सुहागिनों के सौभाग्य का प्रतीक है करवा चौथ व्रत

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सुहागिनों के सौभाग्य का प्रतीक है करवा चौथ व्रत

प्रयागराज।ब्यूरो राजदेव द्विवेदी। करवा चौथ का व्रत सुहागिन स्त्रियों के सौभाग्य का प्रतीक होता है और उनका यह मुख्य त्यौहार है और यह ब्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए करती हैं और यह करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस बार करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर बुधवार के दिन होगा।करवा चौथ की कहानी है कि, देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहती थीं। एक दिन करवा के पति नदी में स्नान करने गए तो एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया और नदी में खिंचने लगा। मृत्यु करीब देखकर करवा के पति करवा को पुकारने लगे। करवा दौड़कर नदी के पास पहुंचीं और पति को मृत्यु के मुंह में ले जाते मगर को देखा तो करवा ने मगरमच्छ को सूती धागे से बांध दिया और मृत्यु के देवता यमराज से मगरमच्छ को नरक भेजने के लिए कहा। यमराज ने मना कर दिया करवा ने यम को श्राप देने और उसे नष्ट करने की धमकी दी। पतिव्रता समर्पित पत्नी द्वारा श्राप दिए जाने के डर से यमराज ने मगरमच्छ को नरक भेज दिया और करवा के पति को लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया।असल में यह करवा नाम की एक दूसरी स्त्री की कहानी है, जिसने सावित्री की ही तरह अपने पति के प्राण यमराज से बचा लिए थे. तब यमराज ने करवा को उसकी पति श्रद्धा देखकर वरदान दिया था कि इस विशेष दिन को तुम्हारे नाम के व्रत से जाना जाएगा और जो स्त्री ऐसा व्रत करेगी उसका अखंड सुहाग बना रहेगा।इसके साथ एक अन्य पौराणिक कथा यह भी है कि इंद्रप्रस्थपुर के एक नगर में वेद शर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था वेद शर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था जिससे उसके सात महान पुत्र और वीरावती नाम की एक गुणवान पुत्री थी। सात भाइयों की वीरावती केवल एक अकेली बहन थी जिसके कारण वह अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने भाइयों की भी लाडली थी। जब वह विवाह के लायक हो गई तब उसकी शादी एक उचित ब्राह्मण युवक से हुई। शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहां थी तब उसने अपनी भाभियों के साथ पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। करवा चौथ के व्रत के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी के कारण वह मूर्छित होकर जमीन पर गिर गई।भाइयों के द्वारा बहन का मुरझाया हुआ चेहरा देखा नहीं जा रहा था और भाइयों ने व्रत छोड़ भोजन करने की बात कही। भाइयों के लाख आग्रह करने पर भी बहन ने उनकी बात नहीं मानी और कहा की बिना चंद्र दर्शन व्रत तोड़े भोजन नहीं करूंगी।तब सातों भाइयों ने मिलकर एक योजना बनाई बाहर जाकर पेड़ की ओट में आग लगा दी और उसके प्रकाश को बहन को दिखा कर कहा देखो बहन चांद निकल आया पूजा करके भोजन ग्रहण कर लो अपने भाइयों के द्वारा इस प्रकार चांद निकलने की बात को सुनकर बहन ने अपनी भाभियों से भी कहा कि आप लोग भी मेरे साथ पूजा कर लीजिए चांद निकल आया है परंतु उसकी भाभियों को अपने पतियों द्वारा की गई इस युक्ति के बारे में पता था।उन्होंने अपनी नंद को इस विषय में बताया परंतु बहन ने भाभियों की बात को न मानकर पूजन किए बिना अग्नि के प्रकाश को ही चंद्र का प्रकाश मानकर पूजन कर लिया और भोजन भी ग्रहण कर लिया। इस प्रकार उसका व्रत टूट गया जिससे भगवान उससे नाराज हो गए उसके पति की हालत बिगड़ गई और हालत ज्यादा बिगड़ने के कारण मृत्यु हो गई।तब उसकी भाभियों ने सारी बातों से उसे अवगत कराया तब भाइयों को भी अपनी गलती का बहुत पछतावा हुआ उसकी बहन का अपने पति के प्रति विलाप सुनकर मां गौरी एक बुढ़िया का वेष बनाकर आई और बोली तुम्हे अपने पति के मृतशरीर को अगले करवा चौथ आने तक संभाल कर रखना होगा अगले वर्ष जब करवा चौथ आएगा तुम पूरे विधि विधान से पूजा करोगी और चंद्र दर्शन के पश्चात जल ग्रहण करोगी तब तुम्हारा पति जीवित हो जाएगा। उस कन्या ने बूढी औरत की कही हुई बात का अनुसरण करके ठीक वैसा ही किया व अगले वर्ष के करवा चौथ आने पर पूरी निष्ठा से विधि विधान के साथ पूजा किया तथा चंद्र दर्शन करने के बाद ही जल ग्रहण किया जिससे उसके पति जीवित हो गए।उस दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चन्द्रमा का पूजन महिलाएं करती हैं इस व्रत में व्रत कथा का बहुत अधिक महत्व होता है। चांद के दर्शन से पहले करवा चौथ व्रत कथा का पाठ अवश्य किया जाता है करवा चौथ की कहानी सुनने की आवश्यक चीजों में एक विशेष मिट्टी का बर्तन, जिसे भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है, पानी से भरा एक धातु का कलश, फूल, अंबिका गौर माता, देवी पार्वती की मूर्तियां और कुछ फल, मठरी और शामिल हैं। खाद्यान्न एक करवा, कलश या स्टील का गिलास पानी एक चम्मच दूध और चुटकी भर चीनी और चावल से भरा होता है। इसे शाम और चांद पूमा के लिए रखा जाता है और थाली के बाहर रखा जाता है।
करवा चौथ थाली में करवा या एक मिट्टी का बर्तन शांति और समृद्धि का प्रतीक एक दीपक एक चलनी एक लोटा पानी सिन्दूर मिठाई जैसे टुकड़े होते हैं। पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर महिलाएं शाम को चंद्र दर्शन करके चंद्र देव को अर्घ्य देकर शंकर पार्वती गणेश कार्तिकेय के आराधना कर अपने पति के हाथों जल ग्रहण करती हैं और पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।


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