चौथ माता मेले पर विषेष

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बरवाड़ा की चौथ भवानी की महिमा अपार है – कान सिंह

सवाई माधोपुर 29 जनवरी। हमारी संस्कृति तीज त्यौहार व्रत उपवास यज्ञ हवन मेले इत्यादि के कारण समाज जागरण एकता तथा अध्यात्म को विकसित कर व्यक्ति को धार्मिक व आस्था वान बनाती है। कहते है यदि निस्वार्थ भक्ति व समर्पण हो तो हम वो लोग है जो पत्थर में भी मंत्र शक्ति से प्राण डालकर उन्हे पूजित एवं चमत्कारी बना देते है ऐसी ही देव भूमि सवाई माधोपुर की है। जहाँ रणत भँवर के लाडला गोरी पुत्र गणेश विराजित है। वहीं शिवाड में स्वयं घुश्मेश्वर शिव विराजमान है। चैथ का बरवाड़ा में माता चैथ भवानी विराजित हैं जो जन जन की आस्था का केन्द्र सदियों से बनी हुई हैं। इन तीनों स्थानों पर लक्खी मेले लगते है जहाँ सुदुर मध्य प्रदेश गुजरात पूरा राजस्थान महाराष्ट्र दिल्ली से भक्त गण चैथ माता के दर्शन कर उनको ढोक लगाने आते हैं।
जिला मुख्यालय पर पटेल नगर निवासी कान सिंह ने बताया कि चैथमाता का स्थान चमत्कारों से भरपूर है। अनेक लोगों ने इसका साक्षात्कार किया है। जो इसकी कहानियां सुनाते हैं। कहते हैं एक बार मंदिर पर बिजली गिरी पर मंदिर को आँच नहीं आई उस समय मंदिर में ब्रम्हचारी महाराज एवं राव भँवर सिंह मंदिर में उपस्थित थे। माताजी की कक्षा में वर्णित है। परवाला राव सहाब भॅवर सिंह को जगदम्बा साक्षात् दर्शन देती थी एक बार जब वो माता के नव दिन निर अहार नवरात्रा कर माता की हाथ फैलाकर अराधना कर रहे थे। उपर से छत्र उनकी झोली में आ गया। लेकिन उन्होंने अर्ज किया मॉ मुझे मोक्ष का द्वार चाहिए तेरी शरण चाहिए। इसी प्रकार हर चैथ पर वो गाँव परवाला जो बरवाड़ा से लगभग 25 किमी दूर है से कनक दंडवत करते आते थे। तब बीसलपुर व अन्य बांध नहीं थे बनास बारह मासी नदी बहती थी तब बनास बीच में से फटकर उनको रास्ता देती थी। ऐसी कृपा थी भवानी की आज भी पुराने लोग माताजी के इस यश का गुणगान करते हैं। वही एक बार एक मरे कुत्ते को भी उन्होंने अपनि मंत्र शक्ति से जीवित किया।
महिला पुरुष सब चैथ का चन्द्रायण व्रत करके अपने सुहाग की कामना तथा अपने जीवन को धन्य करने की प्रार्थना करते हैं। एक चमत्कार बरवाडा के पास विजयपुर गाँव है जहाँ एक गूर्जर जाति की महिला मोत्या गूजरी उसके पति जो फोज में थे उनका है उनका नाम 62 की चीन की लड़ाई में मृतकों की सूची में नाम आ गया पर शव नही आया वो माताजी की भक्त थी उसने इसकी अराधना की और उनका पति जीवित वापस आया।
ऐसे सैकडो चमत्कार लोगों ने अनुभूत किये है लोगों ने इसलिए आज यह भवानी माँ सातों जात में पूजित है। माघ बुदी चैथ पर माता का मेला भरता है जिसमें सैकड़ो नर नारी पैदल नाचते गाते अनेक यात्राएं श्रद्धालु कनक दंडवत करते आते हैं। जब से चैथ माता का ट्रस्ट बना है तब से व्यवस्थाएं उत्कृष्ठ रहती है उनके द्वारा रहने खाने पीने एवं दर्शन की अच्छी व्यवस्था रहती है। सभी जाति समाज की धर्मशालाएं भी आज सबको व्यवस्थायें देती हैं। भक्त गणों को कोई परेशानी नही हो इसका ध्यान रखती है वैसे चैथ माता ट्रस्ट ने भी अनेक धर्मशालाएं बना रखी है जो सभी व्यवस्थाओं से भर पूर हैं।
मेले में झूले चकरी सजावट भजन संध्या सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन ग्राम पंचायत द्वारा किया जाकर मे ले को रोचक बना रहा है। दुकानों पर किसान एवं पशुओं के
घर ग्रहस्थी के सामान ग्रामीण महिलाओं के श्रृंगार का चूडे पाटले कनकती के सामान भी मिलते हैं। मेले में आने वाले छोटे बालकों का मनोरंजन भी झूले चकरी मोत का कुआ खिलौने इत्यादि खूब करते हैं। इस मेले में हमारी ग्रामीण संस्कृति का रंग खुल कर बरसता है।


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