महिला सशक्तिकरण का अर्थ उन्हे पुरूषों के समान अधिकार देने से है – सुषमा सिंह
नईदिल्ली 5 जनवरी। (राजेश शर्मा)। आसानी से कई भूमिकाओं को निभाने वाली महिलाएं निर्विवाद रूप से किसी भी समाज की रीढ़ की हड्डी होती है। बेटियों, माताओं, सहकर्मियों और कई अन्य भूमिकाओं में रहती है। महिला सशक्तिकरण शब्द का संबंध समाज में महिलाओं की वृद्धि और विकास के लिए उन्हें पुरुषों की तरह समान अधिकार देने से है। दूसरे शब्दों में, इसका अर्थ समाज के सभी आधारों पर महिलाओं को समानता देना है।
आदिशक्ति फाउंडेशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुषमा सिंह पंवार ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं ने गैर-पारम्परिक क्षेत्रों और व्यवसायों में भी महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की है देश में परिवर्तन और प्रगति की एक लहर चल रही है और महिलाएं भी इस बदलाव का हिस्सा बन रही हैं। राष्ट्र के विकास और प्रगति के लिए महिलाओं की सहायता और भागीदारी महत्वपूर्ण और आवश्यक है, इस भागीदारी को सुनिश्चित करने और प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को कौशल विकास और शिक्षा के क्षेत्र में लगातार बड़े फैसले लेने होंगे ताकि महिलाएं उद्यमिता प्रशिक्षण लेकर स्वांबलंबी बने, शिक्षित हो और घर परिवार की हर मोर्चे पर स्वास्थ्य से लेकर वित्तीय पैमाने पर सहायता करे और कंधे से कंधा मिलाकर स्वर्णिम भारत बनाने में बेहतर तरीके से सहभागी बनें।
उन्होंने कहा कि कृषि और इससे संबंधित अन्य क्षेत्रों में उत्पादक के रूप में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए उनके प्रशिक्षण, विस्तार और विभिन्न कार्यक्रमों के लाभ उन तक पहुंचें। कृषि क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के लिए मृदा संरक्षण, सामाजिक वानिकी, डेयरी विकास और कृषि से संबद्ध अन्य व्यवसायों जैसे कि बागवानी, लघु पशुपालन सहित पशुधन, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन इत्यादि में महिला प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना अत्यंत जरूरी है।
सुषमा सिंह पंवार ने कहा कि महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में थोड़ा बहुत सुधार हुआ है, लेकिन ये बदलाव विशेष रूप से केवल बड़े शहरों या शहरी क्षेत्रों में ही दिखाई देता है, अर्ध-शहरी क्षेत्रों और गांवों में स्थिति में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। यह असमानता शिक्षा और नौकरी के अवसरों की कमी और समाज की नकारात्मक मानसिकता के कारण है।
विभिन्न कानूनों और नीतियों के बावजूद जमीनी स्तर पर महिलाओं की स्थिति में अभी भी संतोषजनक सुधार नहीं हुआ है। महिलाओं से संबंधित विभिन्न समस्याएँ अभी भी विद्यमान हैं कन्या भ्रुण हत्या और दहेज प्रथा अभी भी प्रचलित है, महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न जैसे जघन्य अपराध बढ़ रहे हैं।
सकारात्मक आर्थिक एवं सामाजिक नीतियों के माध्यम से महिलाओं के पूर्ण विकास के लिए वातावरण बनाना होगा ताकि वे अपनी पूरी क्षमता को साकार करने में समर्थ हो सकें। राजनीतिक, आर्थिक, सामजिक, सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में पुरूषों के साथ साम्यता के आधार पर महिलाओं द्वारा सभी मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता प्राप्त कर सकें। महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्ति के लिए विधिक प्रणालियों का सुदृढ़ीकरण होना चाहिए ताकि महिलाओं और पुरूषों दोनों की सक्रिय भागीदारी और संलिप्तता के माध्यम से सामाजिक सोच ओर सामुदायिक प्रथाओं में परिवर्तन लाया जा सके।
सदियों से माना जाता रहा है की नारी परिवार की धुरी और समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई है। माता संतान की प्रथम गुरु है। यदि वह स्वयं शिक्षित है, गुणवान है, समर्थ है, सशक्त है, आत्मबल आत्मसम्मान महसूस करती है तो वही संस्कार वो संतान को देती है। महिला सशक्तिकरण का मतलब यह नहीं है कि हम अपने अधिकारों का दुरुपयोग करे बल्कि हमें अपने कर्तव्यों के प्रति भी सजग रहना होगा। अपने हर कर्म को समाज में बेहतर बनाने का प्रयास करना होगा तभी आज की नारी समाज परिवर्तन में पुरुषों के बराबर सहभागी बनेगी।