मां दुर्गा की प्रथम शक्ति शैलपुत्री की पावन कथा
प्रयागराज। वंदे वांछित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखरम्। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर दुर्गा देवी के 9 स्वरूपों की पूजा उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। आईए जानते हैं मां दुर्गा के प्रथम शक्ति मां शैलपुत्री के बारे में—मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण शैलपुत्री के रूप में हुआ। माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा हैऔर बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं जो सती के नाम से भी जानी जाती हैं। जो एक मार्मिक कहानी है, एक बार जब दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया तो सारे देवताओं को निमंत्रित किया लेकिन भगवान शंकर को नहीं निमंत्रित किया। देवी सती पिता के घर यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं परंतु शंकर जी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है लेकिन मुझे स्थान नहीं दिया गया ऐसे में बिना बुलाए जाना उचित नहीं है। देवी सती का प्रबल आग्रह देखकर के शंकर जी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। देवी सती जब पिता के घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह प्रेम दिया और बहनों की बातों में व्यंग्यऔर उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी उन सभी का तिरस्कारपूर्ण भाव था प्रजापति दक्ष ने भी भगवान शंकर के प्रति देवी सती से अपवानजनक वचन कहे जिससे सती को पति के अपमान पर क्लेश पहुंचा वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारूण दुख से व्यथित होकर भगवान शंकर ने उस यज्ञ का विध्वंस कर दिया। यही देवी सती अगले जन्म में शैल राज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी और शैलपुत्री कहलाईं। पार्वती और हेमवती भी इन्हीं देवी के अन्य नाम हैं घोर तपस्या करने के बाद निश्चित समय आने पर शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ शैलपुत्री भगवान शिव जी की अर्धांगिनी बनीं इनका महत्व और शक्ति अनंत है।