रणथम्भौर की दीवारों पर उकेरी जंगल की जीवंत कहानियां


राजकुमार शाक्यवाल की अनूठी कला पहुंची विदेशों तक

सवाई माधोपुर, 18 अप्रैल। विश्वप्रसिद्ध रणथम्भौर टाइगर रिजर्व बाघों और वन्यजीवों के लिए मशहूर है, वहीं अब यह क्षेत्र चितेरे कलाकारों की कला का भी अद्भुत केंद्र बनता जा रहा है। इन्हीं कलाकारों में एक राजकुमार शाक्यवाल है जिन्होंने अपने चित्रों के माध्यम से रणथम्भौर को एक नई पहचान दी है। उनकी कलाकृतियां न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी सराही जा रही हैं।
राजकुमार शाक्यवाल का जन्म 1 जनवरी, 1978 को मोईकलां (बांरा जिला) में हुआ। उन्हें बचपन से ही जीव-जंतुओं के चित्र बनाने का शौक था। सातवीं कक्षा में शुरू हुआ यह शौक दसवीं तक आते-आते उनके लिए कमाई का साधन भी बन गया। बायलोजी की प्रैक्टिकल फाइल्स बनाकर उन्हें एक फाइल के 200 रुपये तक मिलने लगे। यहीं से उनके कलाकार जीवन की नींव पड़ी।
15 वर्ष की उम्र में राजकुमार ने एक टाइगर पेंटिंग सदर कोतवाली के थानेदार घांसीराम को भेंट की, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने राजकुमार को सवाई माधोपुर शहर के प्रसिद्ध कलाकार के पास भेजा, जहाँ उन्होंने छह माह तक चित्रकला की बारीकियां सीखीं। इसी दौरान ऑस्ट्रेलिया से आए एक फिल्मकार दंपत्ति ने उन्हें रणथम्भौर पर आधारित डॉक्यूमेंट्री फिल्म में बाल कलाकार के रूप में चुना।
उनके पेंटिंग के जुनून ने उन्हें जयपुर खींच लिया, जहां उन्होंने दो वर्षों तक पोर्ट्रेट और सिनेमा पोस्टर्स बनाना सीखा। बाद में वे सवाई माधोपुर लौट आए और रणथम्भौर टाइगर रिजर्व से जुड़ी कई महत्वपूर्ण लोकेशनों पर पेंटिंग्स बनाकर अपनी कला का परचम लहराया।
कोटा दर्रा के कनवास रेन्ज में पक्षियों व वन्य जीवों की पेंटिंग बनाई। वहीं सवाई माधोपुर में गणेशधाम प्रवेश द्वार, वन विभाग कार्यालय, सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन, आलनपुर नर्सरी, रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व (बूंदी), मुंबई स्थित मुंबादेवी मंदिर, कोलकाता के गरियाहाट में 9 मंदिर उनके उल्लेखनीय कार्यस्थलों में शामिल है। राजकुमार शाक्यवाल द्वारा बनाई गई दीवार चित्रकारी में सजीव होते वन्यजीव जैसे मगरमच्छ, सारस, तेंदुआ, खरगोश और हिरण स्पष्ट दिखाई देते हैं। इन चित्रों की बारीकी और यथार्थता उनकी कलात्मक दक्षता को दर्शाती है।
प्रसिद्ध लेखक व पर्यावरणविद् वाल्मीकि थापर के निर्देशन पर डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. द्वारा रेलवे स्टेशन के प्रोजेक्ट में उन्हें पेंटिंग का अवसर मिला, जिससे उन्हें व्यापक पहचान मिली। इसके बाद उन्होंने भरतपुर के घाना पक्षी विहार, नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क, कोटा रेलवे स्टेशन समेत कई स्थानों पर वन्यजीवों की जीवंत चित्रकारी की।
राजकुमार न केवल अपनी कला से जीविका अर्जित कर रहे हैं, बल्कि अपने चित्रों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण और वन्यजीवों के प्रति जागरूकता का संदेश भी दे रहे हैं। उनकी कला रणथम्भौर की जैव विविधता को दीवारों पर जीवंत रूप से उतारती है, जिससे हर दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठता है।

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