तथाकथित दलाल पत्रकारों पर आखिर जिला प्रशासन कब करेगी कार्यवाही
सुबह से शाम तक धन उगाही कर पत्रकारिता को कर रहे कलंकित
प्रयागराज। ब्यूरो राजदेव द्विवेदी। जैसे बारिश के दिनों में जगह-जगह बाढ़ देखने को मिलती है वैसे ही अब जगह-जगह गांव-गांव में पत्रकारों की बाढ़ से आ गई है। बिना रजिस्ट्रेशन स्वयंभू मनमाने माइक आईडी लेकर घूम रहे हैं खबर लिखने बने या ना बने पर पत्रकार बन गए ना कोई डिग्री ना कोई पीआरओ में जानकारी और फिर शुरू होती है पत्रकारिता के नाम पर अवैध वसूली। माना कि पत्रकारिता अब मिशन नहीं यह एक प्रोफेशन और बिजनेस हो चला है, मगर क्या हर प्रोफेशन और बिजनेस का कोई एथिक्स नहीं होता। चंद टुकड़ों पर अपनी जमीर बेचना ही अब कुछ के लिए पत्रकारिता बन गई है ताज्जुब तो इस बात का है कि इन सब घिनौने करतूतों को जानने के बाद भी कोई सख्त कदम उठता नहीं दिख रहा है जिसका नतीजा यह है कि पत्रकार और उसकी पत्रकारिता रसातल में घुसती चली जा रही है। पिछले कुछ समय से ऐसे गीदड़ भेड़ की शक्ल में आ घुसे हैं कि समाज में पत्रकार का सम्मान खत्म होता जा रहा है। आज कलम कुछ ऐसे हाथों में पहुंच गई है जिन्हें पत्रकारिता से कुछ लेना-देना नहीं अवैध कारोबार कर फर्जी पत्रकारिता की कलम को अपना सुरक्षा कवच बनाए हैं। पत्रकारिता की आड़ में शुद्ध दलाली कर रहे हैं और त्रासदी यह है कि इन तथा कथित दलाल पत्रकारों को प्रशासनिक पुलिस अधिकारियों जनप्रतिनिधियों का भरपूर संरक्षण मिल रहा है। कुछ दलाल पत्रकारों ने थानों में ऐसी पैठ बना रखी है कि बिना उनकी सहमति के पत्ता नहीं हिल सकता।अगर फरियादी फरियाद लेकर जाए तो पहली मुलाकात उन तथा कथित दलाल पत्रकारों से होती है जो दिन भर थाने में बैठकर पुलिस की दलाली करते हैं। ऐसे में पीड़ित को भला न्याय मिल पाना कहां तक संभव हो पाएगा। पत्रकारिता जगत को कलंकित कर रहे कई बार अवैध वसूली, मारपीट ,चोरी से लेकर चमचागिरी करने वाले पत्रकारों की हकीकत की खबरें हम सबके सामने आती रहती हैं।
जिला प्रशासन फर्जी पत्रकारों पर कार्यवाही में मौन क्यों
मजे की बात तो यह है कि धरती के भगवान कहे जाने वाले भी फर्जी पत्रकारिता का कार्ड ले प्रैक्टिस कर रहे हैं धड़ाधड़ ऑपरेशन पर ऑपरेशन किये जा रहे हैं तो टांके कहीं ना कहीं गलत तो लगेंगे ही। मगर उनको इससे क्या लेना देना उनकी जेबें गर्म होती रहे अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता। कहां तक नाम गिनवाऊं साहब व्यवसायी, प्रॉपर्टी डीलर, पैथोलॉजी लैब, शराब के ठेकेदार, लकड़ी माफिया, गैस डीलर, पेट्रोल पंप डीलर, बड़े-बड़े ठेकेदार, माफिया, अपराधी आदि फर्जी पत्रकारिता का कार्ड बनवाकर खुलकर भ्रष्टाचार कर रहे हैं। जिनका कोई आधार नहीं वह कब कहां किस स्थान पर अपने आप को बड़े चैनल का ब्यूरो चीफ बता कर दबिश दे देते हैं जिनका कोई भरोसा नहीं है।मगर जिला प्रशासन में बैठे सक्षम अधिकारियों की नजर इन पर क्यों नहीं पड़ रही जिला प्रशासन क्यों मेहरबान है यह अपने आप में एक अहम और बड़ा सवाल है।