सवाई माधोपुर 24 नवम्बर। जब बचपन होता है तो माँ बाप हमें संभालते है हमारी देख भाल करते है हमारे खाने से लेकर सोने तथा बीच में खेलने तक सब प्रकार की चिन्ता करते है जब अंगळी पकड कर चलना सिखाते है दौडना सिखाते है बच्चे को यह भरोसा होता है मेरे मा बाप या संरक्षक मेरे साथ है बचपन को विकसित होने के लिए चहल पहल चाहिए माँ का आंचल बुआ दादी की गोद चाहिए दादा पिताजी का कंधा चाहिए तब हम पल पोश कर बडे होते है। जरा सी बीमारी जुकाम हो जाए घर को रो रो के सर उठा लेते थे जब किसी चीज की जिद करते तत्काल पूरी होती है।
इसीलिए कहा बचपन बडों के हाथों में सुरक्षित है। पर जब वही हाथ बूढे होते हैं। उन्हे जवान होते बेटे बहुओं का सहारा चाहिए होता है उनके एकान्त को बांटने वाला उनकी जरूरतों को पहचान कर पूर्ति करने वाला उनकी दैनिक दिन चर्चा को पूरा कराने वाला चाहिए।
समाज सेवी कानसिंह का कहना है कि जब बचपन में देखभाल माँ बाप की जिम्मेदारी है, तो बुढ़ापे में उनकी देखभाल की जिम्मेदारी किसकी है ? जवानी बचपन के सो सहारे हैं पर बुढापा भारी होता है। इन्द्रिया शिथिल हो जाती है पेट की पाचन शक्ति कानो की श्रवण शक्ति क्षीण हो जाती है जो डेली दाडी बनाते थे। आज दाडी बडी है तन पर कपडे मैले है पर उनकी पुकार सुनने वाले बहुत कम रह गए है। घर में अपने बढे बूढों के साथ समय बिताने बाले कोई नही होते दवा तो होती है पर समय पर देने वाला कोई नहीं होता बुढापे में भी वे सबकी चिन्ता करते है पर उनकी चिन्ता का सम्मान भी होना चाहिए सही कहा है बुढापा बचपन का पुनरागमन है जवानी में आदमी यह भूल जाता है बुढापा आने वाला है फिर सहारा कौन देगा अतः हमको बुढापे की लाठी बन कर सेवा करनी चाहिए न कि बुजुर्ग जनों का उपहास।
कानसिंह का कहना है कि आज हमारी समाज व्यवस्था उस दौर में खडी है जहाँ युवा पीढी एवं वरिष्ठ जनों के बीच अच्छी खासी खींचा तान है युवा यह समझता है सारी दुनिया मेरे बल पौरुष से चल रही है ये वरिष्ठ जन तो हमारे कार्य में बाधा उत्पन्न करते है परन्तु वो इस सच्चाई को भूल रहे है ये ही बो वरिष्ठ जन है जिन्होने कष्ट झेलकर त्याग कर जीवन के स्वर्णिम समय को लगा कर आज वो वातावरण आपको दिया है जिसमें आपको कार्य करने के प्रचुर अवसर मिल रहे है आपको मिल रही ख्याति में उनकी भूमिका भी अहम है एक बात सत्य है अगर आप किसी को धक्का देकर आगे बढ़ोगे तो एक समय बाद आपके लिए गहरी खाई तैप्यार है अतः युवजन जब प्रगति करते है वरिष्ठ जन बहुत प्रसन्न होते है जब आप उनका सानिध्य पाकर उनसे अनु भवों का लाभ लेते हो उन्हे अच्छा लगता है उनके पास अनुभव की अपार संपदा है जितना विनम्र एवं उनके प्रतिसद्भावी रह कर ही प्राप्त कर सकते है। यूज एन्ड थ्रो की मानसिकता से बचना चाहिए अन्यथा आपके कर्माे के हिसाब से एक समय बाद आप की जगह भी डस्टबिन में होगी।
अतः समन्वय पीढी का नहीं विचारों का भी होना चाहिए सम्मान केवल तात्कालिक नही समर्पण का भी होना चाहिए। जब अनुभव और समर्थ हाथ एक साथ मिलते है तब शिवाजी महाराज नया इतिहास रच देते है। पर्ची में लिखकर अनुभव के चरणों में अपना राज समर्पित कर देते है श्रीराम राज्य का उपयोग ट्रस्टी बन कर करते है स्वामी बन कर नहीं। सबही भूमि विप्रो को दीनी, विप्रो ने वापस कर दीनी। हम तो भजन करेंगे राम।