Prayagraj : गढ़वा किला तालाब की सीढ़ियां क्षतिग्रस्त, नहीं हो पा रहा जल संचय जिम्मेदार कौन?

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गढ़वा किला तालाब की सीढ़ियां क्षतिग्रस्त, नहीं हो पा रहा जल संचय जिम्मेदार कौन?


प्रयागराज। जनपद के यमुनानगर विकासखंड शंकरगढ़ के ऐतिहासिक व धार्मिक गढ़वा किला का तालाब अस्तित्व खोता जा रहा है। तालाब के पास चल रहे वाशिंग प्लाट के कारण यहां सिल्ट, भस्सी, सिल्का धुलाई का गंदा पानी आदि से दिन प्रतिदिन पटता जा रहा है यहां तक कि हल्का लेखपाल अधिकारियों को सूचना भी देना मुनासिब नहीं समझते। गांव के ग्रामीणों ने जानकारी देते हुए बताया कि ऐतिहासिक गढ़वा किला से झरने के रूप में अनवरत बहने वाला पानी आगे चलकर एक झील का निर्माण करते हुए वही पानी गढ़वा किला के तालाब में समाहित हो जाता है। एक जमाना था कि हम लोग इस तालाब का पानी पीने के उपयोग में लाते थे। क्षतिग्रस्त सीढ़ियों को निर्माण करवाने के लिए लगभग 16 साल पहले संबंधित अधिकारियों के द्वारा भारी भरकम बजट से तालाब के चारों तरफ सीढ़ियों के मजबूती करण व साफ सफाई के लिए काम तो शुरू हुआ मगर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गय आज नतीजा यह है कि तालाब में जल संचय नहीं हो पाता पूरा पानी क्षतिग्रस्त सीढ़ियों से बाहर निकल जाता है। अगर समय रहते इन सीढ़ियों का जीर्णोद्धार हो गया होता तो तालाब में जल संचय होने से क्षेत्र के लोगों का इस संचित पानी से काफी भला होता। तालाब का क्षेत्रफल बहुत बड़ा था मगर अतिक्रमणकारियों के चंगुल में फंस कर सिकुड़ गया है संबंधित विभाग के उदासीन रवैया से तालाब अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है। हम आदिवासी समाज के लोग इस तालाब में मत्स्य पालन करके अपना व अपने परिवार का भरण पोषण कर सकते हैं। हम लोगों के जीविका का साधन मात्र शंकरगढ़ क्षेत्र में सिलिका सैंड ही सहारा था आज कई वर्षों से खनन नीति लागू नहीं होने की वजह से खनन का काम बंद है हम लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं। संबंधित विभाग के जिम्मेदारों का ध्यान आकृष्ट करवाते हुए हम लोगों की मांग है कि इस तालाब के दूषित पानी को स्वच्छ करने के लिए अतिक्रमणकारियों के चंगुल से तालाब को मुक्त कराया जाए जिससे आम जनमानस को पानी की किल्लत से निजात मिल सके और तालाब का अस्तित्व बच सके।
बताते चलें कि पाठा क्षेत्र होने की वजह से बारहों मास पानी की किल्लत बनी रहती है। आलम यह है कि दिनोंदिन पेयजल का संकट गहराता जा रहा है तालाब के पानी का दोहन करने की वजह से मवेशी दूषित पानी को पीने के लिए बाध्य हैं।

R. D. Diwedi 


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