नीट जैसी प्रवेश परीक्षाएं ओर सरकारी भर्ती करने वाली संस्थाओं में ‘सर्जरी’ कर हो आमूलचुल बदलाव

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पैसे के दम पर अयोग्य का चयन देश के भविष्य से खिलवाड़, पेपर दलालों को संरक्षण देने वालों ‘आकाओ’ के चेहरे भी हो बेनकाब

निलेश कांठेड़-

परीक्षा का नाम भले ‘नीट’ है पर जो हालात नजर आ रहे है वह चयन में फैली ‘गदंगी’की तरफ इशारा कर रहे है। राजनीति ओर नेताओं की विश्वसनीयता तो पहले ही ‘पाताल’ में पहुंच चुकी है ओर अब उसी के पदचिन्हों पर प्रोफेशनल कोर्सेज में चयन के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षाओं ओर भर्ती परीक्षाओं के हाल हो रहे है यानि कोई कितना भी पाक-साफ हो भरोसा खत्म होता जा रहा है। राजस्थान में सब इंसपेक्टर से लेकर टीचर्स भर्ती परीक्षाओं में पैसे के दम पर पेपर जुटा या डमी परीक्षार्थी बिठा अयोग्य अभ्यर्थियों के चयन का मामला अभी पूरी तरह उजागर भी नहीं हुआ है वहीं संख्यात्मक दृष्टि से देश की सबसे बड़ी प्रवेश परीक्षा में शुमार नीट के पेपर लीक से लेकर मैरिट ओर चयन प्रक्रिया पर उठे सवाल ने दिन-रात पसीना बहाकर परीक्षा में सफलता पाने का सपना संजोने वाली प्रतिभाओं ओर उनके अभिभावकों के हौंसले तोड़ से दिए है। कुछ राज्यों में नीट के पेपर लीक हो जाने की चर्चा ने परीक्षा आयोजक ‘एनटीए’ की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए है जिनकी अनदेखी करना देश के भविष्य से खिलवाड़ करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 18 जून को सुनवाई के दौरान जो टिप्पणी की है उसके आधार पर केन्द्र सरकार को इस मामले की पड़ताल सीबीआई जैसी एजेंसी को देने के साथ दोषियों को बेनकाब करना होगा। यदि पेपर लीक होने की अंश मात्र भी पुुष्टि होती है तो पूरा परीक्षा परिणाम शक के दायरे में आएगा। राजनीति में जिस तरह बिना ‘लक्ष्मी’ का सहारा लिए केवल ईमानदारी के बल पर पार्षद या पंच का चुनाव जीतना भी असंभव सा माने जाने लगा है उसी तरह के हालात सरकारी भर्ती ओर प्रवेश परीक्षाओं के हो रहे है यानि ये धारण बलवती हो जा रही है कि बिना प्रश्नपत्र का जुगाड़ किए या डमी परीक्षार्थी बिठाए बिना सरकारी नौकरी में चयन या देश के नामी सरकारी मेडिकल व इंजीनियरिंग कॉलेजों में मनचाहे कोर्स में प्रवेश पाना आसमान से तारे तोड़ने के समान है। इस धारणा के चलते सबसे अधिक खामियाजा मध्यम व उच्च वर्ग उन प्रतिभावान परीक्षार्थियों को भुगतना पड़ रहा है जो दिन-रात कड़ी मेहनत के बल पर सफलता हासिल कर रहे है फिर भी लोग यही सोचते है कि पैसे के दम पर कहीं से प्रश्नपत्र का जुगाड़ हो गया होगा। सरकारी नौकरी ओर प्रोफेशनल कोर्सेज में प्रवेश के लिए होने वाली परीक्षाओं की विश्वसनीयता का ग्राफ कुछ वर्षो में इतनी तेजी से गिरा है कि उसे फिर से बहाल करना किसी भी सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। परीक्षाओ में पेपर लीक प्रकरणो में जो पर्दाफाश हो रहे है वह धन ओर सिफारिश की बजाय मेहनत पर भरोसा करने वाले बेरोजगार प्रतिभावान युवाओं व उनके अभिभावकों की रातों की नींद उड़ा देने वाले है। जब परीक्षा के टॉपर्स ही पेपर खरीदने वाले अभ्यर्थी बन जाएंगे तो प्रतिभावान निर्धन युवा कहां जाएंगे। देश के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले पेपर लीक व डमी अभ्यर्थी बिठाने के मामलों में दलगत राजनीति की जगह बिल्कुल नहीं होनी चाहिए ओर दोषी कोई भी हो हाथ उसके गिरहबान तक पहुंचना ही चाहिए ओर कोई बचाने का प्रयास करे तो उसका ‘काला चेहरा’ भी देश के समक्ष उजागर होना चाहिए। इसके लिए केंद्र और राज्यो में सत्ता की बागड़ोर संभाल रही सरकारों की जिम्मेदारी भी कम नहीं होगी। प्रश्नपत्र खरीद या डमी अभ्यर्थी बिठा चयनित होने वाले परीक्षार्थियों के साथ पेपर माफिया के नाम पर केवल कोचिंग सेंटर चलाने वालों ओर सरकारी नौकरियां कर रहे कर्मचारियों की धरपकड़ से युवाओं के भविष्य के लिए नासूर बन चुकी इस महामारी का अंत नहीं होगा। जो डमी अभ्यर्थी बनकर बैठते है उन्हें भी सरकारी नौकरियों ओर कालेजों से जीवनभर के लिए ब्लेक लिस्टेड करना चाहिए। यदि पेपर लीक जैसे घातक वायरस से परीक्षाओं को बचाना है तो राजनीतिक स्वार्थो को छोड़ सरकारों को मजबूत फैसले लेने होंगे ओर विपक्ष को भी राष्ट्र हित में सरकार का साथ देना होगा। ये बात साधारण व्यक्ति के गले कदापि नहीं उतरने वाली है कि फरार चल रहे कुछ पेपर माफिया को पकड़ लेने से सारे दोषी कानून के शिंकजे में हो जाएंगे सब ये बात जानते ओर मानते है कि ऐसी प्रतिभाओं के भविष्य को बर्बाद करने वाले ऐसे गिरोह ‘आका’ बने बड़े राजनेताओं ओर अधिकारियों के संरक्षण के बिना कदापि पनप नहीं सकते। अब राजस्थान सरकार हो या केन्द्र सरकार चुनौती प्रश्नपत्र गिरोह को नोटो ओर वोटो के मोह में प्रश्रय दे रहे आकाओ के गले तक हाथ पहुंचाने की है। जब तक इन गिरोह को पनपाने वाले नेताओं ओर अफसरों के चेहरों से नकाब नहीं उतरेगा व्यवस्था सुधरने का यकीन कोई नहीं कर पाएंगा। केन्द्र ओर राज्य सरकारों के पास अवसर है कि प्रवेश परीक्षाओं ओर भर्ती परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक कराने वाले, डमी कैडिंडेट बिठाने वाले ओर पैसे ओर सिफारिश के बल पर योग्य की अनदेखी कर अयोग्य का चयन करने वाले बड़े चेहरों को बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के बेनकाब कर जनता का विश्वास फिर भर्ती परीक्षाओं की निष्पक्षता के लिए अर्जित कर सके। यदि सरकार किसी भी कारण से इन चेहरो को बेनकाब करने की बजाय बचाने का प्रयास करेेगी तो यकीन मानिए चुनाव के समय मतदाता इन्हें कभी माफ नहीं करने वाले है। यदि चौर-चौरे मौसरे भाई वाली धारणा राजनीति में पनपने से रोकनी है तो सरकारों को उन नेताओं, अफसरों व कोचिंग माफिया के चेहरों से ईमानदारी, जनसेवा ओर योग्य का चयन कराने के दावों का मुखोटा उतार के फेंकना होगा जो भर्ती परीक्षा गिरोह के आश्रयदाता बन प्रतिभाओं का गला घोंटने का संगीन अपराध कर चुके है। ऐसे नेता,अफसर, कर्मचारी ओर कोचिंग माफिया जोड़-तोड़ से सरकारी दण्ड से भले बचाव कर भी ले पर उपर वाले की अदालत में तो उन्हें सजा भुगतनी ही पड़ेगी वहां कोई पैरेवी या सिफारिश उन्हें इन कर्मो का दण्ड पाने से नहीं बचा पाएंगी।


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