही सारी दुनिया में पहुँचे। भारत विश्व की महान शक्ति बनकर उभर रहा है

उन्होंने कहा कि श्रद्धा हमारे अहंकार को दूर करती है। श्रद्धावश ही हम दूसरों का हृदय से सम्मान करते हैं। श्रद्धा का प्रतिफल हमें आशीर्वाद के रूप में प्राप्त होता है । श्रद्धा का परिणाम सदैव शुभदायक और मंगलकारी होता है। इसलिए श्रद्धावान व्यक्ति विषम परिस्थितियों में भी अपने आत्मबल के सहारे टिका रहता है। सच्चे श्रद्धालुओं के सभी संकल्प पूर्ण हो जाते हैं। यदि हमारा मन निर्मल है हमारी मनोभूमि में अवगुणों का प्रदूषण नहीं है। और हम दुर्व्यसनों के शिकार नहीं है तो श्रद्धा,विश्वास और प्रेम के अंकुर पल्लवित होने में देर नहीं लगती। हम शीघ्र ही श्रद्धानत हो जाते हैं।
भगवान के कृपा पात्र बन जाते हैं गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है जैसी जिसकी श्रद्धा होती है वैसा ही उसका स्वरूप हो जाता है, क्योंकि श्रद्धा सदैव अंत: करण के अनुरूप होती है ,इसलिए मनुष्य को सदैव सात्विक श्रद्धा से युक्त रहना चाहिए।

अपने धारा प्रवाह प्रवचनों से उन्होंने सभी को मंत्रमुग्ध व भाव विभोर कर दिया । सारा वातावरण “श्री गुरू महाराज”, “कामां के कन्हैया” व “लाठी वाले भैय्या” की जय जयकार से गूंज उठा ।

श्री हरि कृपा आश्रम में गुरू पूर्णिमा महोत्सव एंव श्री राम कथा का शुभारंभ किया गया ।आश्रम में श्री महाराज जी के दर्शनों व दिव्य अमृत वचनों को सुनने के लिए लगातार भक्तों का ताँता लगा हुआ है ।


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