कुशलगढ़| प्रतापगढ के श्री रोकडिया हनुमान जी मंदिर में श्री भागवत ज्ञानगंगा महोत्सव में महामंडलेश्वर पंच अग्नि अखाड़ा, हरिद्वार के ध्यानयोगी महर्षि ईश्वरानंद ब्रह्मचारी उत्तम स्वामी जी महाराज ने कहा- सांसारिक तप्त जीवन और अकाल मृत्यु से तप्त आत्माओं को यह एकमात्र भागवत कथा की ज्ञानगंगा ही सबको आध्यात्मिक शांति देती है। जीवन को सुखमय और मृत्यु के बाद मुक्ति देने वाली ये कथा ही है। केवल्य ज्ञान देने वाला ये नारायण का नाम ही है। महर्षि उत्तम स्वामी जी ने गोकर्ण और धुंधुकारी के प्रसंग में ये अमृतवचन कहे। यदि आपके जीवन मे तनाव, कलह, विवाद है-परिवार में शांति नहीं है, यह अतृप्त आत्माओं के कारण है। उस जगह आप ईश्वर का नाम भजन करें। श्रीभागवत कथा का पारायण करें। वो अतृप्त आत्माएँ शांत होगी। उनकी मुक्ति होगी। आपको सुखशांति मिलेगी। भागवत कथा जीवन मे भी और जीवन के बाद भी शांति और मुक्ति देने वाली है।इसके बाद महर्षि उत्तमस्वामी जी ने कहा- “व्यास उच्छिष्टो जगत सर्वम् ……जो भी ज्ञान..है वो महर्षि वेदव्यास का ही दिया हुआ ज्ञान संसार में है। 6 शास्त्र और 18 पुराण में व्यास जी द्वारा दिया ज्ञान ही पूरे विश्व में प्रसारित है। ये सब व्यास जी द्वारा ही रचे गये है।उत्तम स्वामी महाराज ने कथा के दूसरे दिन धृतराष्ट्र के अंधे होने, 100 पुत्रों के नाश का कारण शाप बताया कि इनको पूर्व जन्म में नाग का श्राप लगा। पांडवो के साथ कौरवों द्वारा किए गए छल-कपट के प्रसंग सुनाए और इसके पीछे छिपे हुए मर्म को बताया कि छल-कपट करनेवाले का परिवार सहित नाश होता है।भीष्मपितामह को शरशैया का कारण द्रोपदी के वस्त्रहरण के समय चुप रहना।वो मौन इतना बड़ा पाप था कि शरशैया मिली। अश्वत्थामा को पाप के कारण उसे हजारों वर्ष तक जीकर पाप का फल भोगना पड़ रहा है आज भी । दशरथ के अंतिम समय में पुत्र राम का नहीं होना भी श्रवण के माता पिता जो तपस्वी थे, उनके श्राप के कारण पुत्र राम जो भगवान थे, अंतिम समय में उनके पास नहीं रह सके।जटायु हिंसक पक्षी था,किंतु नारी की रक्षा के लिए। सीता माता को बचाने के लिए रावण से युद्ध किया । नारी की रक्षा के लिए लडने के लिए मरते समय उस पक्षी जटायु को भगवान राम की गोद मृत्यु के समय मिली और अंतिम संस्कार भगवान राम के हाथ से हुआ। राजा परीक्षित को ऋषि पुत्र शृंगि ने श्राप दिया तब तक्षक नाग के काटने से मृत्यु हुई। जिसको जन्म से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने बचाया उस की मृत्यु ऋषि पुत्र के श्राप से हुई। श्री कृष्ण ने भी उसकी मृत्यु नहीं टाली l किन्तु उसकी मृत्यु शुकदेवजी से श्रीभागवत कथा के श्रवण से सुधर गई l मुक्ति मिल गई। श्राप से कभी कोई नहीं बच सकता l कथा का ये ही मर्म है। यह जानकारी गुरुभक्त मंडल के चन्द्रशेखर मेहता ने दी। मुख्य यजमान कमलेश पाटीदार पौथी पूजन विक्रम सिंह चौहान आरती के यजमान प्रभूलाल पालीवाल रहे। संचालन प्रकाश व्यास ने किया। सनातन धर्म उत्सव समिति के ओमप्रकाश ओझा रोकडिया हनुमानजी मंदिर ट्रस्ट भवरलाल व्यास गुरू भक्त मंडल आदि पूरी टीम कार्यों मे लगी हुई है l हज़ारों की संख्या मे भक्त उपस्थित थे l कथा के बाद भोजन प्रसादी प्रति दिन हो रहीं है |