तथाकथित पत्रकार और पत्रकारिता संदेह के घेरे में, पत्रकारिता अब जूनून नहीं, बना जेब का माध्यम

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तथाकथित पत्रकार और पत्रकारिता संदेह के घेरे में, पत्रकारिता अब जूनून नहीं, बना जेब का माध्यम

जाने कहाँ से ये टपके… तथाकथित पत्रकार बन, पत्रकारिता में लपके
पत्रकारिता कोई व्यवसाय नहीं है, यह समाज के हित के लिए काम करने का जूनून है…

नोट : यदि आप एक पत्रकार है तो एक एक शब्द को ध्यान से पढियेगा, 

वर्तमान परिदृश्य में जो मैंने देखा, जो जाना, जो समझा, वही अपने शब्दों से माध्यम से उकेरा है, यदि मेरे शब्द आपको आहात करते है, तो इसके लिए माफी चाहुंगा…लेकीन वर्तमान परिदृश्य में वास्तविकता यही है !

कड़वा लेकिन सच

एक समय ऐसा था जब पत्रकारों के नाम से चाहे कोई भी नेता, अभिनेता या फिर कोई भी अधिकारी कोंसों दूर भागते थे और सुबह सुबह लोग इंतजार करते थे कि समाचार पत्र कब आएगा और देशनोक की ख़बरों से कब खुद को आत्मसात करेंगे, समाचार पत्र में छपे हुए लेख और ख़बरें पत्थर की लकीर हुआ करती थी और जब पत्रकार किसी व्यक्ति के खिलाफ़ कुछ खबर छाप देते थे तो मानों उस व्यक्ति की जिंदगी में तो भूचाल सा आ जाता था, फिर क्या बस उस व्यक्ति को इसी बात का इंतज़ार रहता था कि कब मेरे खिलाफ कार्यवाही हो जाये और होती भी थी साहब और जब एक व्यक्ति के खिलाफ़ कार्यवाही होती थी तो सभी नेता, अभिनेता या अधिकारी और कर्मचारी अलर्ट मोड पर हो जाते थे और इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं कि इस भारतवर्ष में पता नही कितनी कार्यवाही कितने ही लोगों पर हुई है !
ऐसे कई नामी गिरामी पत्रकार है, जिनके नाम से कुर्सियां हिला करती थी और आज भी बहुत सारे पत्रकार ऐसे है, जिनके नाम से लोगों की चूलें हिलती है ! अब यदि आज की बात करें तो…

जाने कहाँ से ये टपके.. तथाकथित पत्रकार बन, पत्रकारिता में लपके…

आज का युग डिजिटल युग है साहब इसी बात का फायदा उठाकर कंही ना कंही आज के समय में इन लपकों ने पत्रकारिता का चोला पहन लिया है, जिधर देखो उधर ये लपके ही नज़र आते है ! आजकल लपकों को देखो डिजिटल युग का भरपूर फायदा उठा रहे है, गूगल प्ले स्टोर पर ऐसी कई एप आ गई है, जिससे तुरन्त अखबार जैसी खबर बन जाती है और ये लपके किसी और की ख़बर आने से पहले तो एप के माध्यम से खबर बनाकर व्हाट्सएप पर तुरंत डाल देते है, जिससे इन्हें लगता है कि इनकी पौप्युलरटी जंगल में आग की तरह फैलती जा रही है और अपने आपको सबसे बेहतर पत्रकार समझ बैठते है और लोगों का क्या लोग बस इन लपकों को समझ बैठते है पत्रकार ! अब लोगों को क्या पता कि जो खबर किसी लपके द्वारा डाली गई है, वह तो सिर्फ एक एप का कमाल है, दिनभर बस एक जगह बैठकर चाहे खुद के घर पर हो या फिर अपने किसी प्रतिष्ठान पर बस बैठे-बैठे दिनभर व्हाट्सएप पर नज़रें गडाये हुए रहते है कि कब कोई छोटी मोटी खबर मिले और खबर मिलते ही ये लपके उस खबर को लपक बैठते है और एप पर किया कॉपी पेस्ट और बनी अखबार की खबर और ये गई अखबार जैसी बनाई हुई पेपर की कटिंग व्हाट्सएप पर खबर !

Journalists and journalism

अब यदि डिजिटल युग की ही बात चल रही है तो पिछले वर्षों में कई ऐप ऐसी भी है, जिनके द्वारा तो इन लपकों को कुछ 10 या 20 रूपये देकर इनका ज़मीर खरीद लिया है और इन लपकों ने सिर्फ 10 या 20 रूपये की वजह से अपना सब कुछ बेच दिया, अब चाहे खबर खुद के क्षेत्र की हो या फिर और कंही की, बस एक या दो विजुअल लिए और ठोक दी खबर ! अब चाहे उससे किसी का अहित ही क्यों ना हो जाये, आखिर ज़मीर जो बेच दिया और ये ऐप के मालिक बिना कुछ पुष्टि किये ख़बरों को प्रकाशित कर देते है और तो और यदि कोई लपका सही खबर लगाता है और वो किसी अधिकारी के खिलाफ है तो उसे पब्लिश ही नहीं किया जाता, साथ ही यह भी देखने में आया है कि यहाँ जातिवाद और धर्मवाद का पूरी तरह बोलबाला है ! आखिर करें भी तो क्या करें साहब, ये लपके और इनकी खबर लपकने वाला ऐप का मालिक अपनी टीआरपी के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है ! पता नहीं इन ऐप वालों को फंडिंग कहाँ से होती है, साथ ही इस बात पर भी गौर करना आवश्यक है कि ये लपके खबर तो डालते ही है और इन ख़बरों को देखने और पढने के लिए करोडो लोग इन एप्स को डाउनलोड कर लेते है लेकिन लोगों को क्या पता जिस एप को डाउनलोड करते है उसके बाद उस पर खुद की इमेल आई-डी और फोन नम्बर डालने के बाद ही उस ऐप पर ख़बरें देखने और पढने को मिलती है ! लोग ये नही जानते कि ऐप डाउनलोड करते ही उनकी सारी प्राइवेसी उन लपकों के पास पंहुच जाती है और इसके दूरगामी परिणाम क्या हो सकते है…? यह तो सभी समझ सकते है, यह पूर्णतया एक चिंतनीय विषय है, अब करें भी तो क्या करे साहब लोगों की आँखों पर डिजिटलाइजेशन का पारदर्शी चश्मा जो चढ़ा हुआ है !
अब बात करते है इन लपकों के पैदा किये हुए इनसे भी बड़े लपके जिन्हें इन लपकों ने अपनी आरामदेही को बरक़रार रखने के लिए पैदा किया है, क्युकी ये लपके तो खुद कंही जाते नहीं बस, एक जगह बैठे बैठे खबरों को लपकने के लिए छोड़ देते है, पैदा किये गए लपके, अब ये पैदा हुए लपके जहाँ देखो वहां मंडराते नज़र आते है और जिधर देखो पत्रकारिता का चोला ओढ़कर, जहाँ देखो वहां अपनी पत्रकारिता झाड़ते हुए दिखाई देते है!

Journalists and journalism

पिछले कुछ महीने पहले की बात है किसी व्यक्ति को एक होटल में आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित किया जाना था, एक आम आदमी की तरह मै भी लोगों के साथ चला गया, वहां मेरी भूमिका एक पत्रकार की नहीं बल्कि एक आम आदमी की थी। जब होटल में कार्यक्रम स्थल पर पहुंचा तो पत्रकार दीर्घा में कई अनजान और जाने पह्चाने चेहरे बैठे थे। मैं तो एक पत्रकार नहीं बल्कि आम आदमी की तरह दर्शक दीर्घा में किसी के साथ बैठ गया। कुछ ही देर में कार्यक्रम शुरू हुआ। इसी दौरान पत्रकारों के हुलिए में लगभग एक दर्जन लोग कैमरे, मोबाइल, माइक आईडी आदि लिए उठे और आयोजकों व अतिथियों के इंटरव्यू लेने लगे। पत्रकारनुमा इन लोगों ने बाकायदा किसी ने डायरी ले रखी थी, किसी ने कैमरा, किसी ने माइक आईडी तो किसी ने पत्रकारिता का कार्ड लटका रखा था। प्रथम दृश्या यह पूरी तरह पत्रकार ही नजर आ रहे थे लेकिन मेरी ताजा जानकारी के अनुसार यह लोग पत्रकार नहीं थे। चलता प्रोग्राम रुकवा कर ये लोग आयोजकों व अतिथियों के बाइट लेने लगे। आयोजक व अतिथि भी बड़े शौक से अपने वक्तव्य देने लगे और इस दौरान लगभग पौन घंटा निकल गया, फिर कार्यक्रम विधिवत चलने लगा। बाद में ये लोग अति विशिष्ट अतिथियों की टेबलों पर आकर बैठ गए और बिल्कुल हाईटेक व आधुनिक पत्रकारों के जैसा आचरण करने लगे। बिल्कुल वही भाषा शैली, वही स्टाइल, वही वोकैबलरी का इस्तेमाल और वही बातें जो आमतौर पर पत्रकार करते हैं। बाइट से लेकर हेडिंग, कॉलम, फ़ाइल और प्रिंट तक की सभी तरह की बातें करते नजर आए। मेजबान भी इन को पूरी तवज्जो देते हुए खूब खातिर कर रहे थे। मैंने जिज्ञासावश पूछ लिया कि आप लोग कौन हैं, तो मेरा भी इंटरव्यू लेने लगे जब उनसे उनके बैनर के बारे में पूछा गया तो उन्होंने अलग-अलग बैनर भी बताएं, कुछ वास्तविक पत्रकार भी वहां पर मौजूद थे। जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वह भी इनको नहीं जानते लेकिन ये और इन जैसे लोग लगभग हर कार्यक्रम में नजर आते है। कार्यक्रम चलता रहा और मै सोचता ही सोचता रहा कि आखिर ये लोग है कौन…?
आख़िरकार मेरे अंदर का पत्रकार जाग उठा और शुरुआती जानकारी हासिल करने पर ही पता चला कि इन तथाकथित पत्रकारों का किसी भी अखबार, न्यूज़ चैनल तो दूर की बात यूट्यूब चैनल तक से कोई वास्ता नहीं था। फिर भी वो न केवल पत्रकारों की तरह यहां डटे हुए थे, बल्कि बाकायदा अपनी पत्रकारिता का रुतबा दिखाते हुए जमकर रौब गांठ रहे थे। क्योंकि मैं उन से अनभिज्ञ था तो उन्होंने मेरा इंटरव्यू लेने का भी प्रयास किया लेकिन मैंने विवषता जताते हुए हाथ जोड़ दिये तो मुझे माफी मिल गई। इस घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। इस दिशा में मैंने बहुत चिंतन, मनन, अनुसंधान, तफ्तीश, जांच सब कुछ किया तो पता चला कि शहर में होने वाले कई कार्यक्रमों में इस तरह के ‘पत्रकारों’ का गिरोह सक्रिय रहता है, जो अपना मायाजाल बिछा देता है। खास बात यह कि आयोजक को भी वास्तविकता का पता नहीं होता है। बात की गहराई में जाने पर यह भी पता चला कि यह लोग बाकायदा इस काम के लिए अपना पैकेज बता कर अच्छा खासा पैसा भी वसूल करते है

अब इनको अगर इन्हें पत्रकारिता के लपके ना कहें तो और क्या कहें…?

यहाँ यह कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि पत्रकारिता के इन लपकों ने पत्रकारिता को अपने शिकंजे में जकड़ लिया है और काफी हद तक पत्रकारिता का मूल स्वरूप भी बदल दिया है। वास्तविकता की पुष्टि करने के लिए इसके बाद भी मैं ऐसे कई कार्यक्रमों में गया तो इसी तरह के लपकों की जबरदस्त सक्रियता को देखा और इनके आतंक को बहुत करीब से महसूस किया। इनकी सक्रियता इतनी जबरदस्त है और मायाजाल इतना मजबूत है कि कोई साधारण पत्रकार इसको भेद भी नहीं सकता और आयोजक तो इन्हीं लपकों को असली मीडिया समझते हैं।

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यह लोग खबरें कहां देते हैं…? कैसे देते हैं…?

ये ठीक से नहीं समझ पाया लेकिन कभी कभार इन की खबरें प्रकाशित और प्रसारित भी होती है। यह एक अनुसंधान का विषय है। लगता है कि हमारे ही कुछ साथी पत्रकार भी उनके साथ मिले हुए हैं, जो पर्दे के पीछे से इनको सहयोग करते है। अरे सहयोग ही नहीं बल्कि कुछ लोभवश अपने जीवन के वो अमूल्य क्षण जो इन्होने रात-रात बैठकर और पता नही कितने वर्षों से अपने जीवन में की गई मेहनत को कुछ ही पलों में इनके आगे परोस देते है, भूल जाते है कि पिछले वर्षों में इन सीनियर लोगों ने एक-एक खबर बनाने के लिए अपनी कितनी रातें कितना अपना समय पत्रकारिता को दिया है, एक खबर बनाने के लिए ये हमारे सीनियर साथी खबर बनाने के लिए पता नहीं कितने पेज बिगाड़ा करते थे, जब तक कि इन्हें अपनी लिखी हुई खबर का एक-एक शब्द एक-एक लाइन इन्हें सटीक नहीं लगती थी ! परन्तु क्या करे इन लपकों ने पता नहीं किस तरह से इन्हें अपने जाल में फांस लिया है, जिससे ये चाहकर भी नहीं निकल सकते!
पिछले कुछ सालों में फेसबुकिया पत्रकारों की सक्रियता में जबरदस्त इजाफा हुआ है और जहाँ देखो वहां इन फेसबुकिया पत्रकारों का बोलबाला है, अब कार्यक्रम चाहे कोई भी हो बस अपने मोबाइल में खोला फेसबुक और कर दिया, फेसबुक लाइव, अब चल रहे कार्यक्रम में चाहे कुछ भी चल रहा हो कार्यक्रम के दौरान किसी ने अपशब्द ही क्यों ना कहे हो, बस कर दिया लाइव और जब इनसे पूछा जाता है कि न्यूज़ कहाँ मिलेगी तो बड़े शान से कहते है अरे वो हमारा फलां फलां फेसबुक पेज है,  न,  उस पर लाइव है और ये लो साहब बन गए हम पत्रकार। व्हाट्सएप में मीडिया के कुछ ग्रुप में इस तरह के लपके पूरी तरह सक्रिय हैं, जो बाकायदा आयोजनों की सूचनाएं भेजते हैं, फिर आयोजन की जानकारी भेजते हैं और फिर आयोजन की खबरें प्रेषित करते हैं। इस तरह लपकों का समानान्तर नेटवर्क डवलप हो गया है जो मूल पत्रकारिता को न केवल डिस्टर्ब कर रहा है बल्कि दशा और दिशा भी बिगाड़ रहा है। पत्रकारिता के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए इस नेटवर्क का पूरी तरह से पर्दाफाश करके इसे ध्वस्त करना अति आवश्यक है।

Journalists and journalism
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सब कुछ समझ से परे हो चला है…

देश का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकार के लिए आज के समय में पत्रकारिता करना एक जोखिम भरा सफर बन गया है। सच्चाई के रास्ते पर निष्पक्ष पत्रकारिता करना इतना कड़वा सच हो गया है, जैसे किसी के साथ कोई अप्रिय घटना कर दी हो। खनन माफिया, भूमाफिया, स्मैक तस्करों, सट्टा किंग, दलालों, हथियार तस्कर और भ्रष्ट अधिकारियों के काले कारनामों का पर्दाफाश करना, आज के समय में सच की राह पर चलने वाले पत्रकार को महंगा पड़ रहा है। जो पत्रकार गरीबों, शोषितों, बेसहारों की आवाज उठाता था, वह आज अपनी आवाज भी नहीं उठा सकता। कई बार प्रशासनिक अधिकारीयों और समाज के वरिष्ठ लोगों की बातों को ध्यान में रखते हुए किन्ही मामलो में की वार्ताओं को गुप्त भी रखना पड़ता है, क्युकी कई बार देश-प्रदेश, और स्थानीय मामलो में हमारे समाज में किसी भी बात को लेकर को वैमनस्यता पैदा ना हो, कुल मिलाकर सभी के बीच आपसी सद्भाव व प्रेम बना रहे, ऐसी एक सच्चे पत्रकार की सोच होती है ! लेकिन कुछ लपकों द्वारा लगातार सच्चे पत्रकारों को किनारा करते हुए और अपनी थोथी लोकप्रियता हांसिल करने के लिए ये समाज, धर्म, जात-पात सभी को ताख पर रखकर सिर्फ और सिर्फ अपनी लोकप्रियता बढ़ने के लिए समाज और देश में आग लगाने में भी पीछे नहीं रहते !

पत्रकारिता कोई व्यवसाय नहीं है, यह समाज के हित के लिए काम करने का जूनून और शौक है…

उनकी चापलूसी करते रहो तो पत्रकार अच्छा कहलाता है। अगर पत्रकार समाज के सामने उनकी खामियों को उजागर करता है, तो उसे ब्लैकमेलर और फर्जी पत्रकार की उपाधि दी जाती है। मेरी बेबाक कलम को रोकने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए जाते है, झूठे आरोप लगाकर अधिकारियों को कई बार शिकायती पत्र भी देते हैं। लेकिन, मुझे अपने जिले के लोकप्रिय अधिकारियों से पूरी उम्मीद है कि वो सभी मेरी भावनाओं को समझेंगे और निष्पक्षता के साथ दूध का दूध पर पानी का पानी करेंगे। आखिर में मैं यही कहना चाहूँगा कि अब पत्रकारिता करते हुए मेरी जान को भी खतरा बना हुआ है। लेकिन, मैं सच्चाई की राह पर चलकर पत्रकारिता करता रहूंगा। ना मेरी कलम कभी रुकी और नाही किसी कीमत पर रुकेगी चाहे कुछ भी हो, चाहे कोई भी परिणाम हो, मैं किसी भी कीमत पर किसी साजिश में फंसकर पत्रकारिता नहीं छोड़ूंगा!

मेरे लिए हमेशां समाजहित, राष्ट्रहित सर्वोपरि है, अपने कर्तव्य और लोगों के विश्वास पर पूर्णतया खरा उतरने की कोशिश में कभी कमी नहीं आने दूंगा !
मैं यह भी बहुत अच्छे से जानता हूँ कि इतना सब कुछ पढने के बाद कुछ तथाकथित पत्रकारों द्वारा मुझ पर हमले भी किये जायेंगे लेकिन कलम मेरी बेबाक है रुकेगी नहीं !

पंकज शर्मा


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