गरीब महिला का रूप धारण कर जगद्जननी माता लक्षमी ने राजा बलि को बांधी थी राखी
भगवान विष्णु को पाताल लोक से करवाया था मुक्त
प्रयागराज।भाई बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का पर्व प्रयागराज के यमुनानगर क्षेत्र में बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। शहरी क्षेत्र से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में रक्षाबंधन पर्व की धूम रही रक्षा सूत्र के साथ-साथ परंपरा के अनुसार बहनों द्वारा भाइयों के मस्तक पर टीका लगाया गया और आरती उतारी गई। रक्षाबंधन के पर्व पर सुबह से देर रात तक मिठाई और राखी की दुकानों में खरीददारों की भारी भीड़ लगी रही जिससे सड़कों पर भी भीड़ देखी गई है बुधवार की सुबह से ही रक्षाबंधन के पर्व की धूम शुरू हो गई भाइयों के घर पहुंचकर बहनों ने बुधवार की शाम 9 बजे के बाद भाइयों के माथे में तिलक लगाकर उनकी आरती उतार कर कलाई में रक्षा सूत्र बांधकर मिठाइयां खिलाते हुए भाइयों से रक्षा का संकल्प लिया। वहीं भाइयों ने भी बहनों के चरण स्पर्श कर उन्हें उपहार आशीर्वाद देते हुए उनके खुशहाल जीवन की मंगल कामना की।गुरुवार के दिन भी रक्षाबंधन का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया गया है इस बार रक्षाबंधन का पर्व दो दिन मनाया गया है रक्षाबंधन के पर्व पर घरों में खुशियों का माहौल रहा। लोगों ने विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए और भाई बहनों ने एक दूसरे की रक्षा का संकल्प लिया। बताते चलें कि इसी कड़ी में राजा बली का दान धर्म का इतिहास सबसे ज्सादा प्रख्यात है। एक बार मां लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर बदले में उनसे भगवान विष्णु को मांगा था। रक्षाबंधन पर्व की कहानी इस तरह है कि एक बार राजा बलि ने यज्ञ का आयोजन किया तब उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु वामनावतार लेकर आए और दानवीर राजा बलि से तीन पग भूमि मांग ली। बलि ने हां कह दिया तो वामनावतार ने 2 पग में ही सारी धरती और आकाश नाप लिया। राजा बलि समझ गए कि भगवान विष्णु स्वयं उनकी परीक्षा ले रहे हैं। तीसरा पग रखने के लिए उन्होंने भगवान के सामने अपना सिर आगे कर दिया। फिर उन्होंने भगवान से याचना की कि अब तो मेरा सबकुछ चला ही गया है, प्रभु आप मेरी विनती स्वीकारें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान को भी भक्त की बात माननी पड़ी और विष्णुजी बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए। जब देवी लक्ष्मी को यह पता चला तो वह गरीब महिला का रूप धरकर बलि के पास पहुंची और राजा बलि को राखी बांध दी। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात श्रीहरि हैं और मुझे वही चाहिए। इस पर बलि ने भगवान विष्णु से माता लक्ष्मी के साथ जाने की विनती की। तब जाते वक्त भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीने चर्तुमास के रूप में जाने जाते हैं।