संतोष को अंगीकार कर लोभ का परित्याग करना चाहिए-आर्यिका सुयशमति माताजी

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कुशलगढ|बडोदिया में आर्यिका विज्ञानमति माताजी की परम शिष्या आर्यिका सुयशमति माताजी ने कहा कि जीवन लोभ,आरोग्य लोभ इंद्रिय लोभ और उपभोग लोभ इन चार प्रकार के लोभ को प्रकृष्ट लोभ कहते हैं। इस प्रकृष्ट लोभ से निवृत्त होने को शौच कहते हैं । यह विचार आर्यिका ने उत्तम शौच धर्म दिवस पर श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर बडोदिया में धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए । आर्यिका उदितमति माताजी ने कहा कि शुचिता के भाव को अथवा कर्म को शौच कहते हैं।आर्यिका रजतमति माताजी ने कहा कि संतोष के अभाव में मानसिक शुचिता का उद्भव हो ही नहीं सकता। अतः संतोष को अंगीकार कर लोभ का परित्याग करना चाहिए। अध्यक्ष ने बताया कि आर्यिका संघ के सानिध्य में पर्व पर विशेष रूप ये श्रीजी का जलाभिषेक व शांतिधारा व दस धर्म की संगीतमय पूजन की जा रही है साथ ही आर्यिका संघ के प्रवचन दोपहर में महामंडल विधान का आयोजन व सांय को आरती की गई । इस दौरान उपवास करने वाले विनोद चौखलिया, मीना देवी खोडणिया,दिलीप तलाटी,मितेश खोडणिया,मयंक तलाटी, प्रियंका तलाटी,जयंत जैन व तक्ष जैन व पांच उपवास करने वाले श्रद्धालुओं की सेवा तथा उनके उत्सा्ह में अभिव्रद्धि के लिए भक्ति की गई।


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