सोलह श्रृंगार कर सुहागिनों ने दशामाता से मांगी सुख-समृद्धि, महिलाओं ने सुनी कथा
पीपल वृक्षों पर पूजा के लिए रही महिलाओं की भीड़, धुलंडी से चल रहा दशामाता कथा मनोरथ हुआ पूर्ण, मांगी सुख शांति की कामना
भीलवाडा। (पंकज पोरवाल) शहर सहित जिलेभर में चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के दिन गुरूवार को दशामाता का पूजन किया गया। धुलंडी से चल रहा दशामाता कथा मनोरथ पीपल पूजा के साथ पूर्ण हुआ। परिवार में आर्थिक स्थिति सुधारने और सुख-शांति के लिए महिलाओ ने दशा माता की पूजा की। दशामाता पूजन और व्रत परिवार को समस्याओं से मुक्ति प्रदान करने के साथ-साथ सुख, समृद्धि और सफलता देने वाला होता है। पूजा के तहत महिलाओं ने कच्चे सूत का 10 तार का डोरा लाकर उसमें 10 गांठ लगाई और पीपल वृक्ष के तने पर कुमकुम, मेहंदी, लच्छा, सुपारी आदि से पूजा के बाद सूत लपेटा और पीपल के पेड़ की पूजा की। डोरे की पूजा करने के बाद पूजा स्थल पर नल दमयंती की कथा सुनी गई। इसके बाद इस डोरे को गले में धारण किया। पूजन के बाद महिलाओ ने घर पर हल्दी कुमकुम के छापे लगाए। महिलाएं आज व्रत रखते हुए एक ही समय भोजन ग्रहण करेगी। भोजन में नमक का प्रयोग नहीं किया जाएगा। इस दिन घर की साफ-सफाई करके कूड़ा, कचरा बाहर फेंक घर की दशा सुधारने का प्रयास किया। दशामाता का व्रत जीवन में जब तक शरीर साथ दे तब तक किया जाता है। साथ ही सफाई से जुड़े समान यानी झाड़ू आदि खरीदने की परंपरा है। मान्यता है कि दशामाता व्रत को विधि-विधान से पूजन व्रत करने पर एक साल के भीतर जीवन से जुड़े दुख और समस्याएं दूर हो जाती हैं।
आटे से बने आभूषण अर्पित किए
सास अपनी बहुओं के साथ आई और श्रद्धा से पीपल के पेड़ की कुमकुम, अक्षत, पुष्प आदि से पूजा की। माताजी को आटे से बने आभूषण अर्पित किए। गीत गाते हुए पीपल की परिक्रमा की और सूत के धागे को पीपल के चारों ओर लपेटा। घर में भोजन में चावल, लप्सी, कड़ी का माताजी को भोग लगाकर ग्रहण किया। इस दिन जो सूती धागा पेड व गले में बांधा जाता है उससे घर में सुख-शांति आती है।