नौगामा| जयपुर से सागर ले गए प्रतिमा , आर्यिका के सानिध्य में 24 अक्टूबर को विराजमान होगा।नौगामा में वागड मेवाड के सबसे बडे भगवान श्री मुनिसुव्रतनाथ की प्रतिमा का 24 अक्टूबर को नौगामा आगमन होगा। माताजी पवित्र मति माताजी ससघ के सानिध्य में प्रदीप भैया सुयश अशोक नगर निर्देशन में विधि विधान के साथ विराजमान होगी। शनि ग्रह अरिष्ट निवारक भगवान मुनिसुव्रतनाथ का भव्य मंदिर धर्म नगरी नौगामा में आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के आशिर्वाद, निर्यापक श्रमण मुनि पुंगव सुधासागरजी महाराज के प्रेरना से प्रतिष्ठाचार्य प्रदीप भैया सुयश अशोक नगर के दिशा निर्देशन में मंदिर बनने जा रहा है । प्रसिद्ध वास्तुविद श्रीपाल जैन और प्रवक्ता सुरेश गांधी ने बताया कि दो वर्ष तक देश भर की हजारो खदानो में श्याम वर्ण की बड़ी शीला को तलाश ने में लगे आखिर कार नौगामा जैन समाज के प्रयास को सफलता मिली और यह शीला मंडा भेसलाना जयपुर के पास खदान से श्याम वर्ण पत्थर को खोजा। जिसके बाद मुर्ति बनाने का कार्य जयपुर के प्रसिद्ध मुर्तिकार नाहटा परिवार ने मुर्ति बनाई।जिसको अंतिम रूप देने में छह माह लगे। 25 टन वजनी भगवान मुनि सुव्रतनाथ की उंचाई सवा 15 फीट प्रतिमा चौडाई 12 फीट ,गहराई 6 फीट तथा वेदी समेत सवा 21 फीट व शिखर समेत 108 फीट मंदिर की उंचाई होगी। मंदिर 100 बाय 200 फीट लंबाई चोडाई में बनकर तैयार हो रहा है। बंसी पहाडपुर पिंक पत्थर से निर्मित विशाल मंदिर दो नदीयो सुख नदी व हिरन नदी के संगम तट पर स्थित है जिस कारण से वर्ष 2016 में पुज्य सुधासागरजी महाराज ने तीर्थ का नाम सुखोदय रखा। मुर्ति को जांचा परखा नौगामा जैन समाज के प्रतिनिधि जयपुर से मुर्ति को सागर के भाग्योदय तीर्थ पर ले गए । जहां पर विराजमान पुज्य सुधासागरजी महाराज ने दो घंटे तक अवलोकन किया तथा क्रेन से निचे उतारकर अच्छे से देखा जांचा परखा उसके बाद प्रतिमा को सुखोदय तीर्थ पर बन रहे। मंदिर में विराजमान करने का आशीर्वाद प्रदान किया और महाराज ने कहा कि शास्त्रों में आया है मुर्ति तो बाद में बनती, पहले पाषाण को देखा जाता है, पाषाण की परीक्षा होती है, पाषाण के गुण होते,यह देखा जाता है कि यह पाषाण भगवान बनने लायक है या नही। पाषाण भी अपने आप में एनर्जी बोलता है कभी कभी पाषाण ऐसा होता है कि अध्यात्मिक शक्ति का बहुत बडा निमित्त बन जाता है। जो भी इस के मुर्ति के पास जाएगा कितना भी आक्रोश में होगा, नकारात्मक बनके जाएगा जैसे ही इस मुर्ति को देखेगा उसकी द्रष्टी उसका सोच सकारात्मक होगी और वो शांति का अनूभव प्राप्त करेगा। उन्होंने कहा कि कुछ पाषाण ऐसे होते जिसको हाथ में लेते ही झगडे का भाव आ जाता है । पुज्य सुधासागरजी महाराज ने कहा कि पहली द्रष्टी में ही आंख ने ना नही हां कहा कि मुर्ति बड़ी मनोहर हारि है अच्छी है। इससे अच्छी मुर्ति अब मिलेगी नही क्युकि खदानो से पत्थर निकल रहे वो बडी मुर्तिया निकल चुकी अब निकलेगी नही । इस मुर्ति के पहुंचने के बाद सुखोदय तीर्थ नौगामा ही नही पुरे भारत का तीर्थ क्षेत्र बनेगा। मुनि श्री ने देश भर से आए श्रद्धालुओं के समक्ष कहा कि वागड में दो क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रसिद्ध होंगे सुखोदय व वीरोदय तीर्थ दोनो क्षेत्र ऐसे बन रहे। जहां ऐसी व्यंवस्थाएं परिणती चल रही है दोनो क्षेत्र एक ऐसे संस्कांर को जीवित कर रहे है जो वागड इनसे रहित था। वागड में जाने के बाद मुझे लगा कि यहां कुछ है ही नही। श्रावक बहुत अच्छेे है।कही कही मंदिर भगवान बहुत अच्छे होते है लेकिन श्रावक उतने अच्छे नही होते है। कही मंदिर अच्छे नही होते लेकिन श्रावक अच्छे होते है जैसे वागड के सुधा सागरजी महाराज ने अपनी क्रपा वागड पर बरसाते हुए कहा कि वागड समाज बहुत अच्छीे संस्कारवान है लेकिन वहां कोई तीर्थ नही था। अभी तक वागड में कोई तीर्थ के नाम से नही जाता था लेकिन अब वीरोदय व सुखोदय तीर्थ पर सारे भारत के भक्त आएगें। शुभ संकेत जिज्ञासा समाधान में नौगामा के श्रावको ने मुनि श्री से कहा कि जिस पत्थर को आप भगवान कहोगे हम मान लेंगे। क्युकि लोग कहते है कि भगवान इंसान को बनाते है पर आपने तो हजारो पत्थरो को भगवान बनाए हजारो मंदिर बनाए। भक्तों ने कहा कि जैसे ही मुर्ति यहां पर आई हमने देखा सामने से गजरथ आ रहे थे। मंगल कलश लिए महिलाएं मिली पांच घोडे मिले तथा जैसे ही भाग्योदय में मुर्ति आई तो सुखोदय में आधे घंटे तक बारीश हुई ये सब शुभ संकेत मिले।इससे हम क्या संकेत समझे। जिस पर मुनि श्री ने कहा कि मुर्ति कोई बैठती है तो मुर्ति का मंदिर का अर्थ होता है समाज की सुख सम्रद्धि बढनी चाहीए। मंदिर बनाने वाले की भी बढोत्तरी होनी चाहीए तन मन धन सबसे बढना चाहीए। इस मुर्ति की सबसे बडी विशेषता है कि इसका पाषाण सबसे बडी एनर्जी देने वाला है। पवित्र मति माताजी करण मति माताजी गरिमा मति माताजी का आशीर्वाद प्राप्त कर 12 अक्टूबर को नौगामा से जयपुर प्रतिमा को लेकर सागर गए। इस अवसर पर नौगामा से 21 सदस्य का दल मूर्ति के साथ सागर पहुंचा। जिसमे प्रदीप पिंडरमियां जीतमल जैन सुभाष पंचोरी संदीप पंचोरी राजेंद्र गांधी संजय पंचोरी आशीष पिंडारमिया राजेंद्र पिंडारमिया सुभाष नानावटी रमेश चंद्र गांधी खुशपाल जैन भरत पंचोरी संजय पंचोरी विनोद नानावटी नरेश जैन रमण लाल जैन राजेंद्र जैन भी सागर पहुंचे और महाराज का आशीर्वाद लिया। उक्त जानकारी जैन समाज प्रवक्ता सुरेश चंद्र गांधी द्वारा दी गई।