मां दुर्गा की तीसरी शक्ति चंद्रघंटा की पावन कथा
प्रयागराज। ब्यूरो राजदेव द्विवेदी। मां चंद्रघंटा स्तुति मंत्र* पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं मह्यम् चंद्रघण्टेति विश्रांति।।या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।।
नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित है। इस दिन भक्त देवी के इस स्वरूप की विधिवत पूजा अर्चना करते हैं। शास्त्रों में मां चंद्रघंटा को कल्याण और शांति प्रदान करने वाला माना गया है। देवी दुर्गा के इस स्वरूप में माता के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्रमा है। इसी वजह से मां को चंद्रघंटा कहा जाता है। मां चंद्रघंटा की पूजा करने से न केवल रोगों से मुक्ति मिल सकती है बल्कि मां प्रसन्न होकर सभी कष्टों को हरण कर लेती है। उनका ध्यान हमारे इह लोक और परलोक दोनों के लिए कल्याणकारी और सद्गति देने वाला है।इनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला है। इस देवी के 10 हाथ हैं वे खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं। सिंह पर सवार इस देवी की मुद्रा युद्ध के लिए उद्धत रहने की है, इसके घंटे सी भयानक ध्वनि से अत्याचारी और राक्षस कांपते रहते हैं।
मां चंद्रघंटा की पावन कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक माता दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार तब लिया था जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था। उस समय महिषासुर का भयंकर युद्ध देवताओं से चल रहा था। दरअसल महिषासुर देवराज इंद्र के सिंहासन को प्राप्त करना चाहता था वह स्वर्ग लोक पर राज करने की इच्छा पूरी करने के लिए यह युद्ध कर रहा था। जब देवताओं को उसकी इस इच्छा का पता चला तो वह परेशान हो गए और भगवान ब्रह्मा विष्णु व महेश के समक्ष पहुंचे और बताया कि हे देवों के देव महिषासुर स्वर्ग का सिंहासन प्राप्त करना चाहता है हम देवताओं की आप त्रिदेव रक्षा करें। ब्रह्मा,विष्णु और महेश ने देवताओं की बात सुनकर क्रोध प्रकट किया, और क्रोध आने पर उन तीनों त्रिदेवों के मुख से ऊर्जा निकली उस ऊर्जा से एक देवी अवतरित हुईं उसे देवी को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, देवराज इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने अपना तेज तलवार व सिंह प्रदान किया। इसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की। शास्त्रों में मां चंद्रघंटा को लेकर यह कथा प्रचलित है। नवरात्रि में तीसरे दिन इसी देवी की पूजा आराधना की जाती है देवी का यह स्वरूप परम शांति दायक और कल्याणकारी है। इसलिए कहा जाता है कि निरंतर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखकर साधक को साधना करनी चाहिए।