Rameshwaram Jyotirlinga: भारत के तमिलनाडु राज्य में रामनाथपुरम जिले के रामेश्वरम में स्थित रामेश्वरम मंदिर हिंदू धर्म के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और पूरी दुनिया में अपनी खास पहचान रखता है। हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी के बीच स्थित यह मंदिर धार्मिक आस्था, वास्तुकला और पौराणिक कथाओं का अद्भुत संगम है। यहां पहुंचने का सफर भी उतना ही रोमांचक है जितना कि इस मंदिर का महत्व। आपको बता दें कि कंक्रीट के 145 खंभों पर टिका सौ साल पुराने पुल से ट्रेन के द्वारा इस मंदिर में जाया जाता है। तो चलिए जानते हैं इस मंदिर की खासियत, पौराणिक कथा, यात्रा और इस मंदिर से जुड़ी हर जानकारी के बारे में।
Rameshwaram Jyotirlinga: विश्व प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों का शास्त्रों में बहुत अधिक महत्व बताया गया है। इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों में ग्यारहवें स्थान पर आने वाला ज्योतिर्लिंग भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में रामेश्वरम द्वीप पर स्थित है। हम बात कर रहें हैं रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की। मान्यता है कि यहां स्थित ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से समस्त रोगों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही भक्तों का मानना है कि मंदिर के आसपास के पवित्र कुंड, जिसे अग्नि तीर्थम के नाम से जाना जाता है, इसमें डुबकी लगाने से मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है। मान्यता है कि श्री राम ने अमोघ बाणों से इन कुंड का निर्माण किया था। आपको बता दें कि इस ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति की कथा भगवान श्रीराम के लंका दहन और रावण के वध से जुड़ी हुई है। तो आईये जानते हैं इस ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा और मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें…
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा
रामेश्वरम मंदिर का इतिहास हिंदू पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों से जुड़ा हुआ है। ऐसे ही इस ज्योतिर्लिंग के बारे में दो कथाएं प्रचलित है…
पहली कथा- एक पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान श्रीराम रावण का वध कर लंका विजय कर वापस लौटे तो उन पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा था, क्योंकि रावण ब्राह्मण था। इस पाप से मुक्त होने के लिए श्रीराम ने ऋषियों से चर्चा की। तब ऋषियों ने भगवान राम से शिवलिंग स्थापित कर अभिषेक करने के लिए कहा। एक मान्यता ते अनुसार प्रभू श्रीराम ने ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए दक्षिणी तट पर बालू से शिवलिंग बनाकर अभिषेक किया। तो वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार लंका से लौटते वक्त भगावन राम दक्षिण भारत के समुद्र तट पर रुके थे। ब्रह्म हत्या के पाप को मिटाने के लिए उन्होंने हनुमान जी को पर्वत से शिवलिंग लाने के लिए कहा, बजरंगबली को आने में देरी हुई तो माता सीता ने दक्षिण तट पर बालू से शिवलिंग स्थापित किया। और श्रीराम ने उनका अभिषेक किया। भगवान शिव ने इससे प्रसन्न होकर भगवान श्रीराम को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति दे दी। और बालू से बनी शिवलिंग में विराजमान हो गए। इसे रामनाथ या रामलिंग कहा गय। वहीं हनुमान जी द्वारा लाए शिवलिंग का नाम वैश्वलिंग रखा गया। तभी से यहां दोनों शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसी कारण रामेश्वरम को रामनाथस्वामी ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। दूसरी कथा- एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान राम रावण की लंका में कैद अपनी पत्नी सीता को छुड़ाने के लिए अपने भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान और अपनी सेना को लेकर लंका जाने का मार्ग खोज रहे थे। इसी दौरान वे तमिलनाडु के दक्षिण तट पर पहुंचे। लंका जाने के बीच एक विशाल समुद्र था। जिसे सेना को पार करना था। इसके लिए उन्होंने राम सेतु का निर्माण किया। माना जाता है कि रामेश्वरम वह स्थान है जहां भगवान राम ने रावण के विरुद्ध महायुद्ध शुरू करने से पहले भगवान शिव की पूजा की थी और उनसे आशीर्वाद और मार्गदर्शन मांगा था। भगवान शिव के सहयोग के प्रति कृतज्ञता में, भगवान राम ने इस स्थान पर एक लिंगम (भगवान शिव का एक अमूर्त प्रतिनिधित्व) स्थापित करने का निर्णय लिया। इस लिंगम को स्वयंभू लिंगम कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि यह स्वयं प्रकट हुआ था। इसके बाद इसे रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कहा गया। इस मंदिर की मुख्य संरचना 12वीं शताब्दी में पांड्य राजवंश के शासनकाल के दौरान बनाई गई थी।

सेतु समुद्रम
सेतु समुद्रम रामेश्वरम मंदिर के इतिहास में अपनी एक खास जगह रखता है। जो भगवान राम औऱ उनकी सेना द्वारा लंका तक पहुंचने के लिए बनाया गया एक पौराणिक पुल है। इसे एडम ब्रिज या राम ब्रिज के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि तैरते पत्थरों और मूंगा चट्टानों से बना यह पुल रामेश्वरम को श्रीलंका के द्वीप से जोड़ता है।
रामेश्वरम मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें
ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति तो सदियों पुरानी है। लेकिन मंदिर के बारे में माना जाता है कि इसकी मुख्य संरचना 12वीं शताब्दी में पांड्य राजवंश के शासनकाल के दौरान बनाई गई थी। मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ और इस्लामी शैलियों का मिश्रण है। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार जिसे पूर्वी गोपुरम कहा जाता है। यह 126 फीट की ऊंचाई पर है और विभिन्न देवताओं और दिव्य प्राणियों की अलंकृत नक्काशी और मूर्तियों से सुसज्जित है। मंदिर की एक खासियत यह भी है कि इसके गलियारे बहुत बड़े है, जिन्हें “प्रकरम” कहा जाता है। ये गलियारे एक बड़े क्षेत्र को घेरते हैं। मंदिर के स्तंभों और मूर्तियों पर जटील नक्काशी की गई है। मंदिर में एक गर्भगृह है, जहां ज्योतिर्लिंग की पूजा की जाती है। मंदिर की एक और खास बात है यहां 22 पवित्र कुएं हैं, जिन्हें “तीर्थम” भी कहा जाता है। इनमें प्रत्येक कुआं एक अलग पौराणिक महत्व से जुड़ा हुआ है।
रामेश्वर ज्योतिर्लिंग में दर्शन और आरती का समय
भगवान भोलेनाथ का यह पावन धाम प्रतिदिन सुबह 5 बजे से दोपहर 1 बजे तक और दोपहर 3 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। इस दौरान मंदिर में कई अनुष्ठान होते हैं। जिसमें सुबहब 5 बजे पल्लियाराई दीपा अराथना होती है। इसके बाद 5 बजकर 10 मिनट पर स्पैडिगालिंगा दीपा अराथना होती है। इसके बाद 5 बजकर 45 मिनट पर तिरुवनंतपुरम दीपा अराथना होती है। फिर 7 बजे विला पूजा होती है। सुबह 10 बजे कलसंथी पूजा होती है। इसके बाद दोपहर 12 बजे उचिकला पूजा होती है। शाम 6 बजे सयाराचा पूजा होती है। शाम साढ़े आठ बजे अर्थजामा पूजा होती है। पौने 9 बजे पल्लियारई पूजा होती है। और इसके बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है।
रामेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन और घूमने का सबसे अच्छा मौसम
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग में दर्शन करने के लिए वैसे तो 12 महीनें ही अनुकुल हैं। लेकिन आप तमिलनाडु में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग दर्शन करने के अलावा भी और जगह एक्सप्लोर करना चाहते हैं तो अक्टूपबर से फरवरी के बीच आप यहां की यात्रा कर सकते हैं। इन महीनों के दौरान, तापमान आमतौर पर 20-30 डिग्री सेल्सियस के बीच गिर जाता है। दिन सर्द हैं और शामें सुहावनी हैं। आप समुद्र तटों पर बोटिंग और सर्फिंग कर सकते हैं। सर्दियों का मौसम पर्यटकों और तीर्थयात्रियों अरुद्र दरिसनम (दिसंबर-जनवरी) का त्योहार मनाने के लिए भी रामेश्वरम आते हैं।
रामेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे?
राजधानी दिल्ली से रामेश्वर मंदिर की दूरी लगभग 2,698.9 किलोमीटर है।
हवाई मार्ग से-
यदि आप फ्लाइट से रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की यात्रा करना चाहते हैं। तो इस ज्योतिर्लिंग का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा मदुरै एयरपोर्ट है, जहां से रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की दूरी करीब 170 किमी. है। मदुरै एयरपोर्ट से आप बस या प्राइवेट टैक्सी के माध्यम से रामेश्वरम जा सकते हैं। यहां से गवर्नमेंट और प्राइवेट दोनों तरह की बसें आसानी से मिल जाती है।
रेल मार्ग से-
यदि आप ट्रेन से रामेश्वरम मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो यहां से मात्र 2 किमी. दूर रामेश्वरम रेलवे स्टेशन है, लेकिन यह स्टेशन से आसपास के कुछ ही शहरों से कनेक्टेड है। हालांकि, मदुरै जंक्शन देश के बाकी हिस्सों से कनेक्टेड है जो मंदिर से करीब 175 किमी. की दूरी पर है। इसलिए आप ट्रेन से मदुरै जंक्शन पहुंच सकते हैं और यहां आसानी से आपको मंदिर तक जाने के लिए बस आर टैक्सी मिल सकती है।
सड़क मार्ग से-
यदि आप सड़क मार्ग से रामेश्वरम मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो आप आसानी से यहां पहुंच सकते हैं। बता दें कि चेन्नई और मदुरै के साथ-साथ देश के दूसरे राज्यों के कुछ बड़े शहरों से रामेश्वरम जाने के लिए डायरेक्ट बस मिल जाएगी। इसके अलावा आप अपनी कार से भी यहां आसानी से पहुंच सकते हैं।

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