ध्वज पताका फहराकर हुआ जैन धर्म के दशलक्षण पर्व आगाज

Support us By Sharing

ध्वज पताका फहराकर हुआ जैन धर्म के दशलक्षण पर्व आगाज

जयपुर 19 सितम्बर। टोंक रोड़ के प्रताप नगर सेक्टर 8 स्थित शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में मंगलवार से जैन धर्म के सबसे बड़े पर्व दशलक्षण महापर्व का आगाज आचार्य सौरभ सागर महाराज सानिध्य एवं पं संदीप जैन सेजल के निर्देशन में प्रारंभ हुआ।
मंगलवार को दस धर्म के प्रथम दिवस उत्तम क्षमा धर्म पर्व श्रद्धा-भक्ति और हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। दशलक्षण पर्व के शुभारंभ के अवसर पर जैन मंदिरों में श्रावकों ने श्रद्धा भक्ति के साथ श्रीजी के कलशाभिषेक एवं शांतिधारा कर जिनेन्द्र अर्चना की एवं अष्ट द्रव्यों के साथ विधान पूजन कर अपने कर्मों की निर्जरा के लिए मंत्रोच्चारण के साथ अर्घ चढ़ाए। शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, प्रताप नगर सेक्टर 8 में प्रथम दिन प्रातः 6 बजे से मूलनायक शांतिनाथ भगवान के स्वर्ण एवं रजत कलशो से कलशाभिषेक किये गए एवं आचार्य सौरभ सागर महाराज के मुखारविंद विश्व मे शांति की कामना के साथ जिन बिम्ब प्रतिमाओं पर वृहद शांतिधारा की गई।
अखिल भारतीय दिगंबर जैन युवा एकता संघ अध्यक्ष अभिषेक जैन बिट्टू ने बताया कि दशलक्षण पर्व के शुभवासर पर 10 दिवसीय विधानपूजन का भी शुभारंभ किया गया। जिसकी मांगलिक शुरूवात आचार्य सौरभ सागर महाराज सानिध्य एवं पं संदीप जैन सेजल के निर्देशन में ध्वजारोहण स्थल पर कलश स्थापना कर ध्वज पताका फहरा कर विधिवत शुरुवात की गई।
दसलक्षण पर्व के प्रथम दिन, विधान पूजन के दौरान प्रातः 8.30 बजे आचार्य सौरभ सागर महाराज ने उत्तम क्षमा धर्म का महत्व बताते हुए कहा की आचार्यो ने कहा है की प्रतिकार करने की सामथ्र्यता होने के बावजूद भी सहन करना ही उत्तम क्षमा धर्म है। हर किसी का प्रतिकार कर उसे हरा देना या उसे नीचा दिखाना ये बड़ी बात नहीं है अपितु उसका प्रायुतर न देकर उस कड़वे घूँट को अमृत समझ कर पी जाना – सहन कर देना अथवा आत्मा विवेक को जाग्रत कर लेना यही क्षमा धर्म बतलाता है। क्षमा क्रोधी के प्रति धारण की जाती है वह क्रोधाग्नि बड़ी साम्यता से शांत की जाती है। जैसे अग्नि पांच प्रकार की होती है क्रोधाग्नि, कामाग्नि, जहराग्नि, दावाग्नि, बड़वाग्नि।
आचार्य श्री ने आशीर्वचन देते हुए कहा कि क्रोधाग्नि बाहर और भीतर दोनों और से जलाने वाली है इसे बुझाने के लिए आत्मज्ञान, स्थान परिवर्तन, बूर निमित से हटना, मौन इत्यादि अवलम्बनही सहकारी होता है। दीपायन मुनि तक क्रोध के वशीभूत होकर पूर्ण द्धारिका नगरी तक जला सकते है और अपने आप को भी भस्म कर लिया इससे बढ़कर और दृष्टान्त क्या हो सकता है अतः क्रोध को जीतकर क्षमा भाव धारण करना चाहिए। क्षमा का भाव जीवन के प्रथम दिन से शुरू होकर जीवन के अंत तक रहना चाहिए यही उत्तम क्षमा धर्म है और यही इस सृष्टि का सबसे बड़ा धर्म भी है। जिसने क्षमा करना सीख उसका पूरा जीवन भावों में धारण हो जाता है।
आचार्य पुष्पदंत सागर महाराज के शिष्य जीवन आशा हॉस्पिटल के प्ररेणा स्त्रोत आचार्य सौरभ सागर महाराज का 29 वां दीक्षा दिवस समारोह गुरुवार, 21 सितम्बर को श्रद्धा – भक्ति के साथ मनाया जायेगा।


Support us By Sharing

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *