डीग|नगर-नगर कस्बे में चल रहे श्री राम रथ यात्रा मेले में मेला मैदान के सांस्कृतिक मंच पर रात्रि को श्री रामलीला कला मण्डल नगर द्वारा वीर अभिमन्यु ड्रामा का शानदार और भव्य मंचन किया गया। वीर रस से परिपूर्ण संवादों पर दर्शक बार बार तालिया बजाते नजर आए। पंडित राधेश्याम शर्मा द्वारा लिखित नाटक का मंचन श्रीरामलीला कला मंडल के अध्यक्ष ब्रह्मानंद दाढ़ीवाला के निर्देशन में किया गया। मंचन में श्रीकृष्ण और अर्जुन के समसप्तको से युद्ध करने जाने पर कौरव सेनापति गुरु द्रोणाचार्य द्वारा चक्रव्यूह की रचना की जाती है, पांडव सेना में अर्जुन पुत्र अभिमन्यु के अलावा और कोई योद्धा इस चक्रव्युह को तोड़ना नहीं जानता। जब अभिमन्यु गर्भ में था तब अर्जुन ने सुभद्रा को यह कथा सुनाई थी तब ही अभिमन्यु ने यह कला सीखी थी। लेकिन माता के नीद आजाने के कारण चक्रव्यूह से बाहर निकलने की कला नही सीख पाया। अभिमन्यु कौरव सेना को परास्त करते हुए सिंधु नरेश जयद्रथ को मूर्छित कर चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश कर जाता है व्यूह के 7 द्वारो को पार कर जाता है लेकिन महाबल शाली योद्धा सिंधु नरेश अन्य किसी पांडव को अंदर प्रवेश नही करने देता है। उधर सात महारथी द्रोणाचार्य दुर्योधन, दुशासन, कर्ण, शल्य, अश्वस्थामा, शकुनी धोखे से निशस्त्र अभिमन्यु को घेरकर अन्याय पूर्व वध कर देते है। इसके बाद अर्जुन कल सांयकाल तक जयद्रथ का वध करने या वध ना कर पाने की स्थिति में स्वयं को जलती चिता में भस्म कर देने की शपथ लेता है। कृष्ण अर्जुन कैलाश जाकर भगवान शंकर से पशुपति अस्त्र लाते है, इधर जयद्रथ को द्रोणाचार्य सकट व्यूह में छुपा देते है। सांयकाल होने पर जयद्रथ नही मिलता है तो अर्जुन अपनी चिता सजाकर भस्म होना चाहते है तभी भगवान कृष्ण की योगमाया द्वारा बादलो में छुपा सूर्य निकलता है, तुरंत कृष्ण इशारे पर अर्जुन जयद्रथ का सिर पशुपति अस्त्र से काट देता है, उसके बाद अभिमन्यु के पुत्र परिक्षित को हस्थिनापुर का राजतिलक किया जाता हैं। मंचन में कलाकारों ने शानदार अभिनय किया। कार्यक्रम की शुरुआत गणेश वंदना और सरस्वती वंदना के साथ हुई। अभिमन्यु नाटक महाभारत कथा से लिया गया था।
निर्देशक वरिष्ठ साहित्यकार ब्रह्मानंद दाढ़ी वाला ने बताया कि महाभारत युद्ध के 13वें दिन गुरु द्रोणाचार्य की ओर से चक्रव्यूह की रचना की गई थी, इस दिन के युद्ध में अनेकों वीरों को वीरगति प्राप्त हुई, लेकिन एक ऐसा योद्धा जो अभी यौवन को भी प्राप्त नहीं हुआ था। युद्ध की विभीषिका की भेंट चढ़ा, मात्र 16 वर्ष की उम्र में असाधारण युद्ध कौशल का परिचय देने वाले इस योद्धा को आज तक बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है। वह महान योद्धा अर्जुन व सुभद्रा के पुत्र वीर अभिमन्यु थे, मां के गर्भ में ही युद्ध कला को सीखने वाले इस अद्भुत बालक ने अकेले ही कौरव दल के बड़े-बड़े महारथियों को धूल चटा दी थी। दाढ़ी वाला ने कहा कि मेले का सांस्कृतिक मंच ही एक ऐसा माध्यम है, जिससे स्थानीय नवोदित कलाकारों के अंदर की छुपी हुई प्रतिभा को निखारा जा सकता है।
अभिमन्यु की शानदार भूमिका में पवन प्रधान, श्रीकृष्ण – जगदीश वर्मा, युधिष्ठिर–मनोज कटारा, अर्जुन –संतोष मिश्रा, नकुल – लव पंडा, सहदेव–विपिन तिवारी, भीम –रामेश्वर पंडित, उत्तरा –हेमंत, भगवान शंकर और परिक्षित –कुश पंडा, सुभद्रा–गोपाल। द्रोणाचार्य –ब्रह्मानंद दाढ़ीवाला, जयद्रथ –दीपक शर्मा, दुर्योधन –मोहन जोशी, दुशासन –मुकेश जोशी, शकुनी –सुनील गुड्डू , शल्य –विनोद गुल्लू, कर्ण –दीपक पंडा, अश्वस्थमा –नीरज प्रधान, दारुक –लालाराम सैनी, योगमाया का अभिनय –सोनू योगी ने किया।हारमोनियम पर नरेश सैनी, नक्कारा पर छिद्दामल राजस्थानी, ढोलक पर हरिओम राणा ने संगत की। पवन प्रधान , मुकेश जोशी, दीपक शर्मा, मोहन जोशी के वीर रस के अभिनय को दर्शकों ने जमकर सराहा। उत्तरा के रूप में हेमंत सैनी के अभिनय से दर्शक भाव विभोर हो गए। अर्जुन के रूप में संतोष मिश्रा का बहुमुखी अभिनय खूब जमा। मनोज कटारा के करुणामई अभिनय से दर्शकों को आंखे डबडबा आईं। बंटी देशवाल ग्रुप का महाकाल डांस , मयंक सैन का तांडव नृत्य और गौरव के कठपुतली डांस ने समा बांध दिया। इस मौके पर राजेंद्र एग्रो, पार्षद राजेश पाठक, ओमां गाजिया, अकरम पवार, रामवतार शर्मा, फतेहचद सैनी, ठाकुर सिंह, निरंजन वर्मा, सुशील प्रधान, सतीश मित्तल, संजय सिंघल, शांति स्वरूप अशोक उपाध्याय, पुष्पेंद्र कौशिक, केदार गजिया, भागमल शर्मा, हरगोविंद शर्मा, जगनी गुरु , मोहिनी मिश्र, संजीव गुप्ता, योगेश कौशिक सहित आस पड़ौस के ग्रामीणों के साथ कस्बे के हजारों की संख्या में महिला पुरुष मौजूद रहे।