ब्लॉक शंकरगढ़ में वर्षों से जमे सचिवों का तबादला क्यों नहीं?


उठने लगे सवाल, ट्रांसफर नीति सवालों के घेरे में

प्रयागराज। जनपद के यमुनानगर विकासखंड शंकरगढ़ में सचिवों के स्थानांतरण को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। वर्षों से एक ही ब्लॉक में तैनात सचिवों का तबादला न होने से ग्रामीणों में नाराजगी है तो वहीं जिला प्रशासन की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। जबकि जिले की अन्य ब्लॉकों में नियमित तौर पर सचिवों के तबादले किए जा रहे हैं, वहीं शंकरगढ़ ब्लॉक एक अपवाद बना हुआ है।सूत्रों की मानें तो बीते पांच साल से अधिक समय से कई सचिव ब्लॉक की विभिन्न ग्राम पंचायतों में तैनात हैं। लेकिन इनका स्थानांतरण अन्य ब्लॉकों में नहीं किया गया, बल्कि केवल ग्राम पंचायतों को बदलकर औपचारिकता पूरी कर दी गई।
क्या है ट्रांसफर न होने की असली वजह?
सूत्रों का कहना है कि जिला पंचायत राज अधिकारी कार्यालय में सचिवों के स्थानांतरण के नाम पर मोटा सुविधा शुल्क वसूला जा रहा है। यही कारण है कि कुछ सचिवों को उनके मनपसंद गांवों व ब्लॉकों में ही बार-बार तैनाती मिल रही है। सचिवों के स्थानांतरण की नीति पर अमल न होकर, कथित ‘नेटवर्क’ और ‘लेन-देन’ के आधार पर तबादले किए जा रहे हैं।वही अधिकारी जिन्हें सचिवों के तबादले सुनिश्चित करने थे, वे खुद इस खेल में शामिल नजर आ रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, कई बार सचिवों को ब्लॉक से हटाने की प्रक्रिया शुरू होती है, लेकिन कुछ ही दिनों में उन्हें फिर से उसी ब्लॉक में या नजदीकी ग्राम पंचायत में तैनात कर दिया जाता है।
प्रशासनिक चुप्पी, जिम्मेदार मौन
सवाल यह है कि जब जिले के अन्य ब्लॉकों में नियमित स्थानांतरण हो रहे हैं तो शंकरगढ़ ब्लॉक क्यों अपवाद है? क्या यह सचिव सुविधा शुल्क के बल पर वर्षों से एक ही ब्लॉक में डटे हुए हैं, या फिर इसके पीछे कोई और ‘बड़ी सेटिंग’ है?स्थानीय जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों का कहना है कि वर्षों से एक ही क्षेत्र में तैनात सचिवों की कार्यशैली पर भी सवाल उठते रहे हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों की चुप्पी कई संदेहों को जन्म दे रही है।
क्या जांच कराएगा प्रशासन?
अब निगाहें जिला प्रशासन पर हैं कि क्या वह सचिवों के तबादले की नीति की निष्पक्ष जांच कराकर आवश्यक कार्रवाई करेगा या फिर यह खेल यूं ही जारी रहेगा? यदि अब भी कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो ट्रांसफर नीति का मज़ाक बनकर रह जाएगा और ग्राम पंचायतों में पारदर्शिता की उम्मीद धूमिल हो जाएगी।


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