गोस्वामी तुलसीदास का जन्मोत्सव मानस भवन में हर्षोल्लास से मनाया गया

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गोस्वामी तुलसीदास का जन्मोत्सव मानस भवन में हर्षोल्लास से मनाया गया
रामचरित मानस तुलसीदास की कालजयी रचना है- दिव्येश महाराज

शाहपुरा-मूलचन्द पेसवानी/ शाहपुरा के रामचरित मानस मण्डल में गोस्वामी तुलसीदास जयंती महोत्सव का आयोजन रामस्नेही संत दिव्येश महाराज के सानिध्य में किया गया। इस मौके पर तुलसीदास के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला गया। कवियों ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया। चंद्रयान 3 के सफल होने पर ईसरो टीम को बधाई दी।
इस अवसर पर वक्ताओं ने संत तुलसीदास महाराज की साधना और सिद्धि के विविध आयामों की व्याख्या करते हुए कहा कि मानस के माध्यम से मानव जीवन के लिए उत्कृष्ट उपादान और सांसारिक जीवन के लिए वृहद आचार संहिता का दिग्दर्शन करने के साथ उन्होंने आराध्य प्रभु श्रीराम के जीवन का विस्तार से काव्यात्मक अभिव्यक्ति की।
शिक्षा विभाग के सेवानिवृत उपनिदेशक तेजपाल उपाध्याय द्वारा समारोह का संचालन करते हुए श्रीराम चरित मानस मंडल द्वारा संचालित विभिन्न गतिविधियों के साथ चल रहे प्रकल्पों के बारे में जानकारी दी। अध्यक्ष महेश पंचाल का स्वागत उद्बोधन किया। इस मौके पर जयदेव जोशी, विष्णुदत्त शर्मा, दिनेश शर्मा बंटी, तेजपाल उपाध्याय ने काव्य रचना के माध्यम से अपनी बात को रखा। मानस मंडल के अध्यक्ष रघुनाथ प्रसाद वैष्णव ने स्वागत किया तथा अशोक त्रिपाठी ने आभार जताया।
रामस्नेही संत दिव्येश महाराज ने कहा कि रामचरित मानस तुलसीदास की कालजयी रचना है। तुलसी का साहित्य समन्वय का साहित्य है। दुनिया की हर समस्या का समाधान तुलसी साहित्य में हैं। उनका रामचरित मानस स्वीकार का ग्रंथ है। उन्होंने आगे कहा कि सनातन धर्म कभी भी तुलसी के ऋण से मुक्त नहीं हो सकता है। रामस्नेही संत दिव्येश महाराज ने कहा कि तुलसीदास महाकवि थे। वे जीवन दृष्टा थे। रामचरित मानस उनकी प्रतिनिधि रचना है मगर तुलसी केवल मानस के सर्जक ही नहीं है। वे भक्ति आंदोलन के सूत्रधारों में से एक थे और उनका रचा साहित्य सर्वकालिक है। तुलसी के साहित्य को पढ़ कर धर्म की राह भी खुलती है और स्व से लेकर समूचे समाज के सुधार की राह भी दिखलाई देती है। आवश्यकता है कि भक्ति काल के इस मनीषी लेखक को भक्तिभाव के साथ खुली विचार दृष्टि से पढ़ा और समझा जाए।
रामस्नेही संत दिव्येश महाराज ने कहा कि तुलसी आकाश कुसुम खिलाने वाले कवि नहीं थे। उन्होंने यथार्थ की भावधरा पर भक्ति का कलश स्थापित किया और रामचरित मानस के रूप में ऐसा ग्रंथ रचा जो धर्म ग्रंथ की उपमा पा गया।
मानस में काकभुशुण्डि के माध्यम से तुलसी बाबा ने कहलवाया है कि श्री राम के राज्य में जड़, चेतन सारे जगत में काल, कर्म स्वभाव और गुणों से उत्पन्न हुए दुःख किसी को भी नहीं होते है। राम राज्य वह है जहां सब ज्ञानी है, जहां किसी में कपट नहीं है। कोई दरिद्र और गुणहीन नहीं है। कार्यक्रम की शुरूआत तुलसीदास के चित्र पर माल्यार्पण कर किया गया। अंत में प्रसाद का वितरण किया गया।


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