जमीन पर सूख गए पौधे कागजों में छाई हरियाली पौधारोपण अभियान सिर्फ फोटो खिंचवाने तक सीमित

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वृक्षारोपण कराओ, फोटो खिंचवाओ और फिर जिम्मेदारी भूल जाओ

प्रयागराज। मानसून का दौर निकट आने के साथ ही पर्यावरण के हितैषी जोर शोर से पौधारोपण की तैयारी में जुट गए हैं। सरकार ने भी लक्ष्य आवंटित कर दिए हैं लेकिन पर्यावरण संरक्षण का ढोल पीटने वाले प्रकृति प्रेमी पौधा रोपण तो कर देते हैं पर एक दिन के आयोजन के बाद उनकी सुध कोई नहीं लेता। हर साल लाखों की तादात में पौधों का रोपण करते हैं और संरक्षण के अभाव में हजारों पौधे पनपने से पहले ही दम तोड़ चुके होते हैं। इसके पीछे कारण है कहीं पानी व्यवस्था नहीं है तो कहीं देखरेख का अभाव। पौधा रोपण अभियान सिर्फ पौधे लगाने और फोटो खिंचवाने तक ही सीमित रह गया है। पौधे लगाइए, तस्वीर खिंचवाइए और फिर जिम्मेदारी भूल जाइए। इसके बाद ना पर्यावरण की फिक्र ना ही पौधे की देखभाल की फिक्र। लापरवाही की हद तो तब हो जाती है जब पौधे लगाने के बाद गडढ़ों में मिट्टी तक भरपूर नहीं भरी जाती जिस कारण वह उखड़ कर सूख जाते हैं।यह हाल तब है जब सरकार पौधे लगाने के लिए बड़ा अभियान चला रही है। साल दर साल लगाए गए पौधों के क्या हालात हैं इसे संभालने वाला कोई नहीं है जबकि पौधारोपण के बाद पानी देने से ज्यादा उसकी कटिंग व निराई गुड़ाई ज्यादा जरूरी है। पौधे रोपने के मामले में क्षेत्र अव्वल है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। पौधे लगाने के कुछ दिन बाद ही देखरेख के अभाव में अधिकतर पौधे गायब हो जाते हैं। अधिकारियों की उदासीनता के चलते अधिकतर पौधे पनप ही नहीं पाते हैं जो बचते भी हैं तो सुरक्षा के अभाव में मवेशी चट कर जाते हैं। महज 10 से 15 प्रतिशत पौधे ही बचते हैं। बीते साल जहां भी पौधे रोपे गए थे इस समय वहां देखा जाए तो पौधे कम गड्ढे अधिक है और इस गड्ढों में फिर से पौधारोपण कर इति श्री कर दिया जाता है। यह समस्या हमारे प्राकृतिक पर्यावरण के लिए बहुत ही चिंता जनक है। हमें संरक्षण के लिए अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि पौधों का संरक्षण हो सके। यह बात सही है कि पौधों को रोपने के प्रयास तो हो रहे हैं लेकिन धरातल पर काम नहीं दिख रहा है।नजारा यह है कि जमीन पर सूख रहे पौधे और कागजों में हरियाली छाई हुई है।


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