जीनगर समाजः देवर भाभी में रंग तेरस पर खेली अनूठी कोड़ामार होली

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200 साल की है परंपरा, कड़ाही में भरा रंग, पुरुषों पर महिलाओं ने जमकर बरसाए कोड़े

भीलवाड़ा|मेवाड़ का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला भीलवाड़ा त्यौंहार मनाने के अपने अलग अंदाज के कारण पूरे राजस्थान में अपनी अलग पहचान रखता है। यहां की होली भी काफी खास है। भीलवाड़ा जिला मुख्यालय पर जीनगर समुदाय का होली खेलने का तरीका काफी अनोखा है। रंग तेरस पर कोड़ा मार होली खेली गयी। सराफा बाजार बड़े मंदिर के पास जिले भर के जीनगर समाज के लोग एकत्रित होते हैं और कोड़ा मार होली का भरपूर आनंद लेते हैं। इस होली को लेकर पुलिस महकमे की ओर से पुख्ता इंतजाम किए गए। इसमें पुलिस का अतिरिक्त बल सराफा बाजार में तैनात किया गया था और ड्रोन से व्यवस्था पर नजर भी रखी जा रही थी।

भीलवाड़ा का जीनगर समाज ने आज कोड़ामार होली खेली। होली के 13 दिन बाद रंग तेरस पर यहां समाज की ओर से होली खेलने का आयोजन किया। शहर के अलग-अलग इलाकों में रहने वाले जीनगर समाज के लोग रविवार सुबह ढोल-नगाड़ों के साथ गुलमंडी सर्राफा बाजार में पहुंचे और जमकर होली खेली।
जीनगर समाज के अध्यक्ष कैलाश सांखला ने बताया समाज रंग तेरस (रविवार) पर कोड़ामार होली खेल रहा है। यह देवर-भाभी का त्योहार है। महिला सशक्तिकरण की बात इस कोडरमार होली के माध्यम से कही है। इसमें महिलाओं ने देवरों पर कोड़े बरसाये। देवर भी भाभी पर पानी की बौछार करते दिखे। इस त्योहार से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलता है। महिलाओं को एक दिन मौका मिलता है जब वे पुरुषों की पिटाई कर सकें। यह परंपरा यहां लगभग 200 साल से ज्यादा समय से चली आ रही है।
महिलाओं के मन में साल भर की भड़ास इस दिन निकलती है। पुरुष हंसते हुए और डीजे की धुन पर नाचते-गाते हुए कोड़े की मार खाते हैं। कोड़ामार होली में नवविवाहित जोड़े भी बड़े उत्साह से भाग लेते हैं। होली खेलने के बाद युवा बुजुर्गों से आशीर्वाद लेते हैं। त्योहार में शामिल महिला लक्ष्मी सांखला ने बताया- साल भर हमें इस त्योहार का इंतजार रहता है। यह परम्परा हमारे बुजुर्ग मनाते थे। अब हम इसे आगे बढ़ा रहे हैं। सभी मिलकर होली खेलते हैं। महिलाएं अपने देवर को कोड़ों से पीटती हैं और देवर कड़ाई के पानी को खाली करते हैं। पानी खाली न हो इसलिए महिलाएं उन्हें कोड़ों से मारती है और मिलजुल कर त्योहार मनाया जाता है। सभी महिलाएं प्रोग्राम देख अपने बच्चों को सीखने का मौका देती हैं।
सूती साड़ियों से गूंथकर बनता है कोड़ा————
महिलाएं सूती साड़ियों से गूंथकर कोड़े बना लेती हैं और वहां रखे पानी व रंग से भरे कड़ाहे के पास खड़ी हो जाती हैं। पुरुष कड़ाहे से पानी की डोलची भरकर महिलाओं पर फेंकते हैं और महिलाएं उन्हें कोडे से मारती हैं। कड़ाहे पर जिसका कब्जा हो जाता है वही इसमें जीतता है।
कड़ाव में भरते हैं रंग का पानी———
कोड़ा मार होली में तीन कड़ाव में रंग का पानी डाला जाता हैं और सूती वस्त्रों से महिलाएं कोड़ा बनाती हैं और बाद में तीन घंटों तक खेल तीन बार खेला जाता है और अंत में कड़ाव पर जिसका कब्जा हो जाता हैं वह इस खेल का विजेता बन जाता हैं। मनोरंजन के हिसाब से खेले जाने वाली इस होली का पूरी जीनगर समाज को साल भर इंतजार रहता हैं। परम्परा के तहत पुरुष कड़ाव में भरा रंग महिलाओं पर डालते हैं और उससे बचने के लिए महिलाएं कोड़े से प्रहार करती हैं।


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