मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के जीवन दर्शन की सबसे बड़ी विषेषता उनका लोकोन्मुख होना है-नन्दी
प्रयागराज।भारतीय कला और साहित्य में श्रीराम एवं रामकथा तथा वैश्विक संस्कृतीकरण पर उसका प्रभाव’ विषय पर आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए समापन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री नन्द गोपाल गुप्ता ‘नन्दी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में राम उन मूल्यों के प्रतिमान है जिन आदर्षो ने भारत के लोकमानस की आचरण व मानसिकता को रचा बसा है। वे मर्यादा पुरूषोत्तम राम कहे जाते है। अर्थात मनुष्य के गुणोे की मर्यादा का अपने कृतित्व में अनुपालन करने वाले सर्वश्रेष्ट व्यक्तित्व हैै। राम के चरित्र मे – पुत्र, भाई, पिता, पति, शिष्य, अयोध्या नरेश आदि की भूमिकाओं में उन्होने सर्वश्रेष्ठ पदीय आदर्शों का पालन किया है। राम और सीता का प्रेम अद्वितीय है यही समर्पण से भरपूर प्रेम हमारी संस्कृति का एक ऐसा मूल है जो आज भी पति और पत्नी को एकात्म रखता है। राम के जीवन दर्शन की सबसे बड़ी विशेषता उनका लोकोन्मुख होना है। राम के सम्पूर्ण जीवन दर्शन यात्रा का उद्देष्य लोक मंगल के लिए एक आदर्ष प्रतिमान स्थापित करना है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि इ.वि.वि. के प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के प्रो0 हरि नारायण दुबे ने अपने उद्बोधन में कह कि रामकथा की दृष्टि में मानव जीवन के समग्र विकास का संदेश निहित है। राम के जीवन की कथा में भारत की भौगोलिक एकता ध्वनित होती है। देश के सभी प्रमुख भाषाओं में राम के जीवन्त को रचा-बसा गया जिनके प्रचार-प्रसार के कारण भारतीय संस्कृति की एकरूपता बढ़ी है। राम के जीवन की यह कथा कितनी प्रेरक रहेगी समूचा देश एक ही आदर्श की ओर उन्मुख रहा और भारत सहित सिंहल, तिब्बत वर्मा और कश्मीर आदि क्षेत्रों मे प्रचलित रामकाव्यों को यदि समाहित कर दे तो यह स्पष्ट होता है कि राम कथा ऐशियाई संस्कृति का महत्वपूर्व अंग है।प्रभु श्रीराम के नाम का हमारे भारतीय जनमानस पर क्या प्रभाव पड़ा इसको उद्घृत करते हुए सागर मध्य प्रदेष से आयी प्रख्यात विद्वान एवं समाजसेवी डाॅ. वन्दना गुप्ता ने कहा कि राम के नाम और राम के चरित्र का अनुसरण मात्र से हमारे जीवन का उद्धार होता है। उन्होने ने कहा कि काम, क्रोध, मद, लोभ से किया गया कार्य हमारे लिए सदा शर्मिंन्दगी का कारण बनता है इसलिए हमें इन चारों से हमेशा बचकर अपने जीवन को संचालित करना चाहिए। रामायण में वर्णित यह चार शब्द हमेशा सद्गुरू की भांति हमारा मार्गदर्शन करते है जो हमारे जीवन में अत्यंत महत्व रखने के साथ-साथ हमारे जीवन को उन्नति एवं प्रगति के पथ पर अग्रसारित करते हैं।