सवाई माधोपुर 28 नवम्बर। जिला मुख्यालय के रणथंभौर सर्किल स्थित एक होटल में ग्राम राज्य विकास एवं प्रशिक्षण संस्थान स.मा. द्वारा जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन जेआरसी की ओर से चलाये जा रहे बाल विवाह मुक्त भारत अभियान को लेकर मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया गया।
मीडिया कार्यशाला के दौरान जिला पर्यवेक्षक मनीष शर्मा ने बताया कि उन्होने बताया कि महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की ओर से शुरू किया गया यह अभियान हमारे बच्चों के लिए एक सुरक्षित, उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करने की दिशा में एक बेहद महत्वपूर्ण और निर्णायक कदम है। बच्चों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए सबसे बड़े गठबंधन जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन का सहयोगी होने के नाते हम विकसित भारत के सपने को साकार करने के लिए बाल विवाह के पूरी तरह खात्मे की दिशा में काम करते रहेंगे।
बाल विवाह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले में जेआरसी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
इस वर्ष की शुरुआत में, जेआरसी के हस्तक्षेप के कारण राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया, जिसमें पंचायतों को राज्य में बाल विवाह को रोकने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया, खासकर अक्षय तृतीया के दौरान।
गठबंधन वर्ष 2030 तक बाल विवाह के खिलाफ टिपिंग प्वाइंट यानी निर्णायक बिंदु तक पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध है।
बाल विवाह के खिलाफ हमारा गठबंधन देश के 25 राज्यों के 416 जिलों में जमीनी स्तर पर काम कर रहा है।
ग्राम राज्य विकास एवं प्रशिक्षण संस्थान सवाई माधोपुर जिले में 128 अंडरटेकिंग और 6 प्रशाशन के सहयोग से बाल विवाह रुकवाए हैं। ग्रामराज्य विकास एवं प्रशिक्षण संस्थान, सवाई माधोपुर द्वारा बाल विवाह रोकथाम के लिए गाँव-गाँव, ढाणी-ढाणी तक पहुच कर बाल विवाह रोकधाम के लिए शपथ दिलवाई जा रही है। स्कूल, और गावो में जाकर बाल विवाह को लेकर जागरूकता अभियान किये जा रहे है।
उन्होने बताया कि बाल विवाह देश के श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में सबसे बड़ी बाधा है। बाल विवाह स्वास्थ्य और शिक्षा संकट है। एक बाल विवाह पीड़िता दासता का जीवन जीने के लिए अभिशप्त हो जाती है तथा उसके लिए मुक्ति और स्वतंत्रता के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं।
बाल विवाह के मुख्य कारणों में पितृसत्ता, गरीबी, ट्रैफिकिंग, बच्चियों की सुरक्षा को लेकर चिंता और पर्सनल लॉ एवं रीति-रिवाज शामिल हैं। जबरन बाल विवाह के दलदल में झोंक दिए गए बच्चे स्वास्थ्य, शिक्षा व रोजगार के अपने जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित रह जाते हैं। बाल विवाह की पीड़ित बच्चियां न सिर्फ बचपन के अधिकार से वंचित हो जाती हैं बल्कि अपने परिवार, सहेलियों और बचपन में उनकी देखभाल का जो पूरा तंत्र होता है, वह भी उनसे छीन लिया जाता है जिससे बच्चियां सामाजिक अलगाव का शिकार हो जाती हैं। बाल विवाह उन बच्चों पर वयस्कों की जिम्मेदारी थोप देता है जो शारीरिक और मानसिक रूप से अपरिपक्व हैं और विवाह का मतलब भी नहीं समझते।
बाल विवाह बच्चों को स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और जीवन में तमाम अवसरों से वंचित कर देता है। यह हमारे संविधान में वर्णित समानता, स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मूल्यों के पूरी तरह खिलाफ है।