Mallikarjuna Jyotirlinga: जहां अमावस्या के दिन स्वयं भगवान शिव और पूर्णिमा के दिन आती हैं माता पार्वती


Mallikarjuna Jyotirlinga: हिंदू धर्म में ज्योतिर्लिंगों का दर्शन करना और आशीर्वाद पाना बेहद खास माना जाता हैं। देेश के अलग अलग स्थानों पर 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जिनमें मल्लिकार्जुन का दूसरा स्थान है। ये मंदिर आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैलम नाम के पर्वत पर स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कई मान्याताएं हैं। ज्योतिर्लिंग के बारे में मान्यता है कि कि यह एक ज्योतिर्लिंग के साथ एक शक्तिपीठ भी है । जानकारी के लिए बता दें कि भारत में ऐसे केवल तीन ही मंदिर हैं जिनमें ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ साथ साथ हैं। माना जाता है कि भगवान शिव अमावस्या के दिन अर्जुन के रूप में और देवी पार्वती पूर्णिमा के दिन मल्लिका के रूप में प्रकट हुईं थी इसलिए उनका नाम मल्लिकार्जुन पड़ा। मंदिर में माता पार्वती की भ्रामम्बा के रूप में पूजा की जाती है। इस मंदिर को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण में श्री शैल काण्ड नाम के अध्याय में मिलता है। माना जाता है कि जो भक्त इस मंदिर में शिव पूजा करता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ से मिलने वाले पुण्य के बराबर पुण्य मिलता है। साथ ही मंदिर के बारे में ये भी मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने जब इस मंदिर की यात्रा की, तब उन्होंने शिवनंद लहरी की रचना की थी। जानते हैं मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के बारे में विस्तार से….

Mallikarjuna Jyotirlinga: मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भारत के 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसका स्थान अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे “दक्षिण का कैलाश” भी कहा जाता है। यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव और माता पार्वती के करुणामय और वात्सल्य रूप का प्रतीक है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का स्थान

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के श्रीशैल पर्वत पर स्थित है, जो नल्लामला पर्वतमाला का एक हिस्सा है। यह स्थान कृष्णा नदी के तट पर स्थित है और प्रकृति की गोद में बसा हुआ है। श्रीशैलम का यह मंदिर एक पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है और इसकी प्राकृतिक सुंदरता भक्तों को आध्यात्मिक और मानसिक शांति प्रदान करती है। यह स्थान धार्मिक महत्व के साथ-साथ पर्यावरणीय दृष्टि से भी विशेष माना जाता है।

Jyotirlinga Temples: जहां अमावस्या के दिन स्वयं भगवान शिव और पूर्णिमा के दिन आती हैं माता पार्वती

पुराणों में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का महत्व

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिव पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है। इसे भगवान शिव और देवी पार्वती का स्थायी निवास स्थान माना गया है। इस ज्योतिर्लिंग की विशेषता यह है कि यहां शिव और शक्ति, दोनों की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजा करने से भक्तों के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह स्थान साधना, ध्यान और आत्मिक उन्नति के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।

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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा बड़ी ही रोचक है। वेद-पुराणों के अनुसार इस मंदिर की कथा शिव-पार्वती, गणेश जी और कार्तिकेय स्वामी से जुड़ी है। मान्यताओं के अनुसार जब गणेश जी और कार्तिकेय स्वामी विवाह योग्य हुए तो एक दिन शिव जी और देवी पार्वती ने सोचा कि अब इन दोनों पुत्रों का विवाह करा देना चाहिए। इसके बाद शिव-पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों को बुलाया। लेकिन भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती यह तय नहीं कर पा रहे थे कि दोनों पुत्रों में से किसका विवाह पहले होना चाहिए। इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने दोनों के बीच एक प्रतियोगिता रखी गई। जिसके अनुसार दोनों में से जो भी दुनिया का एक चक्कर लगाकर पहले वापस लौटेगा उसका विवाह पहले किया जाएगा। अपने माता-पिता की बात सुनकर कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मयूर यानि मोर पर बैठकर संसार का एक चक्कर लगाने के लिए रवाना हो गए। दूसरी तरफ गणेश जी भी अपने वाहन चुहे पर सवार होकर अपने माता-पिता यानि शिव-पार्वती का चक्कर लगाने लगे। ये देखकर भगवान शिव और माता पार्वती चौंक गए। जब गणेश जी से पूछा गया कि आप संसार का चक्कर लगाने क्यों नही गए। तो उन्होंने कहा कि मेरे लिए तो आप दोनों ही पूरा संसार हैं। और ऐसा कहा भी जाता है कि माता-पिता की परिक्रमा करना पूरी दुनिया की परिक्रमा करने के बराबर है। गणेश जी की ये बात सुनकर माता पार्वती और भगवान शिव बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने गणेश जी का विवाह ऋद्धि (समृद्धि) और सिद्धि (आध्यात्मिक शक्तियाँ) से करा दिया। कुछ किंवदंतियों में, बुद्धि (बुद्धि) को भी उनकी पत्नी माना जाता है। जब भगवान कार्तिकेय को वापस लौटने पर गणेश जी के विवाह के बारे में पता चला, तो वे क्रोधित हुए और कैलाश पर्वत छोड़ कर क्रौंच पर्वत पर चले गए। ये क्रौंच पर्वत दक्षिण भारत में कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है, इसे श्रीशैल और श्रीपर्वत भी कहा जाता है।

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कार्तिकेय के नाराज होने पर शिव जी और देवी पार्वती ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। आखिर में जब शिव-पार्वती को लगने लगा कि कार्तिकेय कैलाश वापस नहीं जाएंगे तो उन्होंने तय कि अब से वे ही समय-समय पर कार्तिकेय से मिलने आते रहेंगे। माना जाता है कि इसके बाद से शिव-पार्वती दूसरा रूप धारण कर कार्तिकेय को देखने पहुंचते थे। अंत में पुत्र के दर्शन के लिए भगवान शिव ने ज्योति रूप धारण किया और उसी में माता पार्वती भी विराजमान हो गईं। मान्यता है कि हर अमावस्या पर शिव जी और पूर्णिमा पर देवी पार्वती कार्तिकेय से मिलने श्रीपर्वत पर आते हैं। इसलिए इस मंदिर का नाम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग पड़ा जिसमें मल्लिका का अर्थ है माता पार्वती और अर्जुन का अर्थ है भगवान कैलाशपति शिव।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास

मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर के निर्माण और रखरखाव में कई शासकों ने योगदान दिया। हालांकि, इसका पहला रिकॉर्ड 1 ई. में शाथवाहन साम्राज्य निर्माताओं की पुस्तकों में मिलता है। इसके बाद, इक्ष्वाकु, पल्लव, चालुक्य और रेड्डीज ने भी मंदिर में योगदान दिया, जो मल्लिकार्जुन स्वामी के अनुयायी थे। विजयनगर साम्राज्य और छत्रपति शिवाजी ने भी क्रमशः मंदिर में सुधार किया (1667 ई. में गोपुरम का निर्माण किया)। मुगल काल में यहां पूजा बंद कर दी गई थी, लेकिन ब्रिटिश शासन के दौरान इसे फिर से शुरू किया गया। हालांकि, आजादी के बाद ही यह मंदिर फिर से प्रमुखता में आया।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के बारे में प्रमुख बातें

मंदिर की दिवारें 600 फीट की ऊंचाई वाली हैं। दीवारों पर कई अद्भुत मुर्तियां बनी हुई है, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र मानी जाती है। मंदिर अपनी ऊंची मीनारों और खूबसूरत नक्काशी के साथ वास्तुकला का भी अद्भूत एक नमूना है। यह ऊंची दीवारों से घिरा हुआ है जो इसे मजबूत बनाती हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी पार्वती ने राक्षस महिषासुर से युद्ध किया था और खुद को मधुमक्खी में बदल लिया था। भक्तों का मानना ​​है कि वे अभी भी भ्रमरम्बा मंदिर के एक छेद से मधुमक्खी की भिनभिनाहट सुन सकते हैं।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग जानें का सबसे अच्छा मौसम

वैसे तो इस मंदिर में साल भर पर्यटक आते रहते हैं, लेकिन सर्दियों के महीनों यानी अक्टूबर से फरवरी के दौरान यहां आना सबसे अच्छा रहेगा। चूंकि महाशिवरात्री पर शिव-पार्वती के दर्शन करना शुभ माना गया है इसलिए इस मंदिर में महाशिवरात्रि पर भी काफी उत्साह देखने को मिलता है और भक्तों का तांता लगा रहता है।

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दर्शन और आरती का समय

मंदिर के कपाट सुबह 4:30 बजे से दोपहर 3:30 बजे तक खुले रहते हैं इसके बाद शाम 4:30 से रात्रि 10 बजे तक मंदिर में भक्त प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर में सुबह 6 बजे और शाम को 5:30 बजे दो बार आरती होती है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे?

देश की राजधानी दिल्ली से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की दूरी लगभग 1902 किलोमीटर है। आप यहां पहुंचने के लिए हवाई मार्ग, सड़क मार्ग और रेल मार्ग का उपयोग कर सकते हैं।

हवाई मार्ग से- 

श्रीशैलम शहर में कोई हवाई अड्डा नहीं है। अगर आप हवाई जहाज से जाना पसंद करते हैं, तो कुरनूल और हैदराबाद दो नजदीकी हवाई अड्डे हैं। कुरनूल हवाई अड्डा श्रीशैलम से लगभग 181 किमी दूर एक घरेलू हवाई अड्डा है। निकटतम प्रमुख हवाई अड्डा हैदराबाद अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो श्रीशैलम से लगभग 217 किमी दूर स्थित है। यह देश के प्रमुख शहरों और कस्बों के साथ-साथ विश्व के कुछ महत्वपूर्ण शहरों से भी अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। दोनों शहरों से सभी सार्वजनिक और निजी परिवहन आसानी से उपलब्ध हैं। अगर आप कम लागत वाली बसों की तलाश कर रहे हैं, तो APSRTC कई बसें उपलब्ध कराता है। इससे आप आसानी से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग से-

श्रीशैलम के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं है। श्रीशैलम से लगभग 85 किलोमीटर दूर मर्कापुर रोड रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है। मर्कापुर रोड से श्रीशैलम जाने के लिए आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या बस से श्रीशैलम पहुँच सकते हैं।

सड़क मार्ग से-

मल्लिकार्जुन मंदिर तक पहुंचने का मार्ग पूरी तरह से उस स्थान पर निर्भर करता है जहां से आप यात्रा कर रहे हैं। अगर हैदराबाद को केंद्र में रखकर यात्रा कर रहे हैं तो यहां से आपको लगभग 250 किमी की दूरी तय करनी होगी। श्रीशैलम पहुँचने के लिए आपको नागार्जुन सागर बांध से होते हुए NH 65 लेना चाहिए। ट्रैफिक की स्थिति और सड़क की स्थिति के आधार पर यात्रा में लगभग 5 से 6 घंटे लगेंगे।

 


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