26 वर्षो से शाहपुरा में हो रहा है कवि सम्मेलन, देश में किसी कवि की स्मृति में पहला अनवरत चलने वाला कार्यक्रम
शाहपुरा – मूलचन्द पेसवानी, बीकानेर के राजस्थानी भाषा के.ख्याति प्राप्त साहित्यकार राजेन्द्र स्वर्णकार को शनिवार को शाहपुरा में लोक कवि मोहन मण्डेला स्मृति लोक साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया। शाहपुरा विधायक लालाराम बैरवा के मुख्य आतिथ्य में आयोजित 26 वें लोक कवि मोहन मण्डेला स्मृति अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के अवसर पर यह सम्मान दिया गया। सम्मान स्वरूप आयोजक संस्था साहित्य सृजन कला संगम संस्थान की ओर से राजेंद्र स्वर्णकार को सम्मान,नकद राशि, श्रीफल, शॉल, उपरणा, पगड़ी एवं मान पत्र भेंट करके किया गया। कवि सम्मेलन मध्य रात्रि तक चला जिसमें विधायक का निर्वाचन के बाद पहली बार शाहपुरा आने पर सार्वजनिक अभिनंदन किया गया। कार्यक्रम में लोक कवि मंडेला के नाम पर शाहपुरा में टाउन हाल का निर्माण कराने की मांग की गई। यह कार्यक्रम शाहपुरा में 26 वर्षो से तो मोहन मंडेला की स्मृति में ही हो रहा है, शाहपुरा में आयोजन की श्रृंखला पहले से चल रही है। देश में भी किसी साहित्यकार या कवि की स्मृति में आयोजित होने वाला पहला कार्यक्रम है।
नगर परिषद् सभापति रघुनन्दन सोनी की अध्यक्षता में हुए कार्यक्रम में शाहपुरा जिला कलेक्टर टीकम चंद बोहरा, पूर्व व्यापार मण्डल, अध्यक्ष लालूराम जागेटिया, राजस्थान तैराकी संघ के अध्यक्ष अनिल व्यास, बनेड़ा भाजपा मंडल अध्यक्ष गोपाल चरण सिसोदिया, बनेड़ा प्रधान प्रतिनिधि विजेन्द्र सिंह, केवीएसएस अध्यक्ष प्रद्युमन सिंह, पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष कन्हैया लाल धाकड़, एमएलडी शिक्षण संस्थान के चेयरमेन चन्द्रप्रकाश दुबे की मोजूदगी में विधायक लालाराम बैरवा का अभिनन्दन किया। इस मौके पर विधायक ने कहा कि मैं शाहपुरा क्षेत्र विकास विस्तार में सदैव आशाओं पर खरे उतरने की कोशिश करूंगा।
संचालिका कवयित्री डॉ.कीर्ति काले एवं संयोजक डॉ.कैलाश मण्डेला ने लोककवि मोहन मण्डेला के नाम पर आडिटोरियम बनाने के लिए विधायक बैरवा को पत्र दिया। रात्रि 3 बजे तक चले कवि सम्मेलन में नामचीन कवियों ने एक से बढ़कर एक रचना प्रस्तुत कर श्रोताओं को बांधे रखा।
संचालन कर रही डॉ. कीर्ति काले ने श्रृंगार के बेहतरीन गीतों से नई ऊंचाईयां प्रदान की। उनका श्रृंगार गीत मद भरी रात को प्यार की बात को चांदनी में नहाकर निखरने तो दो एवं अयोध्या में अगर ढूंढो तो श्रीराम मिलते हैं, जो वृंदावन में अगर ढूंढों हमें घनश्याम मिलते हैं, अगर काशी में ढूंढोगे तो भोलेनाथ मिल जाएं, मगर मां-बाप के चरणों में चारों धाम मिलते हैं तथा याद कोई करता है, हिचकियां बताती है, कौन पास कितना है, दूरियां बताती है। सुनाकर कार्यक्रम को परवान चढ़ा दिया।
शुरूआत माण्डलगढ़ से राजस्थानी गीतकार मोहन पुरी की सरस्वती वंदना ‘सरस्वती मां ज्ञान दे से की। उन्होंने ‘मन की पटरी से होकर धड़-धड़ करती रेल चली’ सुमधुर गीत सुनाया। इन्दौर से आए हास्य कवि रोहित ‘झन्नाट’ ने हास्य फुलझडियों से हास्य में सराबोर किया। सूत्रधार डॉ. कैलाश मण्डेला ने परम्परा अनुसार लोक कवि मोहन मण्डेला के लिखे श्रृंगार का बेहतरीन गीत ‘जोड़ी रूपाळी’ खेत आंगणे रे, ढोला-मारू बीज बोय, या जोड़ी जुड़ी रे बेजोड़, जोड़ी रूपाळी सुनाया।
कोटा के डॉ. आदित्य जैन ने अपनों में भी सबसे अपनी रही, आज होकर अमानत पराई गई, भाई रोया कि लड़ने का कारण गया, बाप रोया कि मेरी दवाई गई गीत सुनाकर सभी को भाव विभोर कर दिया। हास्य कवि दिनेश बंटी की हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों पर एक से बढ़कर एक हास्य फुलझड़ियों पर श्रोताओं ने खूब ठहाके लगाए। आगरा के हास्य गीतकार डॉ. प्रशान्त देव ने तमाम रात यही सोचते हुए गुजरी कि मोड़ कौनसा आएगा अब कहानी में तथा कैसे भूलंगा बचपन, कैसे भूलूंगा प्यार, वो बहकी-बहकी बातें वो सिगरेट चारमीनार, अपनो पर ही वार करेंगे पापाजी, खुद मौसी से प्यार करेंगे पापाजी जैसे हास्य गीतों से श्रोताओं को खूब आनन्दित किया।
शाहपुरा जिला कलेक्टर टीकमचंद बोहरा ने वर्तमान सामाजिक संदर्भों को रेखांकित करते हुए कुत्तों के प्रति प्रेम और अपनों से उदासीनता पर अपनी शानदार कविता प्रस्तुत कर कटाक्ष किया। मां की ममता पर कविता प्यार अंधा होता है सुनाकर सभी का दिल जीत लिया।
लूणकरणसर से राजस्थानी भाषा के ओजस्वी कवि छेलु चारण छैल ने मीरां रै गीतड़लां गूंजी दादू कथा कहाणी है, पीथल री पाती रा आखर राखे पत रो पाणी है को श्रोताओं से भरपूर दाद मिली। गीतकार सत्येन्द्र मण्डेला ने पीळो रंग तो ई जगती में मान बढ़ावै रे सुनाकर कर मंत्रमुग्ध कर दिया। बारां के वीर रस के कवि राजेन्द्र पंवार ने मां सख्त होकर भी ना क्रूर होती है, मैली है मिट्टी कभी ना धूल होती है, पांव से रोंदो मत शीष पर रखो इसे दोस्तों, देश की मिट्टी सिंदूर होती है, सुनाई। पचेवर टोंक के शायर महबूब अली महबूब ने अपनी गजल और शेरों से अपनी खास प्रस्तुति दी।
लोक साहित्य सम्मान से सम्मानित गीतकार एवं साहित्यकार बीकानेर के कवि राजेन्द्र स्वर्णकार ने लागी बिरखां री जड़, तड़‘र तड़‘र तड़, तथा उनका प्रसिद्ध गीत ‘दिवटियों’ सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कवि डॉ. कैलाश मण्डेला ने गीत आंगळयां री पौरां म, नैणा रा डोरां म, रम गयो, रम गयो, रम गयो रे, गम गयो, गम गयो, गम गयो रे सुनाकर सभी को रोमांचित कर दिया। उनकी हाल ही में प्रकाशित हेली सुणजे ए पुस्तक में से प्रसिद्ध रचना हेली मेळो लाग्यो भारी, कांई लैवण री मन धारी सुनाकर आयोजन को शिखर पर पहुंचा दिया। इसके पश्चात सभी ने दो मिनट परम्परा अनुसार करतल ध्वनी से लोक कवि मोहन मण्डेला को श्रद्धांजलि अर्पित की।ं संस्थान अध्यक्ष जयदेव जोशी ने सभी का आभार प्रकट किया।