मानवता का मूलाधार है राम का चरित्र-न्यायमूर्ति सूर्यप्रकाश केसरवानी
प्रयागराज।भारतीय कला और साहित्य में श्रीराम एवं रामकथा तथा वैश्विक संस्कृतीकरण पर उसका प्रभाव’ विषय पर आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ न्यायमूर्ति सूर्यप्रकाश केसरवानी ने कहा ’मानवता का मूलाधार है राम का चरित्र’।उन्होंने कहा राम स्वयं परम ब्रह्म है और हम सब उनके अंश है। राम का चरित्र समाज को एक दिशा देने का कार्य करता है। प्रभु श्रीराम ने मानवता के उत्थान के लिए सत्ता ग्रहण किया था और सत्ता पर रहते हुए स्वयं एवं अपने परिवार को कितना कष्ट सहते हुए भी अद्भुत त्याग का प्रदर्शन किया था सिर्फ इसलिए कई कड़े निर्णय उन्होंने लिए, जिससे समाज में कोई गलत संदेश न जाने पाये। प्रभु श्रीराम ने समाज के निचले पायदान के लोगों, स्त्रियों, ऋषि-मुनियों, नर-वानरों, सभी के उत्थान एवं एकजुटता के लिए बराबर का अधिकार देते हुए उनके बीच रहकर कार्य किया, जो मानवता का एक अद्भुत उदाहरण है। उनके इसी चरित्र को महान संत तुलसीदास जी ने रामचरित्र मानस के रूप में उद्घृत करते हुए समाज को और व्यक्ति को अपना चरित्र एवं आचरण कैसा रखना चाहिए, इसको वर्णित किया है।न्यायमूर्ति ने कहा कि धर्म दूरगामी राजनीति है और राजनीति आज का धर्म है। इसको हमें समझना पड़ेगा। उन्होने कहा कि डाॅ0 लोहिया ने कहा था रामचरित्र मानस समाज को सुख देने के लिए है। इसी प्रकार महात्मा गांधी ने जिस रामराज्य की कल्पना की थी वह राम के चरित्र से ही प्रेरित था। उनके समाजोत्थान के निर्णयों से प्रेरित था जो समाज के सभी लोगो के लिए एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।इसीलिए राम के चरित्र को मानवता का मूलाधार कहा जाता है।उन्होने कहा कि आजादी के बाद हमारे देश के संचालन के लिए जिस संविधान का निर्माण किया गया उन निर्माणकर्ताओं ने भी राम के चरित्र से भी प्रेरणा लेकर संविधान का निर्माण किया। संविधान का मूल आधार आर्टिकल-3 जो हमारे मूल अधिकारो को प्रदर्शित करता है जो राम के चरित्र पर ही मूल रूप से आधारित है। हमारे भारतीय समाज का मूल आधार ही राम कथा है देश के विभिन्न प्रान्तों में, विभिन्न भाषाओं में राम के चरित्र का वर्णन करते हुए अनेकों ग्रंथ लिखे गये है। जिसका सबसे अधिक प्रमाणित और पूर्ण वर्णन महर्षि वाल्मिकी रचित रामायण और महान संत तुलसीदास जी रचित्र रामचरित्र मानस में मिलता है।इसके पूर्व भारतीय इतिहास एवं अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली (शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार) द्वारा प्रायोजित एवं सम्राट हर्षवर्धन शोध संस्थान, प्रयागराज द्वारा आयोजित इस दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का द्वीप प्रज्ज्वलन कर मुख्य अतिथि वरिष्ठ न्यायमूर्ति सूर्यप्रकाश केसरवानी, महापौर प्रयागराज लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 के.वी. पाण्डेय, बीएचयू के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पूरातत्व विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सीताराम दुबे, सम्राट हर्षवर्धन शोध संस्थान के अध्यक्ष अनिल कुमार गुप्ता , सम्राट हर्षवर्धन शोध संस्थान के निदेशक एवं कार्यक्रम के मुख्य आयोजक रामरती पटेल पी.जी. काॅलेज के प्रोफेसर डाॅ0 प्रदीप केसरवानी ने उद्घाटन किया। तत्पश्चात शंखध्वनि और सरस्वती वन्दना के पश्चात मुख्य कार्यक्रम शुरू किया गया। कार्यक्रम का कुशल संचालन डाॅ0 रंजना त्रिपाठी द्वारा किया गया।