प्रयागराज। जनपद के यमुनानगर लालापुर क्षेत्र के ग्राम गिधार में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन सुदामा चरित्र का वर्णन सुन भाव विभोर हुए श्रोता। कथा वाचक जगतगुरु रामानुजाचार्य स्वामी धराचार्य ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे। परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है,मित्रता खत्म हो जाती है।उन्होंने कहा कि एक सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर मित्र कृष्ण से मिलने द्वारकापुरी जाते हैं।जब वह महल के गेट पर पहुंच जाते हैं, तब प्रहरियों से कृष्ण को अपना मित्र बताते है और अंदर जाने की बात कहते हैं।सुदामा की यह बात सुनकर प्रहरी उपहास उड़ाते है और कहते है कि भगवान श्रीकृष्ण का मित्र एक दरिद्र व्यक्ति कैसे हो सकता है। प्रहरियों की बात सुनकर सुदामा अपने मित्र से बिना मिले ही लौटने लगते हैं। तभी एक प्रहरी महल के अंदर जाकर भगवान श्रीकृष्ण को बताता है कि महल के द्वार पर एक सुदामा नाम का दरिद्र व्यक्ति खड़ा है और अपने आप को आपका मित्र बता रहा है। द्वारपाल की बात सुनकर भगवान कृष्ण नंगे पांव ही दौड़े चले आते हैं और अपने मित्र को रोककर सुदामा को रोककर गले लगा लिया। इस दौरान कथा के मुख्य यजमान रामानुज पाण्डेय व अनारकली पाण्डेय के साथ पूर्व लेखपाल संतोष मिश्रा, पूर्व प्रधान राजीव त्रिपाठी, सुरेन्द्र पांडेय,प्रधान गोइसरा प्रतिनिधि
बीरेंद्र पाण्डेय, बबलू पाण्डेय, देवप्रयाग द्विवेदी, अनूप तिवारी, मंगला प्रसाद तिवारी, चंद्रमणि पाण्डेय सहित सैकड़ों श्रोता उपस्थित रहे।