Mahakaleshwar Jyotirlinga: महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है। इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, ऐसी मान्यता है।
महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन
मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रतिष्ठित हिंदू मंदिरों में से एक है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिन्हें शिव का सबसे पवित्र निवास माना जाता है। इसका शिवलिंग दक्षिणामुखी है, जिसका अर्थ है कि मूर्ति अन्य ज्योतिर्लिंगों के विपरीत दक्षिण की ओर मुख किए हुए है। यह एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर की वास्तुकला बहुत खूबसूरत है, जिसमें मराठा, भूमिजा और चालुक्य शैलियों का मिश्रण है। यहां के मुख्य देवता महाकालेश्वर भगवान है। भगवान शिव ने दूषण नामक राक्षस को हराने के लिए इस रूप में प्रकट हुए थे।
काल के दो अर्थ होते हैं- एक समय और दूसरा मृत्यु। महाकाल को ‘महाकाल’ इसलिए कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहीं से संपूर्ण विश्व का मानक समय निर्धारित होता था इसीलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम ‘महाकालेश्वर’ रखा गया है। पौराणिक कथा के अनुसार इस शिवलिंग की स्थापना राजा चन्द्रसेन और गोप-बालक की कथा से जुड़ी है।
कालों के काल महाकाल के यहां प्रतिदिन अलसुबह भस्म आरती होती है। इस आरती की खासियत यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। इस आरती में शामिल होने के लिए पहले से बुकिंग की जाती है।
महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है। 1235 ई. में इल्तुत्मिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया, इसीलिए मंदिर अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका है। प्रतिवर्ष और सिंहस्थ के पूर्व इस मंदिर को सुसज्जित किया जाता है।

इतिहास
इतिहास से पता चलता है कि उज्जैन में सन् 1107 से 1728 ई. तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में अवंति की लगभग 4500 वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्राय: नष्ट हो चुकी थी। लेकिन 1690 ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया और 29 नवंबर 1728 को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा और सन 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही। मराठों के शासनकाल में यहाँ दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं – पहला, महाकालेश्वर मंदिर का पुनिर्नर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। आगे चलकर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया।
महाकालेश्वर उज्जैन मंदिर की भस्म आरती
महाकालेश्वर मंदिर में की जाने वाली भस्म आरती एक अनूठी और प्रसिद्ध रस्म है, जिसे देखने के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं। यह आरती सुबह लगभग 4:00 बजे होती है और इसका धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। भस्म आरती का विशेष महत्व है, क्योंकि यह भगवान शिव के वैराग्य और श्मशान वासी स्वरूप को दर्शाती है।
12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकाल ही एकमात्र सर्वोत्तम शिवलिंग है। कहते हैं कि ‘आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्। भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते।।’ अर्थात आकाश में तारक शिवलिंग, पाताल में हाटकेश्वर शिवलिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।
वर्तमान में जो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है, वह 3 खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचन्द्रेश्वर मंदिर स्थित है। नागचन्द्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन वर्ष में एक बार नागपंचमी के दिन ही करने दिए जाते हैं। मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुंड है।
गर्भगृह में विराजित भगवान महाकालेश्वर का विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग है। इसी के साथ ही गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय की मोहक प्रतिमाएं हैं। गर्भगृह में नंदी दीप स्थापित है, जो सदैव प्रज्वलित होता रहता है। गर्भगृह के सामने विशाल कक्ष में नंदी की प्रतिमा विराजित है।
उज्जैन का एक ही राजा है और वह है महाकाल बाबा। विक्रमादित्य के शासन के बाद से यहां कोई भी राजा रात में नहीं रुक सकता। जिसने भी यह दुस्साहस किया है, वह संकटों से घिरकर मारा गया। पौराणिक तथा और सिंहासन बत्तीसी की कथा के अनुसार राजा भोज के काल से ही यहां कोई राजा नहीं रुकता है। वर्तमान में भी कोई भी राजा, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री आदि यहां रात नहीं रुक सकता। राजा महाकाल श्रावण मास में प्रति सोमवार नगर भ्रमण करते हैं।
मंदिर पूजा का समय
भस्म आरती, सुबह 4:00 बजे, सुबह 6:00 बजे होती है और पूजा का समय सुबह 7:00 बजे और सुबह 10:00 बजे है।
दोपहर की भोग आरती, सुबह 10:30 बजे और सुबह 11:30 बजे की है। शाम की आरती, शाम 6:00 बजे और शाम 7:00 बजे है। फिर रात 10ः30 बजे आरती होती है।
महाकालेश्वर उज्जैन मंदिर में प्रसाद
मंदिर में विभिन्न प्रकार के प्रसाद दिए जाते हैं, जिनमें शामिल हैंः
सूखे मेवे और मिठाइयां: दैनिक अनुष्ठानों में चढ़ने वाले सूखे मेवे और मिठाइयां प्रसाद के रूप में बांटी जाती हैं।
महाप्रसाद: पूजा के बाद कुछ भक्तों को महाप्रसाद भी वितरित किया जाता है, जिसमें अक्सर मिठाई और फल भी शामिल हैं।
यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय
महाकालेश्वर मंदिर में जाने का सही समय अक्टूबर से मार्च तक का समय है। सर्दियों के महीनों के दौरान है, जब यहां का मौसम सुहावना होता है। महाशिवरात्रि और कुंभ मेले के त्योहारों के दौरान मंदिर में भक्तों की अच्छी खासी भीड़ रहती है।
महाकालेश्वर उज्जैन मंदिर में क्या पहनें
यहां पारंपरिक कपड़े पहनने की सलाह दी जाती है। पुरुष आमतौर पर धोती या कुर्ता या पजामा पहनते हैं। महिलाएं साड़ी, सलवार या कमीज पहनती हैं। यही नहीं, अगर आप भस्म आरती में शामिल हो रहे हैं, तो भक्तों को सफेद कपड़े पहनने होते हैं।
महाकालेश्वर उज्जैन मंदिर कैसे पहुंचे
फ्लाइट से: यहां का निकटतम एयरपोर्ट इंदौर में देवी अहिल्या बाई होलकर एयरपोर्ट है, जो लगभग 55 किमी दूर है।
ट्रेन से: उज्जैन जंक्शन भारत के प्रमुख शहरों से ट्रेनों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
बाय रोड: एनएच 52 के माध्यम से उज्जैन पहुंचा जा सकता है। यहां दूसरे शहरों से बसों और टैक्सियों की सेवाएं भी उपलब्ध हैं।

2014 से लगातार पत्रकारिता कर रहे हैं। 2015 से 2021 तक गंगापुर सिटी पोर्टल (G News Portal) का बतौर एडिटर सञ्चालन किया। 2017 से 2020 तक उन्होंने दैनिक समाचार पत्र राजस्थान खोज खबर में काम किया। 2021 से 2022 तक दैनिक भास्कर डिजिटल न्यूज और साधना न्यूज़ में। 2021 से अब तक वे आवाज आपकी न्यूज पोर्टल और गंगापुर हलचल (साप्ताहिक समाचार पत्र) में संपादक और पत्रकार हैं। साथ ही स्वतंत्र पत्रकार हैं।