प्रयागराज। ब्यूरो राजदेव द्विवेदी।
मां सिद्धिदात्री स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
मां सिद्धिदात्री की पावन कथा
पौराणिक कथा अनुसार मां सिद्धिदात्री अष्ट सिद्धि से युक्त हैं। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि के आखिरी दिन दुर्गा नवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से समस्त सिद्धियों का ज्ञान प्राप्त होता है। बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है,गंधर्व ,किन्नर ,नाग यक्ष, देवी- देवता और मनुष्य सभी इनकी कृपा से सिद्धियों को प्राप्त करते हैं। मां दुर्गा जी की नवमी शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है यह सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं नवरात्रि पूजन के नौवे दिन इनकी उपासना की जाती है इस दिन शास्त्रीय विधि विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ उसमें आ जाती है। मार्कंडेय पुराण के अनुसार अणिमा,महिमा,गरिमा, लघिमा, प्राप्ति,प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियां होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्री कृष्ण जन्म खंड में यह संख्या 18 बताई गई है। उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं–अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा,ईशित्व, वाशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वाक् सिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरण सामर्थ्य, अमरत्व,सर्वन्यायकत्व, भावना, सिद्धि। मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को यह सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने उनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकंपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था इसी कारण वे लोक में अर्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। मां सिद्धिदात्री चारभुजाओं वाली हैं इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प है। प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है कि मां सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करें। इनकी आराधना की ओर अग्रसर हों इनकी कृपा से अनंत दुख रूपी संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ साधक मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। सिद्धिदात्री मां के कृपा पात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से मां भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा रस पीयूष का निरंतर पान करता हुआ विषय भोग शून्य हो जाता है। मां भगवती का परम सानिध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती है। नवदुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम है अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवे दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री मां की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। सिद्धिदात्री मां को नारियल,खीर, पुआ,और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए। इस दिन भक्त को कन्या पूजन कर कन्या भोज कराना चाहिए। इस दिन बैगनी रंग के वस्त्र पहनकर माता की पूजा करनी चाहिए माता सिद्धिदात्री शक्ति प्रदान करने वाली देवी मानी जाती है यह रंग महत्वाकांक्षाओं का प्रतीक माना जाता है।