बांसवाड़ा| राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात की सीमावर्ती आदिवासी पट्टियों में एक साथ मनाए जा रहे “बीज उत्सव 2025″ का आयोजन बांसवाड़ा जिले के सज्जनगढ़ ब्लॉक के ग्राम खुंदनी, झकोड़िया और झुमकी में पूरे उत्साह और जनभागीदारी के साथ संपन्न हुआ।
यह आयोजन कृषि एवं आदिवासी स्वराज संगठन, भीलकुआं द्वारा वाग्धारा संस्था के मार्गदर्शन में किया गया, जिसका उद्देश्य पारंपरिक बीजों की अहमियत को पुनः स्थापित करना और देशी बीजों की विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना रहा। कार्यक्रम का उद्घाटन पारंपरिक रीति-रिवाजों और आदिवासी लोक संस्कृति के रंग में हुआ, जिसमें महिला किसान, बीज संरक्षक, संगठन प्रतिनिधि और ग्रामीण समुदाय के सदस्य बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
ब्लॉक सहजकर्ता सुनील मालवीय ने बीज उत्सव की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह न सिर्फ एक आयोजन है, बल्कि एक आंदोलन है जो किसानों को आत्मनिर्भरता, जैव विविधता और पारंपरिक खेती के मूल्यों की ओर ले जाता है।
इस बीज उत्सव में 413 किसान सहभागी बने, जिनमें सबसे बड़ी भागीदारी महिला किसानों की रही। यह दर्शाता है कि महिलाएं पारंपरिक खेती और बीज संरक्षण की रीढ़ रही हैं और अब इस आंदोलन की अग्रणी भूमिका में आ रही हैं।कार्यक्रम में पारंपरिक बीजों की एक विशाल प्रदर्शनी लगाई गई जिसमें निम्नलिखित बीज प्रमुख रूप से शामिल थे कोदो, कुटकी, तिल, उड़द, मूंग, मक्का, लाल मक्का, ज्वार, बाजरा, धनिया और हल्दी।
हर बीज के साथ उसकी: उपज क्षमता, स्थानीय जलवायु के अनुरूपता, पोषण गुणवत्ता, परंपरागत उपयोग जैसी महत्वपूर्ण जानकारियाँ साझा की गईं। यह प्रदर्शनी किसानों के लिए एक प्रेरणा का केंद्र बनी, जहाँ उन्हें यह समझ आया कि पारंपरिक बीज न केवल बेहतर उपज देते हैं, बल्कि जलवायु संकट के समय ज्यादा सहनशील और टिकाऊ होते हैं।
उत्सव का सबसे प्रभावशाली पक्ष वह रहा, जब महिला किसानों ने पारंपरिक गीत, कहानियाँ और अनुभव साझा कर यह भाव जगाया कि बीज केवल भोजन नहीं, बल्कि जीवन का मूल स्रोत हैं।”माटी की गंध में है जीवन का बीज” इन सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने यह स्पष्ट किया कि बीजों का संरक्षण केवल कृषि का विषय नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्तरदायित्व है। संस्था प्रतिनिधियों बीना डामोर, कमलेश चरपोटा और इंद्रजीत डोडियार ने परंपरागत बीजों के संग्रहण, उपचार और संरक्षण तकनीकों पर व्यवहारिक जानकारी साझा की।उन्होंने यह भी बताया कि कैसे रासायनिक बीजों की जगह देशी बीज अपनाकर किसान कम लागत में अधिक टिकाऊ खेती कर सकते हैं। इस आयोजन में संस्था के प्रमुख कार्यकर्ता और सामाजिक प्रतिनिधि मौजूद रहे, जिनमें सोहन नाथ जोगी, राधिका निनामा, मानसिंह गरासिया, मंजुला गरासिया, मंगली गरासिया, जयंती, सुन्दरलाल, सिलास डामोर, विनोद डामोर आदि प्रमुख रहे। बीज उत्सव 2025 ने यह स्पष्ट किया कि देशी बीजों का संरक्षण एक वैकल्पिक नहीं, बल्कि अत्यावश्यक कृषि क्रांति है। यह आंदोलन केवल खेतों तक सीमित नहीं, बल्कि संस्कृति, समाज और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को संवारने का रास्ता बन रहा है।