सरकार की गाइडलाइन को दरकिनार कर यूपी बोर्ड परीक्षा केंद्र बनाए जाने से डीआईओएस पर उठ रहे सवालिया निशान

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शंकरगढ़ क्षेत्र में एक ही प्रबंध तंत्र के तीन विद्यालयों का परीक्षा केंद्र एक ही विद्यालय में कैसे पूछती है जनता

प्रयागराज। जनपद के यमुनानगर विकासखंड शंकरगढ़ क्षेत्र अंतर्गत एक ही प्रबंध तंत्र के तीन विद्यालयों का केंद्र एक ही विद्यालय में परीक्षा केंद्र बनाए जाने पर डीआईओएस पर सवालिया निशान उठ रहे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक शासन की नीतियों के विपरीत एक ही परिवार के माता-पिता या भाई के विद्यालय में परीक्षा केंद्र बनाए गए हैं। चंद खनकते सिक्कों के सामने यूपी बोर्ड की मनसा पर सवाल उठना स्वाभाविक है। छात्र-छात्राओं की संख्या के अनुसार उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी परीक्षा में सफलता मिलने के उद्देश्य से प्रबंधकों द्वारा पैसा कमाने के लिए मनचाहा परीक्षा केंद्र बनवा लिया गया है। जिससे नकल माफियाओं में चर्चाओं का बाजार गर्म है और उनकी बल्ले-बल्ले हो रही है। हो भी क्यों नहीं क्योंकि अपने हिसाब से परीक्षा के निर्धारित कराने से प्रबंध तंत्र सफल हो जाते हैं। और यूपी बोर्ड के जिम्मेदार अधिकारी भी नियम व शर्तों की धज्जियां उड़ाते हुए पैसों की खनक के आगे नियम व शर्तों को दरकिनार करते हुए परीक्षा केंद्र बनाए जाने की अनुमति दे देते हैं। जिसका ज्वलंत उदाहरण शंकरगढ़ क्षेत्र में एक ही परिवार के प्रबंधक एवं उनके पारिवारिक सदस्यों के नाम पर संचालित विद्यालयों को ही परीक्षा केंद्र बना दिया गया है। बोर्ड ने जो परीक्षा केंद्र निर्धारण नीति जारी की है उसमें ऐसे ही प्रावधानों पर सवाल उठने लगे हैं।जानकारों की मानें तो वित्त विहीन विद्यालयों का परीक्षा केंद्र बनाए जाने से नकल माफिया सक्रिय हो जाते हैं और अच्छी कमाई कर सरकार द्वारा बनाई गई शिक्षा नीति को धता बताने में कामयाब हो जाते हैं। सबसे बड़े यूपी बोर्ड की परीक्षा में नकल का खेल किसी से छिपा हुआ नहीं है चहेतों को पास कराने के लिए नकल माफिया परीक्षा केंद्र निर्धारण से ही सक्रिय हो जाते हैं। मन माफिक कॉलेजों को केंद्र बनाने के लिए हर शर्तें चुटकी बजाते पूरा कर लेते हैं और अफसर उनकी मुराद पूरी करने में नियमों को धता बता देते हैं।ऐसे में उत्तर प्रदेश के ईमानदार छवि के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बदनाम करने पर शिक्षा माफिया क्यों तुले हुए हैं यह अपने आप में एक बड़ा और अहम सवाल है।आखिर सवाल यह उठता है कि सरकार की गाइडलाइन को दर किनार कर गलत नीति निर्धारण पर कहीं ना कहीं डीआईओएस पर सवालिया निशान खड़ा करता है जो जांच का विषय है।अब देखने वाली बात यह होगी कि नियम कानून को ताक पर रखकर खिलवाड़ करने वाले ऐसे जिम्मेदार अधिकारियों पर शासन का शिकंजा कसता है या यूं ही सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा और मामले को ठंडे बस्ते में डाल कर पटाक्षेप कर दिया जाएगा यह भविष्य के गर्त में छिपा हुआ एक यक्ष प्रश्न है।


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