मां दुर्गा की द्वितीय शक्ति ब्रह्मचारिणी की पावन कथा

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मां दुर्गा की द्वितीय शक्ति ब्रह्मचारिणी की पावन कथा

या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

दधाना कर पद्याभ्याम अक्षमाला कमंडलू। देवी प्रसीदतुमई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

प्रयागराज। ब्यूरो राजदेव द्विवेदी। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है नव रातें। इन 9रातों और 10 दिन के दौरान शक्ति देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है और दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है। मां दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप देवी ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है।ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की धारणी-तप का आचरण करने वाली। कहा भी है-वेदस्तत्वं तपो ब्रह्मवेदं, तत्व और तप ब्रह्म शब्द के अर्थ हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल रहता है। अपने पूर्व जन्म में जब यह हिमालय के घर में पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थी तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी। मां दुर्गा की 9 शक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी मां का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया।एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखीं और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट को सहा। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाकर भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रहकर घोर तपस्या करती रही। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्ण पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की यह तुम्ही से संभव हो सका है तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति के रूप में अवश्य प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी व्यक्ति अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होता। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है,लालसाओं से मुक्ति के लिए मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान लगाना चाहिए।


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