नहर के सफाई के नाम पर बजट की सफाई में जुटे अफसर

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नहर के सफाई के नाम पर बजट की सफाई में जुटे अफसर

प्रयागराज।ब्यूरो राजदेव द्विवेदी। सरकारी काम भी निराले ही होते हैं सफाई के नाम पर हर साल नहरों की लीपा पोती किसी से छिपी नहीं है। यह जग जाहिर है कि नहरों की सफाई मात्र औपचारिकता भर होती है। कुछ ऐसा ही हाल सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग उत्तर प्रदेश भेलांव माइनर बाघला नहर प्रखंड प्रयागराज कनाल का है। इसे देख कर लगता नहीं है कि इसकी कभी सफाई हुई हो। एक तो बीच में जमीं कई कई फिट गंदगी दूसरा बीच में उगी झाड़ियां नहर के अस्तित्व को मिटा रही है। सफाई के नाम पर अवर अभियंता एवं ठेकेदार ने मिलकर लाखों डकार कर अपनी पीठ थपथपाने के लिए उच्च अधिकारियों को गुमराह करते हुए बड़ा बोर्ड लगाकर सीमित कर दिया है। नहर की कुल लंबाई 5.200 किलोमीटर नहर का हेड डिस्चार्ज 20.00 क्यूसेक जबकि हकीकत यह है कि इस नहर में 10 क्यूसेक पानी भी फ्लो नहीं हो पाता है। नहर के सफाई कार्य के नाम पर लागत 99612.16 दर्शा दिया गया है।

क्या कहते हैं स्थानीय लोग
स्थानीय लोगों का कहना है कि कार्य की लागत बोर्ड तक ही सीमित है सफाई के नाम पर अवर अभियंता एवं ठेकेदार की जुगलबंदी से लाखों डकार कर हजम कर लिया गया। उचित सफाई न होने से एक तो किसानों को पर्याप्त पानी नहीं मिलता दूसरा कचरे का डस्टबिन बन चुकी नहर के कारण डेंगू मलेरिया फैल रहा है। विभाग सफाई के नाम पर भारी भरकम बजट तो पारित कर देता है मगर नतीजा यह है कि जिम्मेदारों की खाऊ कमाऊ नीति हावी है।जबकि यह नहर सैकड़ो किसानों के लिए कृषि की लाइफ लाइन है जिससे उनकी कृषि में सिंचाई का मकसद पूरा होता है लेकिन विभाग द्वारा इसकी सफाई ऐसी कराई जाती है जैसे इसकी कोई जरूरत ही नहीं है।इस संदर्भ में जब अवर अभियंता और ठेकेदार से जानकारी ली गई तो एक दूसरे की कमी बता कर अपना पल्ला झाड़ते नजर आए। बता दें कि यह कोई ऐसा पहला मामला नहीं है क्षेत्र के अन्य माइनर भी सफाई के नाम पर जेई और ठेकेदार की जुगलबंदी से लीपा पोती कर कार्य की इतिश्री कर दी जा रही है।


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