प्रयागराज| मां महागौरी स्तुति मंत्र
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेतांबरधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोदया।। या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।। अर्धांगिनी यथा त्वं शंकर प्रिया। तथा मां कुरु कल्याणी कंत कंत सुदुर्लभम्।।
मां महागौरी की पावन कथा
पौराणिक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पानी के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव इन्हें स्वीकार करते हैं और शिवजी इनके शरीर को गंगाजल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौरवर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णता गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख ,चंद्र ,और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी उनकी आयु आठ साल की मानी गई है। उनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं इसीलिए इन्हें श्वेतांबरधरा कहा गया है। इनकी चार भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा गया है। इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। उनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है यह अमोघ फलदायिनी है और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्व संचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं महागौरी का पूजन अर्चन उपासना आराधना कल्याणकारी है इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं। मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी को मोगरे का फूल अति प्रिय है ऐसे में साधक को इस दिन मां के चरणों में इस फूल को अर्पित करना चाहिए। इसके साथ ही मां को नारियल की बर्फी और लड्डू अवश्य चढ़ाना चाहिए क्योंकि मां का प्रिय भोग नारियल माना गया है।