धर्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं – श्री हरि चैतन्य महाप्रभु


कामां 23 दिसंबर | तीर्थराज विमल कुण्ड स्थित श्री हरि कृपा आश्रम के संस्थापक एंव श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर व विश्व विख्यात संत स्वामी श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने यहाँ श्री हरि कृपा आश्रम में उपस्थित विशाल भक्त समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि धर्म लौकिकता व पारलौकिकता के बीच एक सेतु का काम करता है l लौकिक कर्तव्यों का पालन करते हुए पारलौकिक मार्ग पर कैसे आगे बढ़ा जा सके यह सिखाता है धर्म। कर्म,भक्ति व ज्ञान का सुन्दर समन्वय स्थापित करके जीवन को आदर्श, महान ,सुखी व समृद्ध बनाने का संदेश देता है धर्म। सत्य, अहिंसा ,परोपकार, राष्ट्र भक्ति ,माता पिता व गुरुजनों का सम्मान ,सदाचरण ,नैतिकता व चारित्रिक उत्थान का संदेश देता है धर्म । हम आज हिन्दू ,मुसलमान ,सिख ,ईसाई ,बौद्ध ,पारसी ,जैन इत्यादि बने हैं जिसमें कोई बुराई नहीं लेकिन एक सच्चे इंसान बने हैं या नहीं अंतरात्मा में यह सोचने पर मजबूर करता है धर्म । हम अपने धर्म का सम्मान करे लेकिन औरों का निरादर नहीं । सही दिशा में उठाया हमारा हर क़दम कल्याणकारी होगा।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में समाज में निरन्तर नैतिकता, राष्ट्रीयता व चरित्र का हो रहा ह्रास अत्याधिक चिंता का विषय हैं ।धर्म विज्ञान सम्मत है ढकोसला नहीं, लोगों ने अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए इसे ढकोसला बनाने का प्रयास किया। धर्म से विज्ञान दूर होने पर ही ढोंग,पाखंड, अंधविश्वास,रूढिवादिताओं को बढावा मिलता है ।धर्मविहीन विज्ञान विकास का नहीं, विनाश का कारण बनेगा। धर्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं ।देश को तोड़ने व बाटँने की जो घृणित व कुत्सित साज़िशें की जा रही हैं। उन्हें सफल नहीं होने देना है। राष्ट्र में सभी को सभी प्रकार के मतभेदों व संकीर्णताओं को त्यागकर आपसी प्रेम,एकता व सद्भाव को बनाए रखना हैं ।
उन्होंने कहा कि मानव जीवन की ही महिमा है कि वह अपने लिए समाज के लिए व परमात्मा के लिए उपयोगी हो सकता है । त्यागपूर्वक शांत होकर अपने लिए, उदारता पूर्वक सेवा करके समाज के लिए व आत्मीयता पूर्वक प्रेम करके परमात्मा के लिए उपयोगी होता है ।शांत उदार व प्रेमी भक़्त हो जाना यह मानव जीवन की महिमा है। जो शांत होगा वह उदार तथा ज़ो उदार होगा वह भक्त होगा।ऐसा जीवन ही पूर्ण जीवन है व ब्रह्मा का साक्षात्कार भी यही है ।त्याग संसार का नहीं अपितु ममता, अहंकार , अधिकार ,लोलुपता आसक्ति आदि का करना है ।परमात्मा अप्राप्त नहीं, नित्य प्राप्त है। मात्र प्राप्ति की स्मृति व जागृति के लिए निरन्तर सत्संग के प्रकाश में जीना है।महाराज श्री ने कहा कि सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो, जीवन में सफलता मिलेगी।
अपने धाराप्रवाह प्रवचनों से उन्होंने सभी भक्तों को मंत्रमुग्ध व भाव विभोर कर दिया । सारा वातावरण भक्तिमय हो उठा व” श्रीगुरु महाराज”, “कामां के कन्हैया” व “लाठी वाले भैय्या“की जय जयकार से गूंज उठा ।


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