Madan Mohan Ji Temple: भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित मदन मोहन जी का मंदिर राजस्थान की राजधानी जयपुर से 182 किलो मीटर दक्षिण पूर्व में करोली जिला मुख्यालय पर स्थित है। राजस्थान में कृष्ण के अनेक मंदिरों में मदन मोहन मंदिर भी अपना विशेष स्थान रखता है। यह मंदिर भी वैष्णव पद्धति के अनुरूप हवेली में ही बनाया गया है, जो करोली महल का एक हिस्सा है। मदन मोहन जी मंदिर का गर्भगृह तीन खण्डों में विभक्त है। मध्य में वेदी पर कृष्ण स्वरूप में मदन मोहन जी विराजते हैं तथा उनके दांई ओर के खण्ड में राधा एवं ललिता देवी साथ−साथ हैं तथा बांई ओर वेदी पर गोपाल जी कृष्ण स्वरूप में विराजमान हैं। मध्य भाग में एन्टिक महत्व की भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति तीन फुट एवं राधा की मूर्ति दो फुट ऊंची अष्ट धातु की हैं। ये मूर्तियां एंटिक हैं। मंदिर में विराजमान श्रीकृष्ण का विग्रह शैशव स्वरूप होने के कारण भक्ति का प्रमुख स्त्रोत है।
मंदिर की बनावट, मध्ययुगीन कला के होते हैं, दर्शन
मंदिर के गर्भगृह के चक्करदार परिपथ पर चित्रों की बड़ी श्रृंखला नजर आती है। गर्भगृह, चौंक एवं विशाल जगमोहन वास्तुकला एवं सुन्दरता के अद्भुत नमूने हैं। मंदिर का निर्माण करोली के पत्थरों से किया गया, जिसमें मध्ययुगीन कला के दर्शन होते हैं। मंदिर को बनाने में 2 से 3 वर्ष का समय लगा। मंदिर के प्रवेश द्वार से गर्भगृह के बीच लम्बा चौबारा है। गर्भगृह में सुन्दर नक्काशी का काम देखते ही बनता है। गर्भगृह के सामने चौक में अनेक छोटे−छोटे मंदिर एवं मूर्तियां बने हैं। सम्पूर्ण परिसर में धार्मिक देवी−देवताओं एवं भगवान श्रीकृष्ण के कथानकों के आधार पर बड़े−बड़े आकर्षक चित्र बनाये गये हैं। इस चौक की दीवारों की शिल्प कला मन मोह लेती है। रात्रि में जब चांदनी रात होती है तो मंदिर का सौन्दर्य अतुल्य होता है। यह मंदिर वर्तमान में देवस्थान विभाग के अधीन है।
आरती का समय
मंदिर में 5 बार भोग लगाया जाता है, जिसमें दोपहर का राजभोग एवं सायंकाल शयन भोग प्रमुख हैं। विशेष अवसरों पर छप्पन भोग भी लगाया जाता है। प्रातः 5 बजे मंगला आरती, 9 बजे धूप आरती, 11 बजे श्रृंगार आरती, दोपहर 3 बजे धूप आरती एवं सायं 7 बजे संध्या आरती की जाती है। मंदिर प्रातः 5 बजे से रात्री 10 बजे तक खुला रहता है। मंदिर का सबसे प्रबल एवं मूलाधार उत्सव मदन मोहन जी का मेला है जो अमावस्या पर आयोजित किया जाता है। मंदिर में आयोजित जन्माष्टमी, राधा अष्टमी, गोपाष्टमी एवं हिंडोला उत्सवों में सैलानी भी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं।
मंदिर का इतिहास
मदन मोहन जी की प्रतिमा बहुत प्राचीन है और महाभारत काल से ही चली आ रही है। भगवान कृष्ण के परपोते वज्रनाभ ने भगवान कृष्ण के जाने के सौ साल बाद ब्रज नामक रहस्यमयी काले पत्थर से मूर्ति बनाई थी। जयपुर में मदन मोहन जी, गोविंद देव जी और गोपीनाथ जी के साथ मिलकर एक त्रिमूर्ति बनाते हैं जो मिलकर भगवान कृष्ण के पूर्ण रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि वज्रनाभ ने अपनी दादी उत्तरा के निर्देश पर मूर्तियों का निर्माण किया था, जिन्होंने वास्तव में भगवान को देखा था। गोपीनाथ जी के चरणों में, मदन मोहन जी के धड़ या धड़ और गोविंद देव जी के चेहरे की पूजा करने से एक ही सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच भगवान कृष्ण के पूर्ण दर्शन होते हैं।
ये तीनों मूर्तियाँ मूल रूप से मथुरा के पास वृंदावन में थीं, जो करौली के यदुवंशियों का ऐतिहासिक राज्य था, जब तक कि 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के आदेश पर मथुरा के मंदिरों में तोड़फोड़ के बाद इन्हें जयपुर स्थानांतरित नहीं कर दिया गया।
इस मूर्ति को अंततः 1700 के दशक में यदुकुल चंद्र भाल महाराजा गोपाल सिंह द्वारा करौली में स्थापित किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि मदन मोहन जी उनके सपनों में आए और उनसे कहा कि वे अपने वंशजों की भूमि पर वापस जाना चाहते हैं। सौभाग्य से, महाराजा गोपाल सिंह जी की बहन का विवाह जयपुर के महाराजा सवाई जय सिंह से हुआ था, और उन्होंने अपने पति को इस सपने के बारे में बताया। तब जयपुर के महाराजा ने एक परीक्षण तैयार किया, जिसमें उन्होंने मूल सहित तीन समान मूर्तियाँ रखीं और गोपाल सिंह से आँखों पर पट्टी बाँधकर मूल मूर्ति की पहचान करने को कहा। उन्होंने सही ढंग से ऐसा किया, और मूर्ति को एक विशाल औपचारिक जुलूस के साथ करौली ले जाया गया।
महाराजा गोपाल सिंह ने मूर्ति के लिए मदन मोहन जी का वर्तमान मंदिर बनवाया और उनके बाईं ओर राधा-रानी की मूर्ति रखी। मदन मोहन जी के दाईं ओर, उन्होंने गोपाल जी की मूर्ति रखी, जिसे उनके पूर्वज राजा गोपाल दास जी (1545-1589) द्वारा दौलताबाद (पहले देवगिरि के नाम से जाना जाता था) के एक अभियान से लाया गया था।
राजा गोपाल दास जी दक्कन के अभियान पर थे, क्योंकि ऐसा कहा जाता था कि केवल भगवान कृष्ण का वंशज ही देवगिरि या दौलताबाद के किले को पुनः प्राप्त कर सकता था। महाराजा गोपाल दास जी ने वीरतापूर्वक युद्ध किया और एक दिन में किले को पुनः प्राप्त कर लिया। वे उस रात किले में ही सोए और जागने पर उन्होंने अपने शरीर को फैलाया और कहा ‘हाय गोपाल’। स्तंभ के भीतर से एक आवाज़ आई ‘हूं’ (मैं यहाँ हूँ)। उन्होंने स्तंभ को तोड़ दिया और मूर्ति को प्रकट किया जो अब मदन मोहन जी मंदिर में स्थित है।
दर्शन
प्रातः 5 बजे मंगला आरती, 9 बजे धूप आरती, 11 बजे श्रृंगार आरती, दोपहर 3 बजे धूप आरती एवं सायं 7 बजे संध्या आरती की जाती है। मंदिर प्रातः 5 बजे से रात्री 10 बजे तक खुला रहता है।
मदन मोहन जी मंदिर कैसे पहुंचें?
हवाई अड्डा
करौली का निकटतम हवाई अड्डा जयपुर हवाई अड्डा है।
रेलवे
गंगापुर, करौली के पास पश्चिमी रेलवे का निकटतम प्रमुख रेलवे स्टेशन है। महावीर जी साइट के लिए एक और छोटा स्टेशन है। करौली, हिंडौन सिटी, गंगापुर सिटी और श्री महावीरजी से अच्छी तरह से बनाए रखा सड़कों द्वारा मदन मोहन जी मन्दिर (करौली) तक पहुँचा जा सकता है। कैला देवी दिल्ली-बॉम्बे मार्ग पर ब्रॉड गेज पश्चिमी मध्य रेलवे लाइन के पास स्थित है।
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