डिजिटल तकनीक तकनीकी वर्तमान में समय में वरदान के साथ-साथ अभिशाप भी बनती जा रही है। जिसका प्रभाव लोगों को वर्तमान समय में दिखने लगा है। जब तक कोई तकनीक लोगों के हितों में कार्य करें तब तक ही उसे ठीक माना जा सकता हैं लेकिन उसी तकनीक से लोगों को काफी ज्यादा नुकसान होने लगे हो वह अभिशाप बन जाती है। इससे जुड़ी चिंता भी काफी बड़ी हो जाती है। वर्तमान समय में देश के लिए ‘डिजिटल अरेस्ट’ एक ऐसा ही संकट है। जिससे देश की जनता अधिक सतर्क और जागरूक रह कर ही इस खतरे का मुकाबला कर सकती है। वर्तमान समय में साइबर धोखाधड़ी रोकने में संसाधनों की कमी आम लोग जागरूकता के अभाव में इस साइबर फर्जीवाड़ा करने वालों की चाल में फंस जाते हैं।
डिजिटल के चक्क्र में मेहनत की कमाई लूट रही हैं:- वर्तमान समय में देश में डिजिटल भुगतान व्यवस्था ने लोगों के लेनदेन को आसान और सुविधाजन बनाने में बेहतरीन योगदान दिया है। नगद लेनदेन की जगह डिजिटल भुगतान व्यवस्था से लोगों में भुगतान करने का तरीका तो आसान हुआ है वहीं दूसरी ओर जबसे देश में डिजिटल डिजिटल भुगतान की व्यवस्था बनी है और लोगों का उसमें रुझान भी बहुत जल्दी बढ़ा है वहीं साइबर ठगों ने इस रास्ते को ही आम जनता को ठगने के लिए अपनाया हैं। सरकार और उसकी एजंेसियां साइबर ठगी से लोगों को बचाने के जो इंतजाम करती हैं, साइबर ठग जल्द ही दूसरी किस्म की धोखाधड़ी करने का रास्ता निकाल लेते है। सरकार और ऐजेन्सीयों द्वारा आम जनता को अपील की जाती है कि मोबाइल से बैंकिंग लेनदेन के वक्त पिन, पासवर्ड, ओटीपी किसी से साझा न करें इस पर साइबर ठग कोई विश्वसनीय दिखने वाला लिंक भेज कर लोगों के फोन ही हैक कर लेते हैं। ऐसे में सारे पिन और ओटीपी ठगों के वांछित फोन पर जाने लगते हैं और देखते ही देखते लोगों के बैंक खातों में जिंदगी भर की जमा पूंजी चली जाती है। सरकार एवं ऐजेन्सीयां इस पर लगाम लगाती, इससे पहले ‘डिजिटल अरेस्ट’ के रूप में की जाने वाली लूट सामने आने लगी।
डिजिटल अरेस्ट क्या है :- आखिर ‘डिजिटल अरेस्ट’ में साइबर ठग असली पुलिस या जांच एजेंसियों के वास्तविक अधिकारियों के वेश में लोगों को गिरफ्तारी का डर दिखा कर पैसे ऐंठने का प्रयास करते हैं। इसमें किसी शख्स को मोबाइल फोन पर वीडियो या सामान्य कॉल करते हुए गिरफ्तारी या सीबीआई अथवा आयकर जांच का भय दिखाया जाता है। एक बार जब कोई व्यक्ति इनके जाल में फंस जाता है, तो वह इनके आगे खुद को असहाय महसूस करने लगता है। तब ये साइबर ठग उस व्यक्ति को अपनी सारी जमा-पूंजी बताए गए बैंक खातों में खुद ही भेजने को मजबूर कर देते हैं।
ठग इस तरह फंसाते है लोगों को:- अधिकतर ‘डिजिटल अरेस्ट’ वाले मामलों कूरियर कंपनी के झांसों, इनमें लोगों के बेटे या बेटी के किसी मामले में फंसे होने, यौन शोषण के आरोपी होने, किसी आर्थिक धोखाधड़ी में शामिल होने जैसे तमाम मामलों का हवाला असली दिखने वाले फर्जी सबूतों के आधार पर करते हैं एवं लोगों की बात पुलिस समेत अन्य जांच एजंसियों के नकली अधिकारियों से कराई जाती है। फर्जी एफआइआर, गिरफ्तारी का वारंट और अन्य नकली दस्तावेज मुहैया कराए जाते हैं, जिनमें पीड़ित का नाम दर्शाया जाता है। ऐसी स्थिति में पीड़ित व्यक्ति बुरी तरह भयभीत हो जाता है। ऐसे कई मामलों में वर्दीधारी पुलिस अधिकारी वीडियो काल पर किसी थाने में बैठे हुए पुलिसिया भाषा में बात करते दिखाया जाता है। पीड़ित को जब गिरफ्तारी की आशंका सच में बदलते हुए प्रतीत होती है, तो वह बिना देर किए, ठगों के संकेत पर मांगी गई रकम भेजने में ही अपनी भलाई समझता है।‘डिजिटल अरेस्ट’ साइबर लुटेरों के हाथ लगा बड़ा हथियार है, वर्ष 2024 में पूरे देश से साइबर ठगी लाखों की संख्या में शिकायतें दर्ज की गई। इनमें से कई करोड़ रूपए आम लोगों को आभासी गिरफ्तारी का डर दिखा कर ठगे गए है।
अनजान नंबरों से आए फोन अनदेखा करें:- लोगों को थोड़ा सजग रहे एवं रुपए-पैसे के लेनदेन से जुड़ी अपनी निजी जानकारी साझा करने से बचे और आभासी गिरफ्तारी के डर पर काबू पा ले, तो साइबर लुटेरों के मनसूबे पूरे नहीं हो सकते। अनजान नंबरों से आए फोन को अनदेखा करें। अगर कोई फोन कॉल सुनना जरूरी हो जाए, तो बिना डरे और निजी जानकारियां साझा किए बिना ही बात करें। जगारूकता एवं सजगता से ही इस साइबर अपराध को रोका जा सकता है।
अपराधियों के लिए बने कठोर कानून:- देश में साइबर अपराधियों पर कड़ी नकेल कसने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 कानून बनाया गया है इस कानून के तहत, साइबर अपराधों के लिए दंड और सजा का प्रावधान है। फिर भी सरकार को इस पर और भी कड़े कानून बनाने की आवश्यकता है जिससे इन साइबर अपराधियों में डर पैदा हो और आमजन भयमुक्त जीवन जी सकें।