दुल्हे को दहेज में कोट पेंट की बजाय घोती दुपटटा, जिनवाणी व पुजन की थाली भेंट की
विवाह के तीसरे दिन हनीमुन की बजाय तीर्थ वंदना व साधु दर्शन को निकले नव दंपत्ती
बांसवाडा| एक्कीसवीं सदी में जहां चारो और शादीयो में आधुनिकता बढने लगी उससे परे होकर एक शादी ऐसी जो धर्म व संस्कार अनुसार हुई। यह वाक्यां दिगम्बर जैन समाज परतापूर मे एक विवाह हुआ जिसमें आधुनिकता की रिसोर्ट कल्चर से परे पारंपरिक विवाह संपन्न हुआ। जो कि आज के समय मे एक मिसाल है। परम मुनिभक्त ओर धर्मनिष्ठ, साधु सेवा संस्थान के सरंक्षक संजय एन दोसी ने अपनी पुत्री के विवाह में संस्कार और संस्क्रति का समप्रेंषण कराया । दोसी ने अपनी बिटिया मुक्ति दोसी के विवाह गुरु आज्ञा ओर धार्मिक तरीके से किया। यह विवाह एक मिसाल के साथ संदेशवाहक बनी क्युकि विवाह के पूर्व विभिन्न प्रकार के मिष्ठान बनाकर परतापूर गोशाला में गोग्रास करवा कर वैवाहिक कार्यक्रम की शुरुआत की । देव शास्त्र गुरु की पूजा के साथ जैन विधि से विवाह संपन्न कराया और उस समय मंडप में दूल्हा दुल्हन को अन्य कोट पेंट की जगह धोती दुपट्टा वस्त्र ,जिनवाणी, पूजन की थाली आदि भेंट की गई । दोसी परिवार की धार्मिक तरीके से विवाह को समर्थन देते हुए दुल्हा आदिश जैन ने विवाह के बाद हनीमून पर्यटन स्थल या विदेश जाने की बजाय अपनी दुल्हन मुक्ति ओर अपने परिजनों को साथ लेकर विवाह के तीसरे दिन ही तीर्थराज सम्मेद शिखर की तीर्थयात्रा को निकले जो कि हथकरधा के खादी वस्त्रो को पहनकर खादी को बढावा देने का संदेश दिया । तथा प्रथम वंदना करने के साथ ही संसार में रहकर धर्म के मार्ग पर चलकर अपनी पयार्य को धन्य करने की कामना की । जब दोनो नव दंपत्ती गुरुदेव अंतर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी दर्शन हेतु सिद्ध क्षेत्र सोनागिर गए तो आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी महाराज ने दोनो के संस्कार व परिवार के संस्कार के प्रसन्न होकर धर्मव्रद्धि का आशिर्वाद दिया । इस दौरान संजय दोसी, मैना दोसी व अन्य वागड के श्रद्धालु उपस्थित थे ।