मोबाईल आपकी जेब है, या आप मोबाईल की जेब में हो
सवाई माधोपुर 16 अप्रैल। 21वीं सदी को अगर ‘‘डिजिटल युग‘‘ कहा जाए, तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। विज्ञान और तकनीक के इस युग में मोबाइल फोन एक ऐसा आविष्कार बनकर उभरा है, जिसने हमारी जीवनशैली को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। पहले जहाँ यह सिर्फ संचार का माध्यम था, वहीं आज यह मनोरंजन, शिक्षा, व्यापार, स्वास्थ्य, सोशल मीडिया और दुनिया से जुड़ाव का सबसे बड़ा जरिया बन चुका है। परंतु इसी विकासशीलता के बीच एक गूढ़ प्रश्न खड़ा होता है “मोबाइल आपकी जेब में है, या आप मोबाइल की जेब में हो ” यह सवाल जितना सरल दिखाई देता है, उतना ही गहरा और विचारोत्तेजक है।
मोबाइल आधुनिकता का वरदान या मानसिक बंधन:- शुरुआत में मोबाइल ने मानव जीवन को सुविधाजनक बनाने में अद्वितीय योगदान दिया। दूरियां मिट गईं, सूचना की उपलब्धता त्वरित हो गई, और विश्व एक ‘‘ग्लोबल विलेज‘‘ में तब्दील हो गया। परंतु जैसे-जैसे तकनीक ने छलांग मारी, मोबाइल धीरे-धीरे एक साधन से ज्यादा आधिपत्य बनता चला गया। आज यह हमारी सोच, समय, संबंध और यहां तक कि संवेदनाओं पर शासन करने लगा है।
हम सोचते हैं कि हम मोबाइल चला रहे हैं, पर क्या वाकई ऐसा है हम सुबह आंख खोलते ही सबसे पहले मोबाइल स्क्रीन देखते हैं, रात को सोने से पहले वही अंतिम दृश्य होता है। दिनभर हम बार-बार फोन उठाते हैं कभी सोशल मीडिया, कभी नोटिफिकेशन, कभी चैट्स। कभी-कभी तो ऐसा लगता है जैसे हमारा समय, हमारी ऊर्जा और हमारी एकाग्रता सब कुछ उसी छोटी सी स्क्रीन में समाहित हो गई है।
मानवता बनाम वर्चुअल दुनिया:- मोबाइल ने हमें पूरी दुनिया से जोड़ दिया है, पर हमारे अपने करीबी हमसे दूर होते जा रहे हैं। पहले जहां परिवार के लोग एक साथ बैठकर बातचीत करते थे, आज वे एक ही छत के नीचे होते हुए भी एक-दूसरे से कटे रहते हैं वो भी एक मोबाइल की वजह से। बच्चों का बचपन अब खेल के मैदान में नहीं, बल्कि गेमिंग ऐप्स में कैद हो चुका है। युवा वर्ग अपनी पहचान इंस्टाग्राम, सोशल मीडिया फॉलोअर्स से आंकने लगा है। बुजुर्गों की बातें अब ध्यान से नहीं सुनी जातीं, क्योंकि हमारे पास स्क्रॉल करने के लिए समय है पर उनकी बात सुनने के लिए नहीं।
तकनीक का दास नहीं उसका स्वामी बनें:- मोबाइल अच्छा है या बुरा उसके उपयोग का संतुलन कहां है क्या हम उसका प्रयोग अपनी उत्पादकता बढ़ाने, ज्ञान अर्जन करने और जीवन को बेहतर बनाने के लिए कर रहे हैं, या वह हमारे मन, समय और रिश्तों को धीरे-धीरे निगल रहा है। मोबाइल एक अद्भुत साधन है लेकिन हमें साधक रहना चाहिए, साधन वह है। जब साधन ही साधक पर हावी हो जाए, तो जीवन में असंतुलन उत्पन्न होना तय है।
मोबाइल आपकी जेब में है, या आप मोबाइल की जेब में हो, यह एक चेतावनी है, एक दर्पण है जो हमें हमारे भीतर झांकने के लिए प्रेरित करता है। मोबाइल को अपनी सुविधा का माध्यम बनाएं, न कि जीवन का केंद्र। अपने रिश्तों को स्क्रीन के पीछे नहीं, आंखों में देखकर निभाएं। ज्ञान को गूगल से नहीं, अनुभव से अर्जित करें। और सबसे अहम मोबाइल से जुड़े, पर उससे जकड़े नहीं। क्योंकि असली आज़ादी तब है, जब मोबाइल हमारी जेब में हो हम उसकी जेब में नहीं।

2014 से लगातार पत्रकारिता कर रहे हैं। 2015 से 2021 तक गंगापुर सिटी पोर्टल (G News Portal) का बतौर एडिटर सञ्चालन किया। 2017 से 2020 तक उन्होंने दैनिक समाचार पत्र राजस्थान खोज खबर में काम किया। 2021 से 2022 तक दैनिक भास्कर डिजिटल न्यूज और साधना न्यूज़ में। 2021 से अब तक वे आवाज आपकी न्यूज पोर्टल और गंगापुर हलचल (साप्ताहिक समाचार पत्र) में संपादक और पत्रकार हैं। साथ ही स्वतंत्र पत्रकार हैं।