स्वतंत्र न्यायपालिका की जवाबदेही को लेकर अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी द्वारा प्रस्ताव पारित


सवाई माधोपुर 24 अप्रैल। हाल ही की उच्च न्यायपालिका की घटनाओं ने देश को फिर से झकझोर दिया है। अधिवक्ता परिषद विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख व्यक्तियों से बातचीत कर रही है और उच्च न्यायालयों व अधीनस्थ न्यायालयों में अभ्यासरत अधिवक्ताओं से इस संबंध में फीडबैक प्राप्त कर रही है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए भी, जवाबदेही को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कृ यह जवाबदेही व्यक्तिगत अंतरात्मा की नहीं, बल्कि समाज के प्रति होनी चाहिए, एक स्थायी, पारदर्शी व सत्यापनीय व्यवस्था के माध्यम से होनी चाहिए। इसी अनुसार, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने प्रस्ताव पारित किया।
प्रस्ताव में बताया गया है कि एक नया कानून लाया जाए जिससे न्यायपालिका में नियुक्ति और आचरण की निगरानी की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी बन सके, जबकि यह सुनिश्चित किया जाए कि न्यायपालिका की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका हो। जब तक यह कानून प्रभाव में नहीं आता, उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों की वर्तमान कोलेजियम प्रणाली जारी रह सकती है, बशर्ते इसमें पारदर्शिता लाई जाए जैसे कि पूर्व-जांच आदि। सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा एक स्थायी समिति तत्काल गठित की जाए जिसमें पूर्व मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और प्रतिष्ठित व्यक्ति हों जो वर्तमान न्यायाधीशों की जवाबदेही (न्यायालय संचालन सहित) तय करें। बेंगलुरु घोषणा पत्र को पारदर्शी व सत्यापनीय तरीके से लागू किया जाए। यदि समिति का गठन जून 2025 से पहले संभव नहीं है, तब भी उच्च न्यायपालिका के विरुद्ध शिकायतों को स्वीकार किया जाए। सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा सभी बाधाएँ हटाई जाएँ क्योंकि छिपाने जैसा कुछ नहीं है। यदि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के परिवार के सदस्य उसी न्यायालय में या अधीनस्थ अदालतों में अभ्यास करते हैं, तो उन्हें स्थानांतरण की नोटिस दी जाए। यदि यह सर्वाेच्च न्यायालय के न्यायाधीश से संबंधित है, तो उनका परिवार सदस्य न्यायाधीश के सेवानिवृत्त होने तक उस न्यायालय में अभ्यास न करे। सेवानिवृत्ति के बाद तीन वर्षों का “कूलिंग पीरियड” अनिवार्य हो, और यदि आवश्यक हो, तो सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों और मध्यस्थता को नियंत्रित करने के लिए कानूनों में संशोधन किया जाए। भविष्य में सर्वाेच्च और उच्च न्यायालयों में नियुक्तियाँ एक ही सेवानिवृत्ति आयु के अधीन होनी चाहिए। उच्च न्यायालयों और सर्वाेच्च न्यायालयों के माननीय न्यायाधीशों और उनके परिजनों की संपत्ति की जानकारी हर वर्ष संबंधित न्यायालयों की वेबसाइट पर प्रकाशित की जाए। प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक-तिहाई न्यायाधीश अन्य उच्च न्यायालयों से नियुक्त किए जाएँ। यह प्रणाली न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया के कार्यकाल में कुछ हद तक लागू भी हुई।


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