सुदामा चरित्र हमें जीवन में आई कठिनाइयों का सामना करने की सीख देता है – पाराशर


डीग| मित्रता में गरीबी और अमीरी नहीं देखनी चाहिए। मित्र एक दूसरे का पूरक होता है।यह वाक्य शहर के ऐतिहासिक लक्ष्मण मंदिर पर साकेतवासी बाबा राम मनोहर दास जी महाराज के द्वारा प्रारंभ की गई एवं उन्हीं के शिष्य बाबा शिवराम दास जी महाराज के सानिध्य में आयोजित हो रही श्री मद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दौरान मंगलवार को व्यासपीठ पर विराजमान भागवत प्रवक्ता पूज्य पंडित मुरारी लाल पाराशर ने कृष्ण सुदामा की कथा का वर्णन करते हुए कहे।
उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने अपने बचपन के मित्र सुदामा की गरीबी को देखकर रोते हुए अपने राज सिंहासन पर बैठाया और उन्हें उलाहना दिया कि जब गरीबी में रह रहे थे ,तो अपने मित्र के पास तो आ सकते थे। लेकिन सुदामा ने मित्रता को सर्वोपरि मानते हुए श्रीकृष्ण से कुछ नहीं मांगा। उन्होंने बताया कि सुदामा चरित्र हमें जीवन में आई कठिनाइयों का सामना करने की सीख देता है। सुदामा ने भगवान के पास होते हुए अपने लिए कुछ नहीं मांगा। अर्थात निस्वार्थ समर्पण ही असली मित्रता है। भागवत कथा का श्रवण से मन आत्मा को परम सुख की प्राप्ति होती है। भागवत में बताए उपदेशों उच्च आदर्शों को जीवन में ढालने से मानव जीवन जीने का उद्देश्य सफल हो जाता है। सुदामा चरित्र के प्रसंग में कहा कि अपने मित्र का विपरीत परिस्थितियों में साथ निभाना ही मित्रता का सच्चा धर्म है।मित्र वह है जो अपने मित्र को सही दिशा प्रदान करे, जो कि मित्र की गलती पर उसे रोके और सही राह पर उसका सहयोग दे।
इस अवसर पर डॉ जीतेन्द्र सिंह,भारत भूषण पाराशर,राधे श्याम अग्रवाल जयपुर,हरिओम पाराशर,शिवलहरी मुद्गल,केदार सोखिया,हरेष बंसल,पुष्पा झालानी,गोकुल झालानी,विवेक पाराशर,रमेश अरोड़ा,रमाकांत वकील ,सहित बड़ी संख्या में भक्त उपस्थित थे।

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